चीन पर बढ़ा दबाव, अमेरिका बोला- कोरोना पर जानकारी छिपाई, ब्रिटेन ने कहा- मामले की तह तक जाएंगे

कोरोना वायरस के बारे में जानकारी छिपाना चीन को भारी पड़ता नजर आ रहा है। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों ही देशों ने एकसाथ चीन पर हमला बोला है। जानें क्‍या लगाए हैं आरोप...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Mon, 04 May 2020 07:13 PM (IST) Updated:Tue, 05 May 2020 02:19 AM (IST)
चीन पर बढ़ा दबाव, अमेरिका बोला- कोरोना पर जानकारी छिपाई, ब्रिटेन ने कहा- मामले की तह तक जाएंगे
चीन पर बढ़ा दबाव, अमेरिका बोला- कोरोना पर जानकारी छिपाई, ब्रिटेन ने कहा- मामले की तह तक जाएंगे

वाशिंगटन, एजेंसियां। कोरोना वायरस की जानकारी छिपाना चीन को भारी पड़ता नजर आ रहा है। विभिन्न देश उस पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। अमेरिकी का तो यहां तक मानना है कि ऐसा उसने इसलिए किया क्योंकि वह इससे निपटने के लिए जरूरी चिकित्सकीय सामान की जमाखोरी कर सके। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बाद विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने भी कहा है कि उनके पास इस बात के पुख्ता सुबूत हैं कि यह वायरस चीन की प्रयोगशाला से फैला। वहीं ब्रिटेन का कहना है कि इस बारे में चीन को पारदर्शी रवैया अपनाने की जरूरत है।

ब्र‍िटेन की दो टूक, तह तक जाएंगे

ब्र‍िटेन ने दो टूक कह दिया है कि महामारी खत्म होने पर हम इस पूरे प्रकरण की तह तक जाएंगे। अमेरिका के आंतरिक सुरक्षा विभाग (डिपार्टमेंट आफ होमलैंड सिक्योरिटी-डीएचएस) के चार पृष्ठों वाले दस्तावेज के मुताबिक चीन के नेताओं ने जनवरी की शुरुआत में दुनिया से वैश्विक महामारी की गंभीरता जानबूझकर छिपाई। यह रहस्योद्घाटन ऐसे समय पर हुआ है जब चीन के साथ ही आलोचक ट्रंप प्रशासन पर भी सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि वायरस के खिलाफ सरकार की प्रतिक्रिया अपर्याप्त और धीमी है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने राष्ट्रपति ट्रंप और उनके प्रशासन पर आरोप लगाया है कि वे अपनी आलोचना को दूसरी दिशा में मोड़ने के लिए चीन पर दोष मढ़ रहे हैं।

आयात बढ़ाकर प्रकोप छिपाने की कोशिश की

डीएचएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन कोरोना वायरस की गंभीरता को कम करके बताता रहा है। इस दौरान उसने चिकित्सकीय सामान का आयात बढ़ा दिया जबकि निर्यात घटा दिया। ऐसा करके उसने वायरस के प्रकोप को छिपाने की कोशिश की। इसमें यह भी कहा गया है कि चीन ने लगभग पूरी जनवरी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को यह जानकारी नहीं दी कि कोरोना वायरस संक्रामक है ताकि वह विदेश से चिकित्सकीय सामान मंगा सके। इस दौरान फेस मास्क और सर्जिकल गाउन का उसका आयात तेजी से बढ़ा था। चीन ने 31 दिसंबर को इस बारे में डब्ल्यूएचओ को जानकारी दी थी। जबकि उसने तीन जनवरी को अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज एंड कंट्रोल को सूचना दी थी। इसके बाद उसने आठ जनवरी को कोरोना वायरस की पुष्टि की।

दुनिया को संक्रमित करने का रहा है चीन का इतिहास

रविवार रात एबीसी के 'दिस वीक' कार्यक्रम में विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा, हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि चीन का इतिहास दुनिया को संक्रमित करने का और घटिया प्रयोगशालाएं चलाने का रहा है। यह पहली बार नहीं है जब चीन की प्रयोगशालाओं की विफलताओं के चलते वायरस का संक्रमण फैला है। उनका इशारा चीन से निकले सार्स वायरस की तरफ था। हालांकि जब पोंपियो का ध्यान अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के उस बयान की ओर दिलाया गया, जिसमें उन्होंने वायरस को 'मैन मेड' मानने से इन्कार किया है तो उन्होंने कहा, मुझे पता है कि खुफिया एजेंसियों ने क्या कहा है। मुझे पूरा भरोसा है कि वे अबकी गलत साबित होंगे।

सवालों का जवाब दे चीन

ब्रिटेन ने सोमवार को कहा कि चीन को कोरोना से संबंधित जानकारी साझा करने पर उठाए गए सवालों का जवाब देना होगा। हालांकि उसने अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा विभाग की रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं की। ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस ने कहा, हर दिन मुझे पूरी दुनिया से खुफिया जानकारी मिलती हैं। व्यक्तिगत जानकारियों पर टिप्पणियां करना ठीक नहीं होगा। जहां तक कोरोना को लेकर चीन पर उठाए गए सवालों की बात है तो मुझे लगता है कि उसे इस मुद्दे पर पारदर्शी होने की जरूरत है।

फाइव आइज कंर्सोटियम ने भी उठाए सवाल

अमेरिका के नेतृत्व वाले फाइव आइज इंटेलिजेंस कंर्सोटियम ने अपने 15 पेज के रिसर्च डोजियर में कहा है कि चीन ने कोरोना महामारी के प्रकोप से जुड़े सुबूतों को जानबूझकर नष्ट किया। ऐसा करके उसने ना केवल अंतरराष्ट्रीय पारदर्शिता पर हमला किया बल्कि इससे लाखों की जान भी गई। इस कंर्सोटियम में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की खुफिया एजेंसियां शामिल हैं। ऑस्ट्रेलियन टेलीग्राफ में छपे डोजियर में कहा गया है कि चीन ने वायरस से जुड़ी जानकारी छिपाकर दूसरे कई देशों को खतरे में डाला। उसकी निष्कि्रयता यहीं तक सीमित नहीं रही। वह इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले डॉक्टरों के लापता होने पर शांत रहा। प्रयोगशाला में मौजूद सुबूतों को ना केवल नष्ट किया बल्कि वैक्सीन के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों को सैंपल देने से भी इन्कार किया।  

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