कथ्य एवं शिल्प में विविधता लिए हुए है आजादी के बाद हिंदी कहानी की यात्रा

कालीपद घोष तराई महाविद्यालय बागडोगरा के हिंदी विभाग की ओर से आजादी के बाद हिंदी कहानी, बदलते परिदृश्य विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।

By Rajesh PatelEdited By: Publish:Mon, 18 Feb 2019 11:28 PM (IST) Updated:Tue, 19 Feb 2019 10:15 AM (IST)
कथ्य एवं शिल्प में विविधता लिए हुए है आजादी के बाद हिंदी कहानी की यात्रा
कथ्य एवं शिल्प में विविधता लिए हुए है आजादी के बाद हिंदी कहानी की यात्रा
सिलीगुड़ी [जागरण संवाददाता]। कालीपद घोष तराई महाविद्यालय बागडोगरा के हिंदी विभाग की ओर से 'आजादी के बाद हिंदी कहानी, बदलते परिदृश्य' विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन कथाकार शिवमूर्ति व सत्र की अध्यक्ष तथा महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. मीनाक्षी चक्रवर्ती ने किया।
    डॉ. मीनाक्षी ने स्वागत भाषण में कहा कि वर्तमान विद्यार्थी समाज के लिए संगोष्ठी जैसे अवसर उसकी रचनात्मक और आलोचनात्मक कौशल के लिए अनिवार्य है। ऐसे अवसर पर राष्ट्रीय स्तर के लेखक शिवमूर्ति हमारे लिए महज प्रेरणास्रोत ही नहीं है, जीवन को सार्थक करने के लिए लक्ष्य स्वरूप भी हैं।
   विषय प्रस्तावना के दौरान महाविद्यालय की विभागाध्यक्ष डॉ. पूनम सिंह ने यह कहा कि आजादी के बाद कई दशकों को समेटकर चलने वाली हिंदी कहानी का कोई भी आंदोलन अस्तित्व में नहीं आया तो इसके पीछे परिदृश्य में आने वाले अनवरत बदलाव ही हैं, इसलिए किसी एक कथाकार को विषय बनाकर कहानी को देखना चुनौतीपूर्ण है।
    संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता एवं अतिथि कथाकार शिवमूर्ति ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद लगभग 70 वर्षोंं की हिंदी कहानी की यात्रा कथ्य एवं शिल्प के संदर्भ में विविधता लिए हुए है। एक ओर कमलेश्वर, राजेंद्र यादव जैसे कहानीकारों ने कई पीढिय़ों को अपने लेखन में जिया है, तो दूसरी ओर बदलते संदर्भ की यात्रा को विमर्श की पृष्ठभूमि में समृद्ध भी किया है। नई कहानी से लेकर जनवादी कहानी तक की यात्रा स्त्री संदर्भ में 'गदल', 'दुनिया की सबसे हसीन औरत', 'फैसला', कहानी के माध्यम से बदलते परिदृश्य में बदलती स्त्री का जीवंत दस्तावेज है तो दूसरी ओर ग्रामीण और किसानी संदर्भ को लेकर कहानीकार ने स्वतंत्रता पूर्व की परंपरा को समृद्ध भी किया है। आज विमर्श के आधार पर भूमंडलीय परिदृश्य में कहानियों को देखने का चलन भी बदलते परिवेश का ही परिणाम है।
   आसनसोल गर्ल्स कॉलेज के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि आजादी के बाद भले ही सामाजिक परिवर्तन घटित नहीं हुए, लेकिन नई कहानी के रचनाकार कहानी को आजादी पूर्व के कथ्य से पृथक भूमि पर रच रहे थे। अब आम आदमी समाज के सामान्य वर्ग के तहत सभी को समेटने की पहल चल रही थी। सिलीगुड़ी कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार साव ने स्वतंत्रता पूर्व की कहानियों को पृष्ठभूमि में नई कहानी, साठोत्तरी कहानी के तहत सचेतन कहानी से आगे समांतर और सक्रिय कहानी को बदलते परिदृश्य के परिणाम के रूप में रेखांकित करते हुए कहा विशेषकर सक्रिय कहानी के दौर में जो स्त्री लेखन हुआ, उसे उस दौर में भले ही बोल्ड लेखन से नवाजा गया है या फिर आलोचना का शिकार बनाया गया, पर आज भूमंडलीकरण के बाद जिन दशकों को हम जी रहे हैं, उसमें कानूनी प्रावधान भी उसे स्वीकारने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। मन्नू भंडारी की कहानी 'ऊंचाई' हो या कृष्णा सोबती की कहानी 'मित्रो मरजानी' या फिर मृदुला गर्ग की रचना रुकावट हो या अवकाश, महज मुक्त यौन संबंध की कहानी ना होकर स्वस्थ दांपत्य की चाहना लिए रची गई कहानी प्रतीत होती है तो दूसरी ओर स्त्री का राजनीति में प्रवेश एक नया परिदृश्य है। जहां स्त्री का राजनीतिक दृष्टिकोण किसी भी सूरत में पुरुष की दृष्टि से अलग नहीं है। इसका प्रमाण मृदुला गर्ग की कहानी 'मेरे देश की मिट्टी आहा' और नीलाक्षी सिंह की कहानी '33 परसेंट'  है तो साथ ही दूसरी ओर देह के जरिए सत्ता की सियासत तक पहुंचने की मनोवृति से प्रभावित हिंदी कहानी विचारणीय है।
    बानरहाट कार्तिक उरांव हिंदी गवर्मेंट कॉलेज के प्रोफेसर रहीम मियां ने स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी में दलित चेतना पर प्रकाश डालते हुए कहा के आजादी के पहले और बाद में भी सवर्णोंं से विद्रोह करते हुए दलित मुक्ति का सपना देखते रहे लेकिन आगे चलकर बदलते परिदृश्य में दलित समाज स्वयं जातिगत विभाजन का शिकार हो गया और इस क्रूर विभाजन के कारण दलित राजनीति हो या सामाजिक चेतना अंतर्विरोध का शिकार हो रही है। ननी भट्टाचार्य स्मारक महाविद्यालय की प्रोफेसर सरोज कुमारी शर्मा ने स्वतंत्रता के बाद हिंदी कहानी में त्रिशंकु जलडमरू मध्य, चित्रा मुद्गल की वाइफ स्वेपिंग जैसी कहानियों के आधार पर बदलते परिदृश्य का रेखांकन किया। इस मौके पर अतिथि अध्यापक अरविंद कुमार साह, बृजेश कुमार चौधरी प्रोफेसर जॉन तिर्की प्रोफेसर राकेश सिंह ने वक्तव्य रखा। कार्यक्रम का समापन में धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर सुशील कुमार मिश्र तथा संगोष्ठी का संचालन विभाग की अध्यापिका डॉ. शशि शर्मा ने किया।
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