रमजान : जीवन के शुद्घिकरण का दर्शन!

रमजान मुबारक विशेष -'रात काटी बेइबादत, दिन को सोता रह गया.. कुछ न पाया फकत रोजे में

By JagranEdited By: Publish:Thu, 17 May 2018 09:18 PM (IST) Updated:Thu, 17 May 2018 09:18 PM (IST)
रमजान : जीवन के शुद्घिकरण का दर्शन!
रमजान : जीवन के शुद्घिकरण का दर्शन!

रमजान मुबारक विशेष

-'रात काटी बेइबादत, दिन को सोता रह गया.. कुछ न पाया फकत रोजे में भूखा रह गया!'

-बुजुर्गो ने कहा है : जिंदगी को रमजान जैसा बना लो तो मौत ईद जैसी होगी

इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी :

इस्लाम धर्म के दर्शन में पवित्र रमजान महीने का बड़ा ही महत्व है। इस्लाम धर्म के पांच आधार तौहीद (एक अल्लाह में आस्था), नमाज (प्रार्थना), रोजा (व्रत), जकात (संपन्न लोगों द्वारा अपने धन का 40वां भाग जरूरतमंद निर्धनों को अनिवार्य रूप से दिया जाना) व हज (अरब के मक्का शहर में स्थापित अल्लाह पाक के घर 'काबा' और मदीना शहर में स्थित हजरत मोहम्मद साहब की कब्र 'रौजा-ए-मुबारक' की तीर्थ यात्रा) में से एक है रमजान का रोजा।

पवित्र कुरआन के पहले अध्याय में ही कहा गया है 'ऐ ईमान वालों तुम पर रोजे फर्ज (अनिवार्य) कर दिए गए हैं जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फर्ज किए गए थे ताकि तुम 'मुत्तकी' (पवित्र आत्मा) हो जाओ (अलबकर: 183)'।

पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने भी कहा है कि जो बिना अक्षमता के एक भी रोजा छोड़ दे तो जमाने भर के रोजे उसकी भरपाई नहीं कर पाएंगे। इसी से रमजान व रोजे के महत्व को समझा जा सकता है।

इस्लामी कैलेंडर का यह नौवां महीना रमजान अपने तप व प्रभाव के बल पर व्यक्ति के शरीर व आत्मा को उसी प्रकार शुद्ध व पवित्र कर देता है जिस प्रकार नौ महीने मां की पेट में रह कर जन्म लेने वाला नवजात शिशु शरीर व आत्मा से पूर्णरूपेण स्वच्छ व पवित्र होता है। निश्छल, निष्कपटी, लोभ-लालच, ईष्र्या-द्वेष से परे सहृदयी व मन का सच्चा। पर, इसके लिए शर्त है कि व्यक्ति पवित्र रमजान महीने के पूरे विधि-विधान का पूरी निष्ठा से पालन करे एवं उसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाए रखे। रमजान के पूरे महीने भर रोजाना सूर्योदय पूर्व से सूर्यास्त पश्चात तक केवल भूखे-प्यासे रह जाने मात्र से ही रोजा व रमजान का आशय पूरा नहीं हो जाता।

रमजान में शरीर के हरेक अंग का रोजा अर्थात व्रत अनिवार्य है। आंखों का रोजा.. बुरा न देखें। कानों का रोजा.. बुरा न सुनें। जुबान का रोजा.. बुरा न बोलें, गाली-गलौज, पीठ पीछे किसी की बुराई, चुगली, आदि से परहेज करें। हाथों का रोजा यह है कि कुछ गलत न करें, गलत न लिखें, गलत न तौलें, किसी पर जुल्म न करें आदि। पांवों का रोजा यह है कि बुराई की ओर न जाएं। मन का रोजा यह है कि ¨हसा, लोभ-लालच, राग-द्वेष-ईष्या, पाप से मुक्त हों। मन को संयमित व नियंत्रित रखें। अपने व्यक्तित्व से सबका भला करें।

इसके अलावा यह विज्ञान सम्मत भी है कि व्रत से शरीर को बड़ा लाभ पहुंचता है सो, इसका शारीरिक लाभ तो अलग से है ही। इससे शरीर को नई ऊर्जा, स्फूर्ति और नवीन शक्तियां प्राप्त होती हैं।

वास्तव में, रमजान वह महीना है जो समय के साथ-साथ व्यक्ति के तन-मन में उत्पन्न अशुद्धियों को दूर कर उसे पूरी तरह स्वच्छ व पवित्र कर देता है। इस महीने भर के प्रयोग से आने वाले समय में संयमित, नियंत्रित व सहमर्मी जीवन-यापन का प्रायोगिक आदर्श व सिद्धांत मिलता है। कोई लिखित या मौखिक नहीं वरन पूर्णत: प्रायोगिक। जीवन भर प्रत्येक वर्ष रमजान के चक्र का मूल ही व्यक्ति के शरीर-आत्मा व जीवन के सतत शुद्धिकरण का प्रायोगिक दर्शन है जो पूर्णत: जीवन का शुद्धिकरण कर देता है।

रमजान का सामाजिक दर्शन भी है कि दिन भर भूखे-प्यासे रहने से धनी-संपन्न लोगों को गरीबों की भूख-प्यास का भी एहसास हो जाए और उनके लिए वे कुछ करने को प्रेरित हों। इसका आर्थिक दर्शन भी है कि यह व्यक्ति को इच्छाओं को परे रख कर संयमित, संतुलित व नियंत्रित कुल मिला कर सादा जीवन जीने की सीख देता है। पवित्र रमजान के ऐसे अनेक पवित्र पहलू हैं जिनकी जितनी व्याख्या की जाए कम है। इसे आत्मसात कर पवित्रता को प्राप्त कर लिया जाए यही बहुत है।

इसीलिए बुजुर्गो ने कहा है कि रोजा ऐसे रखो जैसे जिंदगी के सारे पाप एक ही रोजे में क्षमा कर दिए जाएं। जिंदगी को रमजान जैसे तप वाली बना लो तो मौत ईद जैसी प्रफुल्लित व

आनंददायक होगी। आशय यह कि इस लोक में संयमित, नियंत्रित व सहमर्मी जीवन अपनाया जाए तो मृत्यु के पश्चात परलोक में आसानी होगी। नरक नहीं वरन स्वर्ग ठिकाना होगा। वर्तमान जीवन के साथ ही साथ मृत्यु के बाद का जीवन भी सुखदायी होगा।

chat bot
आपका साथी