नई दुनिया की खोज जैसा था एवरेस्ट का पहला आरोहण : बछेंद्री पाल

भारत की पहली महिला एवरेस्ट विजेता और पद्मभूषण से सम्मानित बछेंद्री पाल कहती हैं कि एवरेस्ट दिवस उनके लिए खास है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 29 May 2020 03:02 PM (IST) Updated:Fri, 29 May 2020 03:02 PM (IST)
नई दुनिया की खोज जैसा था एवरेस्ट का पहला आरोहण : बछेंद्री पाल
नई दुनिया की खोज जैसा था एवरेस्ट का पहला आरोहण : बछेंद्री पाल

उत्तरकाशी, जेएनएन। आज भले ही संसाधनों की कमी नहीं है, लेकिन एवरेस्ट चढ़ना अब भी हंसी खेल नहीं है। ऐसे में 67 साल पहले 29 मई 1953 को जब सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने पहली बार एवरेस्ट को फतेह किया तो यह ऐसा ही था जैसे क्रिस्टोफस कोलंबस ने नई दुनिया की खोज की थी। भारत की पहली महिला एवरेस्ट विजेता और पद्मभूषण से सम्मानित बछेंद्री पाल कहती हैं कि एवरेस्ट दिवस उनके लिए खास है।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव नाकुरी में जन्मी बछेंद्री के लिए भी एवरेस्ट जीतना सपनों का सच होना ही था। हालांकि, पहाडों की पगडंड़ियों को नापना उनके लिए कोई नई बात नहीं थी, लेकिन एवरेस्ट विजेता बनने की चाह और राह दिखाई उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) ने। इसी संस्थान से उन्होंने पर्वतारोहण का बेसिक और एडवांस कोर्स किया। 

बछेंद्री बताती हैं कि मई का उनके जीवन में विशेष महत्व है। उनका जन्म 24 मई 1954 को हुआ तो उन्होंने एवरेस्ट फतेह किया 23 मई 1984 को, इतना ही नहीं बछेंद्री के नेतृत्व में 28 जांबाजों ने एवरेस्ट पर जीत हासिल की, इनके सभी सफल अभियान भी मई में ही आयोजित किए गए। 

वह बताती हैं कि वर्ष 1993 में भारत नेपाल का संयुक्त पर्वतारोहण अभियान चला था। उसमें पर्वतारोहियों के चयन से लेकर प्रशिक्षण तक, सभी दायित्व उन्होंने ने निभाए। इस अभियान में सात विश्व रिकॉर्ड बने। अभी भी एक विश्व रिकॉर्ड बरकरार है। यह रिकॉर्ड एक ही अभियान दल के 18 पर्वतारोहियों का आरोहण करने का है। बछेंद्री कहती हैं कि सर हिलेरी और तेनजिंग ने 29 मई को सिर्फ माउंट एवरेस्ट की पहली चढ़ाई ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी के आरोहण का एक रास्ता भी तलाशा। हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि संसाधनों के अभाव में उन्होंने एवरेस्ट का सफल आरोहण किया। वह कहती हैं कि यह नई दुनिया खोजने जैसा ही था।

 

एवरेस्ट के लिए यहां से निकलती है पर्वतारोहियों की टोली

हिमालय की गोद में बसे उत्तरकाशी की पहचान दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाले पर्वतारोहियों के ट्रेनिंग सेंटर के रूप में है। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी (निम) से प्रशिक्षण प्राप्त कर देश-विदेश के 74 पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट का सफल आरोहण किया। इनमें बछेंद्री पाल, लवराज सिंह धर्मशक्तू, अर्जुन वाजपेयी, अरुणिमा सिन्हा, जुड़वां बहनें नुंग्शी व ताशी जैसी प्रसिद्ध पर्वतारोही शामिल हैं। जिन्होंने यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट का सफल आरोहण किया।

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की स्मृति में 14 नवंबर 1964 को उत्तरकाशी में निम की स्थापना की गई थी। तब से अब तक के इतिहास पर नजर डालें तो संस्थान की हर उपलब्धि गौरवान्वित करने वाली है। 1975 में सर एडमंड हिलेरी भी उत्तरकाशी निम में पहुंचे थे। एडमंड हिलेरी ने भी निम संस्थान की प्रशंसा की थी। निम संस्थान के उत्तरकाशी में स्थापित होने का असर यह रहा कि यहां से भी पर्वतारोहियों की लंबी फेहरिस्त निकली। 

निम के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट ने कहा कि निम संस्थान से एवरेस्ट का सफल आरोहण करने वाले पर्वतारोहियों में 13 पर्वतारोही केवल उत्तरकाशी जनपद के हैं। इनमें भारत की प्रथम एवरेस्ट विजेता महिला बछेंद्री पाल समेत चार महिलाएं भी शामिल हैं। 

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उत्तरकाशी के एवरेस्ट विजेता पर्वतारोही  बछेंद्री पाल नाकुरी उत्तरकाशी (1984) सविता मर्तोलिया नाकुरी उत्तरकाशी (1993)  सुमन कुटियाल उत्तरकाशी (1993)  भगत सिंह उत्तरकाशी (2005)  विश्वेश्वर सेमवाल (विष्णु) लदाणी (2009)  दशरथ सिंह रावत बौंगा (2009)  खुशाल सिंह राणा, कोटियालगांव (2009)  सतल सिंह धराली (2009)  विनोद गुसाईं कोटी (2009)  राजेंद्र पाल नाकुरी (2012)  संदीप टोलिया नाकुरी (2018)  पूनम राणा नाल्ड (2018)  रवि चौहान बाड़ाहाट (2018)

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