खुद हौसला जुटा दूसरों के लिए प्रेरणा बनीं ऊषा, जानिए इनके संघर्ष की कहानी
टिहरी की ऊषा नकोटी ने हालातों से हार नहीं मानी बल्कि उनका डटकर मुकाबला किया और खुद के पैरों पर खड़ी हुईं। आज वो कई महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ चुकी हैं।
चंबा, जेएनएन। मुसीबतों से जूझकर खुद के अलावा दूसरों को भी आर्थिक रूप से किस तरह आत्मनिर्भर बनाना है, यह ऊषा नकोटी से बेहतर भला कौन जान सकता है। ऊषा ने खुद हौसला जुटाकर दो दर्जन से अधिक महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर महिला सशक्तिकरण की अनूठी मिसाल पेश की है।
जनपद के प्रखंड चंबा की कुड़ियाल गांव निवासी ऊषा नकोटी की कहानी हौसले की कहानी है। ऊषा से वह महिलाएं बहुत कुछ सीख सकती हैं, जिनके ऊपर घर-परिवार की जिम्मेदारी है। 45 वर्षीय उषा नकोटी पर बीस साल पहले उस समय मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा, जब उनके पति वीरेंद्र सिंह बीमार पड़ गए। ऐसे में घर की सारी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गई। पति के बीमार होने के कारण घर का खर्चा चलाना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला और सोचा अब कुछ करना है।
ऊषा ने सबसे पहले सिलाई-बुनाई और कढ़ाई का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद खुद लघु कुटीर उद्योग की चंबा में स्थापना की। रिश्तेदारों और परिचितों के सहयोग से कुछ जरूरी मशीनें खरीदी, फिर काम शुरू किया। लाख सवा लाख रुपये की मशीनों से कुछ उत्पाद बनाए और उन्हें बाजार में बेचना शुरू किया। कुछ आमदनी हुई तो उन्होंने अपने साथ और महिलाओं को जोड़ना शुरू किया और काम सिखाया। काम शुरू ही किया था कि उनके पति का निधन हो गया, जिससे उनके सामने दोहरी चुनौती आ गई। पति के न होने पर अब ऊषा को ही सबकुछ करना था। हिम्मत बांधकर एक ओर स्वरोजगार की तरफ कदम बढ़ाए, तो दूसरी ओर घर की जिम्मेदारी का निर्वहन भी किया।
धीरे-धीरे मेहनत रंग लाई और उनके उत्पाद बाजार में खूब बिकने लगे। इससे आय भी बढ़ी और उनके साथ महिलाएं भी जुड़ी। उषा का एक बेटा है, जो देहरादून में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है। आज उनकी स्वरोजगार इकाई से करीब दो दर्जन से अधिक जरूरतमंद महिलाएं जुड़ी हैं, जो प्रतिमाह सात हजार से लेकर दस हजार रुपये तक कमा लेती हैं। वे जो उत्पाद तैयार करती हैं, उसे बाजार में बेचा जाता है और बदले में मिले पैसे से आराम से घर का खर्च चलता है।
इस तरह होता है काम
ऊषा की उद्योग इकाई में स्वेटर, शाल, मफलर, पंखी, पर्स, थैले, टोपी आदि कई प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं, जो ऊन, जूट आदि से तैयार किए जाते हैं। वह अपने उत्पादों की प्रदर्शनी जनपद के अलावा देहरादून, दिल्ली और चंडीगढ़ आदि जगहों पर भी लगाती हैं जहां उनका माल बेचा जाता है। कुछ माल दुकान में ही बिक जाता है। उनकी इकाई उद्योग विभाग से पंजीकृत है। ऊषा नकोटी अब तक दो सौ से अधिक महिलाओं को इस तरह के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण भी दे चुकी हैं। ऊषा का कहना है कि शुरुआत में इस काम में दिक्कत भी आई। बाजार में उत्पाद किस तरह बेचना है, यह काम चुनौती भरा था, लेकिन धीरे-धीरे सीख लिया। अब कोई परेशानी नहीं होती है। हम अलग-अलग डिजाइन और अच्छी क्वालिटी के उत्साह सही दाम पर बेचते हैं।
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ऊषा नकोटी के काम को लेकर नगर पालिका की अध्यक्ष सुमना रमोला का कहना है कि उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। अपने बूते खुद के अलावा दूसरों को रोजगार से जोड़ना बड़ा काम है। उनसे प्रेरणा लेकर दूसरी महिलाएं भी ऐसा कर सकती हैं।
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