अशिक्षा और गरीबी से उबरने के प्रयास में जुटा वनराजि समाज, महिलाओं का समूह कर रहा मदद

प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति वनराजियों के बीच अब स्व कल्याण की भावना जन्म ले चुकी है। वनराजि ने विलुप्ति की खाई से आगे अपने को उठाना प्रारंभ कर दिया है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 09 Aug 2019 11:21 AM (IST) Updated:Fri, 09 Aug 2019 11:21 AM (IST)
अशिक्षा और गरीबी से उबरने के प्रयास में जुटा वनराजि समाज, महिलाओं का समूह कर रहा मदद
अशिक्षा और गरीबी से उबरने के प्रयास में जुटा वनराजि समाज, महिलाओं का समूह कर रहा मदद

पिथौरागढ़, ओपी अवस्थी : प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति वनराजियों के बीच अब स्व कल्याण की भावना जन्म ले चुकी है। वनराजि ने विलुप्ति की खाई से आगे अपने को उठाना प्रारंभ कर दिया है। जहां सरकारी येाजनाएं इनके उत्थान में विफल साबित हुई वहीं भूमि, मकान से वंचित जंगलों में रहने वाली वनराजियों के उत्थान के लिए महिलाओं द्वारा संचालित एक स्वयं सेवी संस्था अर्पण ने इस जनजाति को जीने की राह बता दी है।

धारचूला और डीडीहाट के नौ गांवों में रहने वाली आदिम जनजाति वनराजि जिसे स्थानीय भाषा में वन रावत कहा जाता है आज भी दुर्दिन के शिकार हैं। अशिक्षा, गरीबी और लाचारी के अलावा अन्य समाज से हमेशा दूर रह कर एकाकी जीवन जीने वाली इस जनजाति की महिलाएं अब इतिहास बदलने को आगे आ रही हैं। अशिक्षा जैसे कलंक को मिटाने के लिए समाज की एक युवती मंजू रजवार ग्रेजुएट होकर अपने समाज के बच्चों को पढ़ा रही है तो दूसरी तरफ तीन युवतियां उच्च शिक्षा ग्रहण करने शहर आ रही हैं। 

कभी लोगों के बीच नहीं आने वाली वनराजि महिलाएं अब अपनी आवाज को बुलंद करने लगी हैं। वहीं अपनी गरीबी और लाचारी के लिए अशिक्षा को समझते हुए अपने बच्चों को पढ़ाने भेज रही हैं। परिवारों की जिम्मेदारी अपने हाथों में लेकर बकरी पालन से लेकर मुर्गी पालन करते हुए रिंगाल की वस्तुएं बना कर बाजार तक पहुंचाने लगी हैं। इनके उत्थान के लिए कार्य करने वाली अर्पण संस्था की अध्यक्ष रेनू ठाकुर और समाज की महिलाओं के बीच जाकर उनके जीवन की राह बदलने वाली खीमा जेठी बताती हैं कि वनराजियों के जीवन में बदलाव आ रहा है। वह दिन अब दूर नहीं जब वनराजि मुख्य धारा में शामिल होंगे। 

अब अन्य समाज से भी होने लगे हैं वैवाहिक रिश्ते

अन्य समाज से हमेशा दूरी बनाने वाले वनराजियों में अब एक बदलाव नजर आने लगा है। पहले वनराजि अपने समाज से बाहर कोई संबंध नहीं रखते थे। बीते दो तीन वर्षों के बीच अन्य समाज से भी इनके शादी, ब्याह होने लगे हैं। 

रिंगाल की वस्तुएं बनाने मेंं हो रहे हैं पारंगत 

अन्य समाज की नजरों में त्याज्य वनराजि एक बार फिर अपनी परंपरागत कौशलता की तरह बढ़ चुके हैं। अतीत में लकड़ी के बर्तन बनाने वाले वनराजि समाज की महिलाएं रिंगाल से बनी वस्तुओं का बना कर अपनी गरीबी दूर करने के लिए प्रयासरत हैं। किमखोला गांव से चली यह मुहिम अब इनके अन्य गांवों तक पहुंच रही है।

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