प्रसून जोशी की नियुक्ति से गौरवान्वित हुआ पहाड़

प्रसिद्ध गीतकार और उत्तराखंड के मूल निवासी प्रसून जोशी का फिल्म सेंसर बोर्ड का चेयनमैन चुने जाने से पूरा पहाड़ गौरवान्वित हुआ है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 12 Aug 2017 03:13 PM (IST) Updated:Sat, 12 Aug 2017 10:52 PM (IST)
प्रसून जोशी की नियुक्ति से गौरवान्वित हुआ पहाड़
प्रसून जोशी की नियुक्ति से गौरवान्वित हुआ पहाड़

हल्द्वानी, [जेएनएन]: प्रसिद्ध गीतकार और उत्तराखंड के मूल निवासी प्रसून जोशी का फिल्म सेंसर बोर्ड का चेयनमैन चुने जाने से पूरा पहाड़ गौरवान्वित हुआ है। प्रसून ने दो साल पहले जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में पहाड़ संस्था के संस्थापक प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ शेखर पाठक व नेपाल की एक लेखिका के साथ राग पहाड़ी की प्रस्तुति देते हुए पहाड़ की भाषा व लोक संस्कृति के बारे में बताया था। जो उनके पहाड़ से जुड़ाव की एक बानगी है।

मूल रूप से अल्मोड़ा के जाखनदेवी स्थित स्यूनराकोट मोहल्ला निवासी प्रसून का कुमाऊंनी भाषा से जुड़ाव भी दिलचस्प है। वह अपनी मूल भाषा में संवाद करते हैं। इतिहासकार डॉ शेखर पाठक बताते हैं कि दो साल पहले पद्मश्री सम्मान मिला तो दिल्ली में पहाड़ संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम में उनकी मुलाकात जोशी के साथ हुई थी। 

वह कुमाऊंनी भाषा में ही बात करते मिले। उल्लेखनीय है कि पीसीएस अफसर रहे डीके जोशी व प्रवक्ता सुषमा जोशी के बेटे प्रसून की बचपन से ही संस्कृति व कला में गहरी रुचि रही है। डॉ पाठक के अनुसार जोशी के सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष बनने से उत्तराखंड गौरवान्वित हुआ ही है, साथ ही बोर्ड को लेकर आए दिन उठ रहे विवाद भी थम जाएंगे।

विज्ञापनों में भी पहाड़ को जीया

ठंडा मतलब कोका कोला। ... बेशक यह एडगुरु प्रसून जोशी के कोल्ड ड्रिंक के विज्ञापन की पंचलाइन रही हो। मगर इस छोटी सी पंक्ति में कवि हृदय प्रसून के मन में बसे शीतल पहाड़ के प्रति अगाध प्रेम भी छिपा है। सांस्कृतिक व रंगकर्म की नगरी अल्मोड़ा से ताल्लुक रखने वाले प्रसून जोशी मायानगरी में रह कर कभी अपने पहाड़ को नहीं भूले। इसके लिए उन्होंने अपने विज्ञापनों के बहाने पर्वतीय लोकगीत या पुरानी धुन के समावेश का प्रयास करते रहे।

 सबसे अहम पहलू यह कि उन्होंने कुमाऊं व गढ़वाल को समान रूप से लोक परंपरा के वाहक के रूप में माना तो यहां की सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने की वकालत भी करते रहे। एक बार किसी साक्षात्कार में प्रसून ने बताया भी था कि देहरादून से दिल्ली जाते वक्त कोल्ड ड्रिंक की दुकान पर किसी ग्राहक ने दुकानदार से ठंडा मांगा।

तभी प्रसून ने पहाड़ की ठंडी वादियों का समावेश कर ठंडा मतलब कोका कोला विज्ञापन तैयार कर डाला। 

जीजीआइसी में प्रधानाचार्य एवं कवियत्रि नीलम नेगी साहित्यिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कई बार रूबरू हो चुके प्रसून जोशी का हवाला देते हुए कहती हैं कि मायानगरी में रह कर भी उनमें पहाड़ के साहित्य, संस्कृति व परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का जुनून गजब का है। 

इसके लिए वह उत्तराखंड के शिक्षाविद, रचनाकार हों या रंगकर्मी सभी को प्रेरित भी करते रहते हैं। अल्मोड़ा निवासी रंगकर्मी व मीडिया कर्मी रहे नवीन बिष्ट कुछ वर्ष पूर्व मुलाकात का जिक्र करते हुए बताते हैं कि प्रसून जी भले रहते मुंबई में हैं। मगर वहां की चकाचौंध उनके पहाड़ प्रेम पर हावी न हो सकी। 

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