कृष्णा ने संघर्ष के बूते खुद को आत्‍मनिर्भर बनाया, बेटे को एनडीए में भर्ती होने लायक भी बनाया

संघर्ष और जज्बे की मिशाल है अल्मोड़ा की कृष्णा चौहान। कृष्णा ने अपने संघर्ष के बूते खुद को तो आत्मनिर्भर बनाया ही अपने गोद लिए बेटे को एनडीए में भर्ती होने लायक भी बनाया।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 08 Mar 2019 11:06 AM (IST) Updated:Fri, 08 Mar 2019 11:06 AM (IST)
कृष्णा ने संघर्ष के बूते खुद को आत्‍मनिर्भर बनाया, बेटे को एनडीए में भर्ती होने लायक भी बनाया
कृष्णा ने संघर्ष के बूते खुद को आत्‍मनिर्भर बनाया, बेटे को एनडीए में भर्ती होने लायक भी बनाया

अल्मोड़ा, बृजेश तिवारी : स्त्री कोमल और करुणा की मूर्ति है तो और जरूरत पडऩे पर वही स्त्री मेहनत और जज्बे से बड़ी से बड़ी बाधाओं को भी पार कर आगे निकल जाती है। संघर्ष और जज्बे की ऐसी ही एक मिशाल है अल्मोड़ा की कृष्णा चौहान। कृष्णा ने अपने संघर्ष के बूते खुद को तो आत्मनिर्भर बनाया ही, अपने गोद लिए बेटे (भतीजे) को एनडीए में भर्ती होने लायक भी बनाया। पुरूष प्रधान समाज में हर कदम पर कृष्णा ने तमाम दुश्वारियों का सामना किया। लेकिन इसके बाद भी वह कभी अपने लक्ष्य से नहीं भटकी बल्कि आत्मनिर्भर बनकर समाज को आइना भी दिखाया।

मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक के डाल गांव निवासी कृष्णा चौहान का परिजनों ने कम उम्र में ही विवाह कर दिया। विवाह के कुछ सालों बाद कृष्णा का स्वास्थ्य खराब हो गया तो वह अपने मायके आ गई। स्वास्थ्य ठीक होने के बाद जब कृष्णा अपने ससुराल पहुंची तो उनके पति मोहन सिंह घर से गायब हो चुके थे। पिछले सोलह साल से कृष्णा अपने पति से नहीं मिली। दो भाईयों के बाद तीसरी बहन कृष्णा के मायके वालों की आर्थिक स्थिति भी कुछ खास नहीं थी। दोनों भाई मोहन  और त्रिलोक सिंह खेती बाड़ी कर जैसे तैसे अपने परिवार का गुजारा करते हैं। आर्थिक तंगी और समाज के ताने सुनकर कृष्णा ने अपने पांवों पर खड़े होने का निर्णय ले लिया। सात साल की नन्हीं बेटी प्रियंका को लेकर कृष्णा अल्मोड़ा आ गई। महीनों तक काम की तलाश की, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। मजबूरी में कृष्णा ने उद्यान विभाग में दैनिक वेतनभोगी के रूप में  सौ रुपये प्रतिदिन में काम करना शुरू कर दिया।

कृष्णा की दिक्कत तब बढ़ गई जब बड़े भाई मोहन सिंह की आर्थिक तंगी के कारण उनके बेटे परमवीर की पढ़ाई छूट गई। ऐसे वक्त में कृष्णा ने बड़े भाई का साथ दिया और उनके बेटे को गोद लेकर उसकी पढ़ाई का जिम्मा भी अपने कंधों पर ले लिया। सौ रुपये प्रतिदिन की कमाई में दो बच्चों का पालन पोषण काफी कठिन साबित हो रहा था। इसलिए काम के बाद कृष्णा ने लोगों के घरों में काम करना भी शुरू कर दिया। 2013 में कृष्णा ने जिला पंचायत में तीन हजार रुपये प्रतिमाह में दैनिक वेतन भोगी के रूप में नौकरी शुरू की। 2015 में पीआरडी जवानों की भर्ती हुई तो कृष्णा ने कड़ी मेहनत की और आज वह पीआरडी में चयनित होकर विभाग को अपनी सेवाएं दे रही हैं।

गोद लिए बेटे को एनडीए के बनाया लायक

अपनी पारिवारिक दिक्कतों के बाद भी कृष्णा ने हौंसले का परिचय देते हुए भतीजे परमवीर चौहान को गोद ले लिया और उसकी शिक्षा तमाम दिक्कतों के बाद भी रूकने नहीं दी। पांचवी कक्षा से कृष्णा के साथ रह रहे परमवीर ने विवेकानंद इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और बिना किसी कोचिंग के दिसंबर 2018 में उसने एनडीए की परीक्षा भी पास कर ली। वर्तमान में वह उड़ीसा के चिल्का में ट्रेनिंग ले रहे हैं।

बेटी प्रियंका को डाक्टर बनाने का है सपना

समाज में तमाम यातनाएं सहने के बाद भी कृष्णा ने कभी हार नहीं मानी। भतीजे को एनडीए में चयनित कराने के बाद अब वह अपनी बेटी प्रियंका को डॉक्टर बनाने की तमन्ना रखती है। बेटी ने एडम्स इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की है। प्रियंका ने हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है और वर्तमान में वह एसएसजे परिसर में बीएससी की छात्रा है।

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