बोलचाल में कुमाऊंनी का प्रयोग बढ़ाने पर जोर

संवाद सहयोगी, भीमताल : नौकुचियाताल मौनी माई आश्रम भक्तिधाम में आयोजित राष्ट्रीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेल

By JagranEdited By: Publish:Tue, 12 Nov 2019 09:38 AM (IST) Updated:Wed, 13 Nov 2019 06:14 AM (IST)
बोलचाल में कुमाऊंनी का प्रयोग बढ़ाने पर जोर
बोलचाल में कुमाऊंनी का प्रयोग बढ़ाने पर जोर

संवाद सहयोगी, भीमताल : नौकुचियाताल मौनी माई आश्रम भक्तिधाम में आयोजित राष्ट्रीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन के दूसरे दिन कुमाऊंनी भाषा व्याकरण और शब्दों के नवीनीकरण पर चिंतन किया गया। वक्ताओं ने बोलचाल में कुमाऊंनी का प्रयोग बढ़ाने पर खासा जोर दिया। उनका कहना था कि भाषा का प्रचार-प्रसार तभी होगा जब इसे सभी लोग अपनाने की पहल करेंगे।

इस मौके पर पद्मश्री डा. शेखर पाठक ने जनमानस से किसी भी स्थिति में अपनी बोलचाल की भाषा को न छोड़ने की अपील की। उन्होंने कहा कुमाऊंनी के प्रचार-प्रसार के लिए अपने घर से ही इसकी शुरुआत की जाए और घर के सदस्य आपस में इसका प्रयोग शुरू करें। उन्होंने पत्राचार तथा संवाद प्रेषण में कुमाऊंनी का प्रयोग बढ़ाने की सलाह देते हुए कहा कि इससे भी इसका प्रचार-प्रसार होगा। उन्होंने कहा शादी-विवाह के निमंत्रण पत्र तथा बधाई संदेशों में कुमाऊंनी भाषा का प्रयोग कर इसे बढ़ावा दिया जा सकता है।

लोक चिंतक एवं साहित्यप्रेमी राजीव लोचन साह ने कहा कुमाऊंनी बोलने में झिझक दूर करनी होगी। कई लोग संकोच के चलते कुमाऊंनी से परहेज करते हैं। कुमाऊंनी बोलने का यह मतलब कतई नहीं है कि उसे दूसरी भाषा की समझ नहीं है। इस दौरान कई अन्य वक्ताओं ने भी विचार रखे। सम्मेलन के दौरान कुमाऊंनी वर्ण पर विशेष चिंतन किया गया। इस दौरान वक्ताओं ने एक स्वर में कुमाऊंनी बोली जाने वाली शैली में एक ही शब्द होने की बात करते हुए शब्दों को चयनित कर सभी शैलियों में उसको शामिल करने की बात कही। कुमाऊंनी साहित्यकारों ने विभिन्न शब्दों में वर्ण पर विशेष चिंतन किया। डा. हयात सिंह रावत ने शब्दों तथा कुमाऊंनी व्याकरण के बारे में अवगत कराया। सम्मेलन में कुमाऊंनी डा. कीर्ति बल्लभ द्वारा रचित नाटक, नंदाबल्लभ का कहानी संग्रह सौल कठौल, गिरीश चंद्र हंसमुख का कौशल्या उपन्यास, पूरन चंद्र कांडपाल द्वारा लिखित हमार भाषा हमार पहचान पुस्तक और डा. चंद्रशेखर पाठक की कुमाऊंनी शब्द संरचना पुस्तक का विमोचन किया गया।

इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ पद्मश्री डा.शेखर पाठक, राजीव लोचन साह, जमन सिंह बिष्ट, हयात सिंह रावत, गोविंद बल्लभ बहुगुणा, नवीन चंद्र पाठक, ताराचंद्र त्रिपाठी, प्रकाश जोशी, केपीएस खाती आदि ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस मौके पर जीवन पोखरिया, अनिल चनौतिया, भानु लोशाली, जगदीश दफौटी, दीप चंद्र जोशी, संजीव पांडे, नवीन पांडे, महावीर सिंह चौहान, भीमेन्द्र सिंह बोहरा, राजेन्द्र ढैला, जगदीश नाथ गोस्वामी आदि उपस्थित थे।

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फोटो= 11 बीटीएल 6 से 9 तक

::: इनसेट

हमें दैनिक जीवन में कुमाऊंनी का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। जितना अधिक प्रयोग होगा उतना प्रचार होगा। नौनिहालों को भी सीखने की प्रेरणा देनी होगी। इसका जितना अधिक प्रयोग करेंगे उतना ही प्रचार होगा और क्षेत्र को पहचान मिलेगी।

-पद्मश्री शेखर पाठक, इतिहासकार

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कुमाऊंनी भाषा बोलने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। आमतौर पर देखा गया है कि एक ही क्षेत्र के होने के बावजूद हम आपस में बोलते समय अपनी भाषा का प्रयोग नहीं करते जबकि अन्य भाषा-भाषी लोग अक्सर आपस में अपनी ही स्थानीय भाषा का प्रयोग करते है।

-राजीव लोचन साह, लोक चिंतक

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इनसेट

कुमाऊंनी भाषा हर क्षेत्र में अलग अलग ढंग से बोली जाती है। उसको बोलने का ढंग अलग होता है। उसके कई शब्द भी बदल जाते हैं। सम्मेलन में एक ही शब्द को प्रयोग करने पर चिंतन किया जा रहा है। ताकि एकरूपता बनी रहे।

-जमन सिंह बिष्ट, साहित्यकार

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कुमाऊंनी में कई शब्द ऐसे हैं जिनका प्रयोग हम करते हैं, उसके वर्ण अलग हैं। इन वर्णो में भी शब्दवार सम्मेलन में चिंतन किया गया। कौन शब्द ठीक है और किस शब्द का प्रयोग करना चाहिए आदि पर विद्वानों की राय ली जा रही है।

-प्रकाश उनियाल, साहित्यकार

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