पीसीएस अधिकारियों की वरिष्ठता पर फिर सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड सरकार

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद शासन में अभी तक पीसीएस अधिकारियों की वरिष्ठता को लेकर कोई निर्णय नहीं हो पाया है। कारण सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के कुछ अंश ऐसे हैं जिनमें वरिष्ठता को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Tue, 20 Oct 2020 06:45 AM (IST) Updated:Tue, 20 Oct 2020 06:45 AM (IST)
पीसीएस अधिकारियों की वरिष्ठता पर फिर सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड सरकार
पीसीएस अधिकारियों की वरिष्ठता पर फिर सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड सरकार।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद शासन में अभी तक पीसीएस अधिकारियों की वरिष्ठता को लेकर कोई निर्णय नहीं हो पाया है। कारण, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के कुछ अंश ऐसे हैं, जिनमें वरिष्ठता को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है। ऐसे में सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट से संबंधित आदेश को स्पष्ट करने का अनुरोध किया है। प्रदेश में वर्ष 2010 से ही सीधी भर्ती और पदोन्नत पीसीएस के बीच वरिष्ठता का विवाद चल रहा है। 

दरअसल, उत्तर प्रदेश से अलग होकर वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड का गठन हुआ, तब उत्तर प्रदेश से काफी कम पीसीएस अधिकारी उत्तराखंड आए। अधिकारियों की कमी को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने तहसीलदार और कार्यवाहक तहसीलदारों को तदर्थ पदोन्नति देकर उपजिलाधिकारी (एसडीएम) बना दिया था। यह सिलसिला वर्ष 2003 से 2005 तक चला। 

इसी दौरान वर्ष 2005 में सीधी भर्ती से 20 पीसीएस अधिकारियों का चयन हुआ। विवाद की स्थिति तब पैदा हुई, जब उत्तराखंड शासन ने अधिकारियों की पदोन्नति के लिए वर्ष 2010 में एक सीधी भर्ती व एक तदर्थ पदोन्नति का फॉर्मूला तैयार कर आपत्तियां मांगी। पदोन्नत पीसीएस अधिकारियों ने इस पर एतराज जताते हुए पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। 

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इसी वर्ष फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया। इसे सीधी भर्ती वालों ने अपनी जीत बताया और शासन से इसी आधार पर पदोन्नति करने की मांग की। वहीं पदोन्नत पीसीएस ने इसी आदेश के एक अंश का उल्लेख करते हुए इसे अपने हक में बताया। काफी मंथन के बाद शासन ने अब इस मामले में फिर से सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है। शासन ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह आदेश को लेकर स्थिति स्पष्ट करे।

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