सरकार सेल्फ क्वारंटाइन में क्या गई, उत्तराखंड बोर्ड की पूरी कसरत भी हो गई क्वारंटाइन

सरकार सेल्फ क्वारंटाइन में क्या गई उत्तराखंड बोर्ड की पूरी कसरत भी क्वारंटाइन हो गई। हाईस्कूल व इंटर के 13 विषयों की बोर्ड परीक्षाएं अभी होनी हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Thu, 04 Jun 2020 03:52 PM (IST) Updated:Thu, 04 Jun 2020 03:52 PM (IST)
सरकार सेल्फ क्वारंटाइन में क्या गई, उत्तराखंड बोर्ड की पूरी कसरत भी हो गई  क्वारंटाइन
सरकार सेल्फ क्वारंटाइन में क्या गई, उत्तराखंड बोर्ड की पूरी कसरत भी हो गई क्वारंटाइन

देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। सरकार सेल्फ क्वारंटाइन में क्या गई, उत्तराखंड बोर्ड की पूरी कसरत भी क्वारंटाइन हो गई। हाईस्कूल व इंटर के 13 विषयों की बोर्ड परीक्षाएं अभी होनी हैं। बोर्ड ने तमाम पहलुओं को ध्यान में रखकर खासी मशक्कत के बाद 20 से 23 जून के बीच परीक्षाओं का कार्यक्रम प्रस्तावित किया। साथ ही शासन स्तर पर बातचीत के बाद जून के पहले हफ्ते में बोर्ड की कॉपियों के मूल्यांकन का खाका भी तैयार किया गया। 29 मई को कैबिनेट बैठक में शामिल पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव पाए जाने के बाद मुख्यमंत्री और बैठक में शामिल तीन मंत्रियों के साथ शासन के आला अधिकारियों ने सेल्फ क्वारंटाइन कर लिया। ऐसे में सरकार के कामकाज पर असर पड़ना ही था। बोर्ड की शेष परीक्षाओं और मूल्यांकन को लेकर फाइल सचिवालय के बंद कमरों में क्वारंटाइन हो गई। इंतजार किया जा रहा है कि सरकार क्वारंटाइन से जल्द बाहर आए।

स्कूलों के खुलने पर संकट

प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढऩे से शिक्षण संस्थाओं के जल्द खुलने को लेकर एक बार फिर असमंजस गहरा गया है। केंद्र सरकार ने शिक्षण संस्थाओं को खोलने का फैसला राज्य सरकार पर छोड़ा है। यह फैसला अनलॉक-वन के बाद फेज-दो में लिया जाना है। इस बारे में जिलेवार अभिभावकों समेत विभिन्न स्तरों से फीडबैक जुटाने के निर्देश भी हैं। इसके आधार पर ही केंद्र सरकार अपना रुख साफ करेगी। दो महीने से ज्यादा अरसे से बंद पड़े शिक्षण संस्थाओं ने कोरोना का कहर थमने के बाद अगले महीने जुलाई से कुछ राहत मिलने की उम्मीदें बांधी हैं। ये उम्मीद क्षीण पड़ती दिख रही हैं। वजह कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ने से अभिभावकों में खौफ तारी है। जो निजी स्कूल संचालक पहले गर्मियों की छुट्टियों में स्कूल खोलने की पैरवी कर रहे थे, वे भी हक्के-बक्के हैं। ऐसे में हालात सामान्य होने पर नजरें टिक गई हैं।

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गुरुजनों की मुश्किल हुई दूर

शिक्षा महकमे में इन दिनों से अजीब सी बेचैनी है। कोरोना महामारी के संबंध में राज्य सरकार ने जो गाइडलाइन जारी की है, उसके मुताबिक 55 वर्ष से अधिक उम्र के शिक्षकों और 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की माता शिक्षिकाओं से कोई भी सरकारी कामकाज लेने से भरसक बचा जाएगा। उम्रदराज कर्मचारियों और छोटे बच्चों पर कोरोना के संक्रमण का खतरा ज्यादा है। इस बीच शिक्षा निदेशालय ने सभी शिक्षकों की विद्यालयों में उपस्थित रहने के आदेश दिए। प्रधानाचार्यों ने इस पर अमल शुरू किया तो उम्रदराज और छोटे बच्चों की माता शिक्षिकाओं की बेचैनी बढ़ गई। उनके लिए ये समझना मुश्किल हो गया है कि सरकार की ओर से पहले जारी आदेश को माना जाए या निदेशालय के फरमान को। समाधान शिक्षा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने निकाला। उन्होंने पहले जारी आदेश को बतौर गाइडलाइन अमल में लाने की हिदायत दी तो शिक्षकों को राहत मिली।

कोरोना ने दिलाया नया मौका

कोरोना महामारी का यह संकटकाल किसी के लिए नए अवसर की तरह भी है। फिलहाल राजकीय शिक्षक संघ उत्तराखंड को ऐसा ही अवसर मिल गया है। शिक्षा निदेशक ने संघ की मौजूदा प्रांतीय कार्यकारिणी को ही अगला अधिवेशन होने तक काम करने का हुक्म सुना दिया है। कार्यकाल खत्म होने की वजह से संघ के पदाधिकारी कार्यकारिणी भंग करने की तैयारी कर रहे थे। इस बीच महकमे ने मौजूदा कार्यकारिणी पर राहत बरसा दी। कारण कोरोना का संकट काल ही है। इस वजह से पूरे प्रदेश में सरकारी माध्यमिक विद्यालय बंद हैं। अधिवेशन कराने को लेकर संघ ने बहुत हाथ-पांव मारे, लेकिन यह मुमकिन नहीं हो सका। संघ के अहम पदों पर बैठने की चाह में कई शिक्षक नेता मैदान में डटे हैं। इनमें कई नेता गाहे-बगाहे संघ के पदाधिकारियों को शिक्षकों के मुद्दों को लेकर घेरते रहे हैं। फिलहाल मौजूदा कार्यकारिणी नया अवसर मिलने का लाभ उठा रही है।

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