खेतों में पसीना बहाकर परिवार को सींचती नारी

देहरादून जिले के जौनसार में तीन महिलाओं ने सबके सामने मिसाल पेश की है। यह तीनों महिलाएं बिना किसी सहारे के अपने परिवार का गुजर बसर कर रही हैं।

By raksha.panthariEdited By: Publish:Sun, 15 Oct 2017 05:23 PM (IST) Updated:Sun, 15 Oct 2017 08:28 PM (IST)
खेतों में पसीना बहाकर परिवार को सींचती नारी
खेतों में पसीना बहाकर परिवार को सींचती नारी

त्यूणी , [चंदराम राजगुरु]: पहाड़ की पहाड़ सरीखी परिस्थितियों में पुरुष किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतीबाड़ी में हाथ बंटा रही जौनसार की तीन संघर्षशील महिलाओं ने कड़ी मेहनत से समाज के सामने अनुकरणीय मिसाल पेश की है। पति की मौत के बाद घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाली ये महिलाएं बटाई पर खेतीबाड़ी करने के साथ ही पशुपालन से अपने परिवार की गुजर कर रही हैं। खेतों में पसीना बहाकर परिवार को सींच रही विपदा की मारी इन महिलाओं ने साबित कर दिखाया है कि वक्त पड़ने पर नारी चट्टान जैसी कठोर भी हो सकती है। 

कहते हैं कि जीवन में तमाम परेशानियां झेलने के बाद जो संकट से बाहर निकल जाए, सही मायने में वही सच्चा इन्सान है। जौनसार-बावर के लखवाड़ निवासी 47 वर्षीय विमला देवी, लाखामंडल की 55 वर्षीय पानो देवी व हेडसू निवासी 52 वर्षीय मेघो देवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। नारी सशक्तीकरण की मिसाल बनी पांच दर्जा पास इन महिलाओं को काफी हद तक एक जैसे हालात से ही रूबरू होना पड़ा। शादी के कुछ समय बाद लखवाड़ की विमला देवी के पति का निधन हो गया। नतीजा दो बच्चों समेत परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी विमला पर ही आ गई। तब उसने बटाई पर खेतीबाड़ी व पशुपालन को रोजी-रोटी का जरिया बनाया और दोनों बच्चों को पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया। 

आज विमला का बड़ा बेटा सतपाल उत्तराखंड पुलिस में है, जबकि छोटा बेटा धर्मपाल पढ़ाई कर रहा है। इतना ही नहीं, विमला ने गांव में अपना नया आशियाना बनाया और जौनसारी रीति-रिवाज से बड़े बेटे की शादी भी रचाई। 

कुछ ऐसी ही कहानी लाखामंडल की पानो देवी व अटाल-हेडसू निवासी मेघो देवी की भी है। लाखामंडल की पानो देवी का पति शादी के कुछ समय बाद उसे छोड़कर चला गया। पति के लापता होने से परिवार में तीन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई व भरण-पोषण की जिम्मेदारी पानो के कंधों पर आ गई। ऐसे में उसने भी पुरुष किसानों की तरह खेतों में हल जोतकर साग-सब्जी उगाना शुरू किया। धीरे-धीरे पानो की मेहनत उसके परिवार का संबल बन गई। हेडसू-अटाल की मेघो देवी के बीमार पति का भी 12 साल पहले निधन हो गया था। ऐसे में घर-परिवार का सारा बोझ उसे अकेले उठाना पड़ा। चार बच्चों की पढ़ाई-लिखाई व घर का खर्चा चलाने के लिए मेघो देवी ने खेतों में हाड़तोड़ मेहनत की। साथ ही कुछ रकम बचाकर अपनी दो बेटियों की शादी भी रचाई। मेघो के दो शिक्षित बेटे फिलहाल नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। 

प्रगतिशील किसान प्रेमचंद शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता एवं तरुण संघ खत लखवाड़ के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र चौहान व जौनसार-बावर जनकल्याण विकास समिति लाखामंडल की अध्यक्ष बचना शर्मा कहती हैं कि आमतौर पर पहाड़ में महिलाएं भी पुरुषों के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटाती हैं। लेकिन विपदा की मारी इन महिलाओं ने अकेले ही सब-कुछ संभाला। 

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