गांधी पार्क घोटाले पर नगर निगम बोर्ड बैठक में घमासान के आसार

गांधी पार्क में अमृत योजना के बजट में लाखों के घोटाले पर नगर निगम की पहली बोर्ड बैठक में इस मामले पर घमासान तय माना जा रहा।

By BhanuEdited By: Publish:Mon, 25 Feb 2019 09:26 AM (IST) Updated:Mon, 25 Feb 2019 09:26 AM (IST)
गांधी पार्क घोटाले पर नगर निगम बोर्ड बैठक में घमासान के आसार
गांधी पार्क घोटाले पर नगर निगम बोर्ड बैठक में घमासान के आसार

देहरादून, जेएनएन। गांधी पार्क में अमृत योजना के बजट में लाखों के घोटाले पर नगर निगम प्रशासन ने भले ही पर्दा डाल दिया हो, लेकिन नगर निगम के नए बोर्ड की पहली बोर्ड बैठक में इस मामले पर घमासान तय माना जा रहा। इस मामले में कांग्रेस पार्षद ही नहीं, भाजपाई पार्षद भी दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। स्थिति यह है कि पिछले साल जून में सामने आया यह मामला तत्कालीन नगर आयुक्त ने दबा दिया था।

अब नए नगर आयुक्त ने मामले की जांच त्रिस्तरीय कमेटी से कराने की तो बात कही, लेकिन अब तक जांच शुरू ही नहीं हुई। यह पहला मामला नहीं है, जब निगम ने घोटालों की फाइल बिना जांच ही दफन की हो, इससे पहले सोडियम लाइट, टायर खरीद, पोकलैंड मशीन खरीद घोटाले जैसे चर्चित मामले ऐसे ही दबाए गए।

सूचना के अधिकार में यह खुलासा हुआ था कि अमृत योजना में बनाए किड्स जोन में लाखों रुपये का घोटाला हुआ है। इसके अलावा पार्क में गुणवत्ता भी ताक पर रखी गई। बाजार में में पांच से छह हजार रूपये में मिल रही एलईडी लाइट 28,600 रुपये की दर पर खरीदी गईं।

बैठने वाली बैंच भी 18,000 की दर पर खरीदी गई। सामान्य पोलों की खरीद 55 हजार प्रति पोल की पर की गई। इतना ही नहीं बच्चों की टॉय ट्रेन साढ़े 12 लाख रुपये में खरीदी गई और हैरानी वाली बात ये है कि इसकी टीन शेड पर ही नगर निगम अधिकारियों ने 10 लाख रुपये का खर्च आना दर्शाया।

मामला शासन स्तर पर पहुंचा तो 30 जून 2018 को तत्कालीन नगर आयुक्त विजय कुमार जोगदंडे ने मामले में अपर नगर आयुक्त नीरज जोशी को जांच अधिकारी नामित किया। साथ ही ठेकेदार की शेष पचास लाख रुपये की धनराशि का भुगतान भी रोक दिया गया।

हैरानी की बात ये है कि नगर आयुक्त और अपर आयुक्त के कमरे अगल-बगल हैं लेकिन जांच आदेश पत्र अपर आयुक्त को मिलने में 28 दिन लग गए थे। पत्र मिलने के एक हफ्ते बाद ही अपर आयुक्त ने मामले से खुद को अलग कर लिया था। तत्कालीन आयुक्त की ओर से दूसरे अधिकारी को जांच सौंपी ही नहीं गई।

जनवरी में मामले को उजागर करने वाले भाजपा पार्षद अजय सिंघल ने वर्तमान नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय से मिलकर मामले की जानकारी दी। नगर आयुक्त ने मामले में त्रिस्तरीय कमेटी जांच कराने की बात कही थी, लेकिन ऐसा कोई आदेश हुआ ही नहीं। ऐसे में पार्षद अजय सिंघल ने बताया कि वे 28 फरवरी को हो रही बोर्ड बैठक में ये मामला उठाएंगे और मामले में निर्माण अनुभाग व अमृत योजना के अफसरों के विरुद्ध शासन में शिकायत करेंगे।

बिना सत्यापन पास किए बिल

किड्स जोन अमृत योजना का पहला ऐसा प्रोजेक्ट है, जो वजूद में आ चुका है। इसके अलावा अमृत योजना में ही गांधी पार्क में डेढ़ करोड़ रुपये से सौंदर्यीकरण का काम अलग से चल रहा। इसके साथ ही करीब 60 करोड़ रुपये से सीवरेज व ड्रेनेज के काम भी चल रहे हैं। पार्षदों के आरोप हैं कि निगम अधिकारियों ने निर्माण कार्य के सत्यापन के बिना ही ठेकेदारों के बिल पास किए।

अफसरों पर लगे हैं गंभीर आरोप

केंद्र सरकार की अमृत योजना के तहत ढाई वर्ष पहले गांधी पार्क में किड्स जोन बनाने के लिए डेढ़ करोड़ रुपये का बजट मंजूर हुआ था। शुरुआत में खुलासा हुआ कि ठेकेदार नई ईंटों के बदले पुरानी और घटिया ईंटें और निम्न गुणवत्ता की निर्माण सामग्री प्रयोग कर रहा है।

तत्कालीन नगर आयुक्त रवनीत चीमा ने ठेकेदार को मामले में चेतावनी जारी की थी। पार्क में निर्माण कार्य की गुणवत्ता जांचने का जिम्मा अमृत व नगर निगम के निर्माण अनुभाग के जुड़े अधिकारियों का था।

आरोप है कि निगम अधिकारियों ने अपने निरीक्षण में गंभीरता के बजाए लचीला रुख अपनाया व ठेकेदार मनमाने रेट पर सामान खरीदकर इसे निगम अधिकारियों से स्वीकृत कराता रहा। इतना ही नहीं बाजारी भाव से कईं गुना अधिक रेट पर सामान खरीदा गया। प्रत्येक सामान के मूल्य का परीक्षण करना था, लेकिन यह प्रक्रिया पूरी तरह से दरकिनार कर ठेकेदार को लाभ पहुंचाया गया।

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