डायरिया के खिलाफ 'जंग' में महकमा खाली हाथ, पढ़िए पूरी खबर

जिन दवाओं के बूते डायरिया की रोकथाम की बात कही जा रही है वह अभी तक विभाग को मिल ही नहीं पाई हैं। यहां तक की दवाओं की खरीद की स्वीकृति तक खटाई में पड़ी है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Wed, 17 Apr 2019 04:08 PM (IST) Updated:Fri, 19 Apr 2019 08:55 AM (IST)
डायरिया के खिलाफ 'जंग' में महकमा खाली हाथ, पढ़िए पूरी खबर
डायरिया के खिलाफ 'जंग' में महकमा खाली हाथ, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। डायरिया के खिलाफ 'जंग' की तैयारी कर रहे स्वास्थ्य महकमे के हाथ अभी खाली हैं। जिन दवाओं के बूते डायरिया की रोकथाम की बात कही जा रही है, वह अभी तक विभाग को मिल ही नहीं पाई हैं। यहां तक की दवाओं की खरीद की स्वीकृति तक खटाई में पड़ी है। जिसने अधिकारियों को भी चिंता में डाल दिया है। 

प्रदेश में 28 मई से सघन डायरिया नियंत्रण पखवाड़े की शुरुआत होनी है। पर अभी तक न ओआरएस खरीदा गया है और न जिंक टैबलेट। प्रदेश में आचार संहिता लगी है और किसी भी नए कार्य के लिए निर्वाचन आयोग की अनुमति लेना अनिवार्य है। जिस  पर विभाग ने फाइल स्वीकृति के लिए भेजी है, पर मंजूरी अभी तक भी नहीं मिली है। इस स्थिति में अधिकारियों के माथे पर बल पडऩे लगे हैं। क्योंकि स्वीकृति आने के बाद दवा की खरीद में भी वक्त लगेगा। 

बता दें, डायरिया के खिलाफ हर साल अभियान चलाया जाता है। गत वर्ष प्रदेशभर में तकरीबन साढ़े 11 लाख बच्चों को ओआरएस और जिंक की गोली दी गई थी। अस्पतालों के साथ ही आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से इन्हें वितरित किया गया। यह अलग बात है कि पिछले साल भी अभियान कई बार स्थगित करना पड़ा। अभियान जून में होना था, पर यह सितम्बर में हो सका था। 

दरअसल, डायरिया पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। एक सर्वे के अनुसार इस आयु वर्ग के बच्चों में होने वाली कुल मुत्यु का 10 प्रतिशत कारण डायरिया है। इस कारण बच्चों में कुपोषण का स्तर बढ़ जाता है और शारीरिक विकास बाधित होता है। जिसे देखते हुए डायरिया से बचाव एवं रोकथाम के लिए प्रदेश स्तर पर अभियान चलाया जाता है। स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. रविंद्र थपलियाल के अनुसार इस मामले में निर्वाचन आयोग से अनुमति मांगी गई है। अनुमति मिलते ही बिना विलम्ब दवा की खरीद की जाएगी। अभियान शुरू होने से पहले दवा की इंतजाम कर लिया जाएगा। 

रेडिएशन सेफ्टी के लिए अस्पतालों में 'गैप एनालिसिस' 

प्रदेशभर के सरकारी चिकित्सालयों और मेडिकल कॉलेजों में रेडिएशन सेफ्टी के लिहाज से पुख्ता व्यवस्था बनाई जा रही है। इसके तहत प्रत्येक अस्पताल का गैप एनालिसिस किया जा रहा है। जहां भी रेडियोलॉजिकल उपकरण स्थापित हैं, उन चिकित्सालयों से भारत सरकार द्वारा प्रदत्त मैपिंग फार्मेट में जानकारी मांगी गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक अंजलि नौटियाल ने इस बावत निर्देश जारी किए हैं। 

बता दें, एटॉमिक एनर्जी रेग्यूलेटरी बोर्ड ने एक्स-रे, सीटी स्कैन, बीएमडी, डेंटल एक्स-रे, मेमोग्राफी आदि को लेकर गाइडलाइन तय की हुई है। रेडिएशन सेफ्टी के तहत अस्पताल के पास बोर्ड का लाइसेंस होना चाहिए। रेडिएशन का एक्सपोजर शरीर पर कितना पड़ रहा है, इसकी माप के लिए रेडियोग्राफर को टीएलडी बैच लगाने होते हैं। इसके अलावा लेड एप्रेन, मशीनों का क्वालिटी एश्योरेंस व अन्य नियम भी बनाए गए हैं। कारण यह कि रेडिएशन से कई खतरनाक बीमारी होने की संभावना रहती है। इसमें कैंसर, किडनी का खराब होना, लीवर खराब होना, हृदयघात सहित अन्य घातक बीमारिया शामिल है। 

यह रेडिएशन करीब दस से 15 साल के बाद असर दिखाते हैं और बीमारी का रूप ले लेते हैं। खासकर कर्मचारी तो लगातार रेडिएशन के एक्सपोजर में रहते हैं। करीब दो साल पहले एटॉमिक एनर्जी रेग्यूलेटरी बोर्ड की टीम ने प्रदेशभर के अस्पतालों का निरीक्षण किया था। जिसमें कई स्तर पर खामियां मिली थी। कुछ जगह खामियां दुरुस्त की गई, तो कई जगह अभी भी स्थिति अच्छी नहीं है। ऐसे में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने इसे लेकर एक अहम कदम उठाया है। 

बताया गया कि रेडिएशन सेफ्टी के लिए प्रदेशभर में एक कंपनी को अनुबंधित किया जाएगा। जो तय गाइडलाइन के अनुसार व्यवस्थाएं करेगी। इसके लिए केंद्र से बजट भी स्वीकृत हो चुका है। 

दून मेडिकल कॉलेज में डायलिसिस ठप 

दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में आने वाले गुर्दा रोग से पीड़ित मरीज परेशान हैं। अस्पताल की तीनों डायलिसिस मशीन ठप हो गई हैं। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि मशीनें अब ठीक होने की भी स्थिति में नहीं हैं और नई मशीन की व्यवस्था में वक्त लगेगा। ऐसे में मरीजों को रेफर किया जा रहा है। 

दून अस्पताल में तकरीबन 15 साल पहले डायलिसिस की तीन मशीनें लगी थीं। बीपीएल मरीजों का निश्शुल्क व अन्य मरीजों का बहुत कम शुल्क पर डायलिसिस किया जा रहा था। वहीं अब अटल आयुष्मान योजना के तहत मरीजों को इस सेवा का निश्शुल्क लाभ मिल रहा था। हर दिन अस्पताल से लगभग तीस डायलिसिस होते हैं। लेकिन, सही ढंग से रखरखाव न होने के कारण मशीनें पूरी तरह ठप हो गई हैं। 

अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने बताया कि दो दिन बाद बैठक होनी है। जिससे तय होना है कि पुरानी मशीनों की मरम्मत कराई जाए या नई खरीदी जाए। जब तक मशीन ठीक नहीं होती है, तब तक मरीजों को अटल आयुष्मान योजना के तहत रेफर किया जा रहा है। 

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