स्वतंत्रता सैनानी आरएल अवस्थी का निधन, बेटी ने दी मुखाग्नि

आजाद हिंद फौज में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के खास सिपहसलारों में शामिल कैप्टन आरएल अवस्थी ने जाखन स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। उनकी बड़ी बेटी मिनाक्षी सूद ने मुखाग्नि दी।

By BhanuEdited By: Publish:Wed, 22 Mar 2017 11:57 AM (IST) Updated:Thu, 23 Mar 2017 03:30 AM (IST)
स्वतंत्रता सैनानी आरएल अवस्थी का निधन, बेटी ने दी मुखाग्नि
स्वतंत्रता सैनानी आरएल अवस्थी का निधन, बेटी ने दी मुखाग्नि

देहरादून, [जेएनएन]: 'दो जून की रोटी को तरसते लोगों को देखकर छाती फटती है। क्या इन्हीं दिनों के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी। काला पानी का दंश झेला। आखिर कब गरीबी से लोगों को मुक्ति मिलेगी। दिल्ली में बैठक कर योजना बनाई जाती हैं, लेकिन जनता को इसका लाभ मिलता नहीं। 

आजाद हिंद फौज में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के खास सिपहसलारों में शामिल कैप्टन आरएल अवस्थी देश की समस्याओं को लेकर ऐसा ही कुछ कहा करते थे। उन्होंने जाखन स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। वह 98 वर्ष के थे। उनकी बड़ी बेटी मिनाक्षी सूद ने मुखाग्नि दी। 

आजादी के आंदोलन के दौरान आरएल अवस्थी को भी फांसी की सजा सुनाई गई थी और उन्हें अंडमान निकोबार स्थित तन्हा जेल में रखा गया था। आजाद हिंद फौज के जिन अफसरों के केस की लाल किले में सुनवाई हुई थी, उनमें आरएल अवस्थी भी शामिल थे। 

मिनाक्षी सूद ने बताया कि पिताजी सिस्टम को लेकर काफी चिंतित रहते थे। वह अधिकारों के विकेंद्रीकरण के पक्षधर थे। उनका कहना था कि कोई योजना पंचायत स्तर से बननी चाहिए, न कि दिल्ली से। दिल्ली में बैठे नेताओं और अफसरों को जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं होती है। वातनुकूलित कमरों में बैठकर बनने वाली योजनाओं से जनता का भला नहीं होता। तभी आजादी के बाद से अब तक बड़ी आबादी के पास रहने के लिए घर नहीं हैं। खाने तक के लाले हैं। आखिर कब देश बदलेगा। 

वह अक्सर देशभक्ति के गीतों को गुनाते हुए आंदोलन की बातें लोगों को बताया करते थे। उन्होंने बताया कि चाहते थे कि देश में शिक्षा की अनिवार्यता हो, तभी देश बदल सकता है। 

30 साल अफ्रीका में रहे शिक्षक 

आरएल अवस्थी की छोटी बेटी किरण दवे ने बताया कि आजादी के बाद उन्होंने 30 साल तक अफ्रीका के जैमिया और युगांडा में शैक्षिक कार्य किया। उन्हें पढऩे का बहुत शौक था। उनके पास कुल 13 डिग्री थी। 

जाति और धर्मवाद के खिलाफ थे

आरएल अवस्थी का जन्म करीब 98 साल पहले उन्नाव के बीगापुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका घरेलू नाम मुन्नु था। मिनाक्षी सूद ने बताया कि वह जाति और धर्मवाद के विरोधी थे। वह हमेशा कहते थे कि इस समस्या ने देश को बांटने और कमजोर करने का काम किया। इससे देश को कुछ मिला तो नहीं, लेकिन खोया बहुत कुछ है। 

किताब भी लिखी 

मिनाक्षी सूद ने बताया कि आरएल अवस्थी में 'भारत मां के श्री चरणों में' किताब भी लिखी है। यह यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। इसमें उन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर अब तक अनुभवों को शामिल किया है। 

नहीं होता था विश्वास 

आरएल अवस्थी के पारिवारिक मित्र भी उत्तर प्रदेश से देहरादून पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि 'अक्सर अवस्थी जी पुरानी यादें ताजे करते हुए सुभाषजी का जिक्र करते थे। लोग पूछते थे कि ये सुभाषजी कौन हैं, तब वह कहते थे कौन क्या, नेताजी। 

लोग आश्चर्यचकित हो जाते थे और कहते थे कि आप उनसे मिले थे। तब वह मुस्कुराते हुए कहते थे मिले थे नहीं। बल्कि उनके साथ रहते थे, खाते थे और आजादी की लड़ाई लड़ते थे।

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