संत को जल नहीं अग्नि समाधि दी जाए

अखाड़ों में अब महिला संतों को भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जाने लगी है। वेद निकेतन स्वर्गाश्रम में साध्वी दिव्यानंद सरस्वती का महामंडलेश्वर पट्टाभिषेक समारोह आयोजित किया गया।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 28 Aug 2020 03:00 AM (IST) Updated:Fri, 28 Aug 2020 06:19 AM (IST)
संत को जल नहीं अग्नि समाधि दी जाए
संत को जल नहीं अग्नि समाधि दी जाए

जागरण संवाददाता, ऋषिकेश : अखाड़ों में अब महिला संतों को भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जाने लगी है। वेद निकेतन स्वर्गाश्रम में साध्वी दिव्यानंद सरस्वती का महामंडलेश्वर पट्टाभिषेक समारोह आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी नरेंद्र गिरी ने कहा कि गंगा संरक्षण के लिए संतो को जल समाधि की बजाए अग्नि समाधि दी जाए। जिसके लिए उन्होंने सरकार से भूमि उपलब्ध कराने का भी आग्रह किया गया है।

स्वर्गाश्रम वेदनिकेतन धाम आश्रम में साध्वी स्वामी दिव्यानंद सरस्वती (माता संतोष भारती) शिष्या ब्रह्मलीन महामंलेश्वर विश्वगुरु मुनिशानंद का महामंडलेश्वर के रूप में पट्टाभिषेक किया गया। पंचपरमेश्वर पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी एवं श्री आनंद पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर बालकानंद गिरी महाराज की अध्यक्षता में चादर विधि पट्टाभिषेक प्रक्रिया संपन्न हुई। समारोह में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी नरेंद्र गिरी ने संत समाज से गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने का आह्वान किया। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि संत समाज पर देश को आगे ले जाने की बड़ी जिम्मेदारी है। गो गंगा गायत्री की सेवा से बड़ा कोई पुण्य कार्य नहीं है। समारोह में स्वामी रविन्द्र पुरी, विश्व हिदू परिषद के केंद्रीय नेता दिनेश चंद्र, यमकेश्वर की विधायक रितु खंडूड़ी, दायित्व धारी नरेश बंसल, स्वामी रामेश्वर दास, कार्यक्रम आयोजक स्वामी विजयानंद सरस्वती सहित श्री निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर और साधु-संतों के साथ अन्य अखाड़ों के महामंडलेश्वर एवं संत शामिल थे।

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1970 में हुई वेद निकेतन की स्थापना

साध्वी स्वामी दिव्यानंद सरस्वती ने बाल्यकाल में ही सन्यास ग्रहण कर लिया था और वर्ष1965 में ऋषिकेश आ गई थी। उनके शिष्य स्वामी विजयानंद सरस्वती ने बताया कि उन्होंने अपने गुरु विश्व विख्यात योगी महामंडलेश्वर स्वामी विश्वगुरु मुनिशानंद के साथ मिलकर वर्ष 1970 में श्री वेदनिकेतन धाम आश्रम की स्थापना की। गुरु के सानिध्य में अष्टांग योग और अध्यात्म में कई उपलब्धियां हासिल की। देश तथा विदेश में योग और अध्यात्म का प्रचार प्रसार किया। विश्व गुरु मुनिशानंद के ब्रह्मलीन होने के उपरांत उनकी गद्दी स्वामी दिव्यानंद सरस्वती ही संभाल रहीं हैं।

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