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Drought in Uttarakhand: पहाड़ पर सूखे जैसे हालात, बारिश नहीं होने से तप रही जमीन; 30 हजार क्विंटल आलू की फसल पर संकट

Drought in Uttarakhand कुमाऊं के तीन नैनीताल चंपावत और बागेश्वर जिलों में आलू का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। पहाड़ों पर आलू की खेती किसानों की आर्थिकी की रीढ़ है। खासकर नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर धारी खनस्यू पदमपुरी भीमताल आदि क्षेत्र में आलू की खूब पैदावार होती है। बारिश नहीं होने से पहाड़ पर सूखे की स्थितियां बन गई हैं।

By Deep belwal Edited By: Nirmala Bohra Published: Thu, 02 May 2024 11:33 AM (IST)Updated: Thu, 02 May 2024 11:33 AM (IST)
Drought in Uttarakhand: बारिश नहीं होने से तप रही जमीन, आलू को चाहिए पानी

दीप बेलवाल, जागरण हल्द्वानी : Drought in Uttarakhand: नैनीताल, चंपावत और बागेश्वर। कुमाऊं के इन तीन जिलों में आलू का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। हल्द्वानी मंडी में जून से लेकर सितंबर तक रोजाना 250 क्विंटल आलू बिकने को आता है।

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इस हिसाब से चार महीने में औसतन 30,500 क्विंटल आलू मंडी में पहुंच जाता है, जिससे किसानों की अच्छी आमदनी होती है, मगर इस बार हालात बदले हुए हैं। बारिश नहीं होने से पहाड़ पर सूखे की स्थितियां बन गई हैं। जमीन में आलू तप रहा है और फसल पर संकट मंडरा रहा है। किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं।

आलू की खेती किसानों की आर्थिकी की रीढ़

पहाड़ों पर आलू की खेती किसानों की आर्थिकी की रीढ़ है। खासकर नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर, धारी, खनस्यू, पदमपुरी, भीमताल आदि क्षेत्र में आलू की खूब पैदावार होती है। बाजार में पहाड़ का आलू पहुंचते ही देसी आलू के भाव गिर जाते है। लोगों की जुबां पर पहाड़ी आलू की डिमांड रहती है, मगर इस बार बारिश नहीं होने से किसानों को चिंता सता रही है।

किसानों का कहना है कि इस समय आलू की फसल बाजार में आने को तैयार खड़ी है। इसलिए बारिश की सख्त जरूरत है। बारिश नहीं होने से आलू बड़ा आकार नहीं ले पाएगा। कीड़े लगने का भी खतरा बढ़ेगा। जमीन के तपने से आलू के सड़ने का भी खतरा रहता है। खेतों में खड़े पौधों की पत्तियां सूखने लगी हैं। किसानों का कहना है कि कीड़े से एक बार फसल बचा सकते हैं, लेकिन बारिश नहीं हुई तो फसल चौपट हो जाएगी।

पूरे भारत में पहाड़ी आलू की डिमांड

आलू फल आढ़ती एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष केशवदत्त पलड़िया का कहना है कि पहाड़ी आलू की डिमांड पूरे भारत में होती है। मोटा आलू दिल्ली जाता है। मध्यम आकार का आलू कोलकाता, आगरा, गुजरात समेत अन्य राज्यों में पहुंचता है। उनका कहना है कि पहाड़ी आलू देसी आलू की तुलना में रसीला होता है और जल्दी पक जाता है।

आलू के एक पौधे को चाहिए 10 लीटर पानी

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, प्रत्येक आलू के पौधे को विकसित होने तक लगभग 10 लीटर यानी 2.5 यूएस गैलन से कुछ अधिक की आवश्यकता होती है। पानी आलू की मिट्टी में नमी को बनाए रखता है। आलू की फसल में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7-10 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है। फसल तैयार होने से पहले पानी बहुत जरूरी है।

किसानों से बात

आलू की फसल को इस समय पानी की जरूरत है। पानी मिलेगा तोआलू का आकार बढ़ेगा। छोटे आलू को लोग कम पसंद करते हैं। बारिश नहीं हुई तो नुकसान होगा।

त्रिलोचन तिवारी, किसान कोकिल्बना, धारी

पहाड़ पर बारिश अमृत का काम करेगी। खेत में खड़ी आलू की फसल सूखने लगी है। मटर सूख चुकी है। पिछले साल समय पर बारिश होने से अच्छा आलू पैदा हुआ था।

ललित बेलवाल, किसान, गुनियाखेत

पहाड़ का आलू आते ही तराई के आलू के भाव गिरने लगते हैं। पहाड़ी आलू शुरुआत से ही 20 से 30 रुपये किलो तक बिकता है। किसानों की फसल का मंडी आने का इंतजार है।

कैलाश जोशी, अध्यक्ष, आलू फल आढ़ती एसोसिएशन

आलू की फसल पहाड़ के किसानों की रीढ़ है। आलू में अन्य फसलों की तरह ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। मौसम का बड़ा योगदान रहता है। बारिश नहीं होना चिंता की बात है।

दुर्गादत्त तिवारी, आड़ती

अधिकारी बोले

आलू को अधिक पानी की जरूरत इसी समय होती है। पानी मिलने से आलू की मिठास बढ़ जाती है। शुष्क आलू पकने में समय लगाता है। पहाड़ों की जमीन उपजाऊ है। कुछ दिन पहले हुई मामूली बारिश से आलू पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ा। इसलिए फसल के लिए पानी की जरूरत है।

डा. आरके सिंह, मुख्य उद्यान अधिकारी


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