आर्थिक मदद मिलने पर पहाड़ में लहलहाएगी खेती, सुधरेगी आर्थिकी

उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों में खेती की दशा और दिशा बदलने के लिए जल्द ही 15 वें वित्त आयोग से आर्थिक मदद मिल सकती है।

By Edited By: Publish:Sun, 17 Nov 2019 08:44 PM (IST) Updated:Mon, 18 Nov 2019 03:43 PM (IST)
आर्थिक मदद मिलने पर पहाड़ में लहलहाएगी खेती, सुधरेगी आर्थिकी
आर्थिक मदद मिलने पर पहाड़ में लहलहाएगी खेती, सुधरेगी आर्थिकी

देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों में खेती की दशा और दिशा बदलने के लिए जल्द ही 15 वें वित्त आयोग से आर्थिक मदद मिल सकती है। इस बजट को हिमालयन राज्यों में खेती की दशा सुधारने के लिए उपयोग किया जाएगा। 

राजपुर रोड स्थित वैली ऑफ वर्ड्स लिटरेचर फेस्टिवल में पहुंचे हिमालयी राज्यों के लिए काम करने वाली संस्था इंटीग्रेटेड माउंटेन इनिशिएटिव (आइएमआइ) के अध्यक्ष सुशील रमोला ने बताया कि हिमालयी राज्यों में लगातार कम हो रही खेती पर दो सालों तक शोध किया गया। इसमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, मेघालय, सिक्किम समेत सभी हिमालयन राज्यों की तमाम परिस्थितियों का विस्तार से अध्ययन किया गया। अध्ययन में सामने आया कि तीन वजह से पहाड़ के लोगों का खेती से मोह भंग हो रहा है। 
पहली वजह है आर्थिकी, क्योंकि पहाड़ में खेती से किसानों की दैनिक जरूरत भी पूरी नहीं हो पाती है। इससे आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए किसान पेशा बदल रहे हैं। दूसरी वजह है सामाजिक, यह एक आम धारणा बन गई है कि जो पहाड़ से पलायन करेगा वही प्रगति कर सकता है। इस सामाजिक दबाव से भी लोग खेती से दूर रहे हैं। तीसरी वजह है पारिस्थितिकी, इसमें समय से बारिश नहीं होना, वन्य जीवों से फसलों को नुकसान व समुचित विपणन व्यवस्था का अभाव है। रमोला ने कहा कि पहाड़ में खेती बचाने को अब नया तरीका अपनाना होगा। 
ऐसी उपज जो मैदान की जगह सिर्फ पहाड़ में हो सकती है, उस पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। जैसे सुगंधित, औषधीय पादप, स्थानीय उपज को बढ़ावा देना होगा। ऐसे में परंपरागत खेती में भी बदलाव करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि हिमालयी राज्यों में खेती की दशा सुधारने के लिए 15वें वित्त आयोग से आर्थिक मदद की मांग की गई है। बजट मिलते ही राज्य सरकारों के साथ मिलकर खेती के लिए नीति बनाकर उचित कदम उठाए जाएंगे।
हिमालयी राज्‍यों की चुनौतियों और समाधान पर हुआ मंथन 
वैली ऑफ वर्ड्स इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्टस फेस्टिवल के समापन पर हिमालयी राज्यों की चुनौती और समाधान, सेना और साहित्य से जुड़े विषयों पर मंथन हुआ। फेस्टिवल में साहित्यकार और साहित्य प्रेमी मौजूद थे। 
रविवार को राजपुर रोड स्थित एक होटल में फेस्टिवल के तीसरे दिन पोस्ट सीडीएस: विल द टर्फ वारस स्टिल कंटीन्यू विषय पर एडमिरल हरीश बिष्ट, एयर मार्शल अजरुन सुब्रमण्यम, लेफ्टिनेंट जनरल पीजेएस पन्नू और प्रवीन बख्शी ने विस्तार से चर्चा की। विदेशों में हंिदूी पत्रकारिता पर जवाहर कर्णावत, एलएस वाजपेयी और सुरेश रितुपर्णा ने संवाद कर पत्रकारिता के दौरान आने वाली चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया। इस अवसर पर सस्टेनेबल डेवलपमेंट फोरम की ओर से पूर्व मुख्य सचिव आरएस टोलिया की स्मृति में आरएसटी फोरम किया। 
फोरम में इंटीग्रेटेड माउंटेन इनिशिएटिव (आइएमआइ) संस्था की हिमालयी राज्यों में कृषि पर की गई रिसर्च रिपोर्ट पर आधारित पुस्तक स्टेट ऑफ हिमालयन फार्मर्स एंड फार्मिग का विमोचन किया गया। यह रिपोर्ट जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम समेत सभी हिमालय राज्यों में कृषि पर दो साल की रिसर्च के बाद बनाई गई है। इसमें मैदानी से सीमांत किसानों को होने वाली परेशानी, उनका समाधान का सुझाव भी दिया गया है। 
यह रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी जाएगी जो कृषि नीति बनाने में सहायक होगी। अंत में विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। इस अवसर पर आइएमआइ अध्यक्ष सुशील रमोला, कुमाऊं विवि के पूर्व वीसी डॉ. वीके जोशी, आइआइएम के प्रो. द्वारिका प्रसाद उनियाल, उद्यमी अनिल तनेजा, यूकॉस्ट के महानिदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल शामिल थे। 
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