उच्च हिमालयी औषधियां तैयार की जा रही है नर्सरी, पढ़िए पूरी खबर
हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली और विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी जड़ी-बूटी को बचाने की कवायद शुरू हो गई है।
देहरादून, जेएनएन। उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली और विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी जड़ी-बूटी को बचाने की कवायद शुरू हो गई है। जड़ी-बूटी शोध संस्थान ऐसी औषधि को बचाने के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में नर्सरी बना रहा है। शुरुआती चरण में 70 किस्म के औषधीय पौधे रोपे जा रहे हैं। कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में नर्सरी बनाई जा रही है।
65 प्रतिशत जंगल वाला प्रदेश जैव विविधता से भरपूर है। यहां के उच्च हिमालय क्षेत्रों में बेशकीमती औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं। ये वनस्पतियां कई रोगों में रामबाण औषधि हैं। इससे इनकी बाजार में जबरदस्त मांग होती है। इस वजह से इनका अंधाधुंध ढंग से दोहन हुआ और संरक्षण के अभाव में ये वनस्पतियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई।
इधर, जड़ी-बूटी शोध संस्थान इन वनस्पतियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए नर्सरी बना रहा है। इसमें दुर्लभ औषधीय वनस्पतियों को चिह्नित कर उनको नर्सरी में रोपा जा रहा है। इन वनस्पतियों को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण देने के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्र में ही नर्सरी तैयार की गई है। गढ़वाल में मसूरी के धनौल्टी, टिहरी के नरेंद्र नगर और गोपेश्वर के ऊपर मंडल में नर्सरी बनाई गई है। वहीं कुमाऊं में पिथौरागढ़ के मुनस्यारी और धारचूला के उच्च हिमालय इलाकों में नर्सरी तैयार की है।
नर्सरी में इन वनस्पतियों को किया जा रहा है संरक्षित
- भोज पत्र, तिमूर, धुनयार, चंदन, पुकोमल, काकोली, विंधी, मैदा, गुग्गल, गैनिया, काला जीरा, रतन जोत, बसंत, वज्रदंती, भिटारु, जंबू, जंगली प्याज, जंगली लहसुन, रिधी आदि।
महिलाओं और युवाओं को दिया जाएगा प्रशिक्षण
जड़ी-बूटी शोध संस्थान इस नर्सरी के जरिये सीमांत गांव के लोगों को औषधीय वनस्पतियों की जानकारी देगा। ताकि वे इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रेरित हों। वहीं बाजार में इन औषधीय वनस्पति की मांग होने से लोगों को रोजगार मिलेगा। इससे सीमांत से पलायन पर रोक लगेगी।
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जड़ी-बूटी संस्थान के निदेशक डॉ. चंद्रशेखर सनवाल ने बताया कि उच्च हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली 70 किस्म की वनस्पतियों के लिए नर्सरी तैयार की गई है। पिथौरागढ़, मसूरी, टिहरी में नर्सरी बनाई जा रही है। बाद में सीमांत गांव के लोगों को इसकी जानकारी दी जाएगी ताकि वे भी इसको संरक्षित कर सकें।
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