कार में कार्बन मोनोऑक्साइड से हर साल होती है 430 मौतें

अंतरराष्ट्रीय सड़क महासंघ की मानें तो कार के भीतर कार्बन मोनोऑक्साइड पहुंचने के चलते हर साल करीब 430 लोगों की मौत हो जाती है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Thu, 15 Nov 2018 09:12 AM (IST) Updated:Fri, 16 Nov 2018 08:20 AM (IST)
कार में कार्बन मोनोऑक्साइड से हर साल होती है 430 मौतें
कार में कार्बन मोनोऑक्साइड से हर साल होती है 430 मौतें

देहरादून, [जेएनएन]: बंद स्थान पर स्टार्ट कार में लंबा समय बिताना जानलेवा साबित हो सकता है। क्योंकि ऐसा करने पर कार के साइलेंसर से निकलने वाला जहरीला धुआं एसी के माध्यम से कार के भीतर प्रवेश कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय सड़क महासंघ की मानें तो कार के भीतर कार्बन मोनोऑक्साइड पहुंचने के चलते हर साल करीब 50 हजार लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है, जिसमें से करीब 430 लोगों की मौत हो जाती है।

महासंघ के जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र अरोड़ा का कहना है कि गैराज या अन्य बंद स्थानों पर स्टार्ट कार में बैठने पर ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है, जबकि कार्बन मोनोऑक्साइड भीतर पहुंच जाती है। खास बात यह कि यह जहरीली गैस रंगहीन व गंधहीन होती है, जिसके चलते उसे महसूस करना मुश्किल हो जाता है। 

जब शरीर में परेशानी होने लगती है, तब इस बात का एहसास होता है, हालांकि तब बहुत देर हो जाती है। गौर करने वाली बात यह भी कि कार्बन मोनोऑक्साइड ऑक्सीजन की तुलना में कहीं अधिक लाल रक्त कणिकाओं (रेड ब्लड सेल्स) में घुल जाती है। यह हीमोग्लोबिन की मात्रा को ऑक्सीजन की तुलना में 200 गुना तक आकर्षित करती है। इससे यह आसानी से ऊतकों के ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता को कम कर देती है। लिहाजा, बंद कार में बैठना हो तो खुले स्थानों का ही चयन करना चाहिए।

कार में लगे हों ऑटोमोटिव कार्बन डिटेक्टर

विभिन्न अध्ययनों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय सड़क महासंघ ने कहा कि कार में ऑटोमोटिव कार्बन मोनोऑक्साइड डिटेक्टर लगे होने चाहिए। जबकि ज्यादातर लोग उन डिटेक्टर का प्रयोग करते हैं, जो सामान्यत: घर या दफ्तरों में प्रयुक्त होते हैं। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक कार्बन मोनोऑक्साइड डिटेक्टर भी लाभकारी होते हैं। यह आसानी से इस जहरीली गैस के कार के भीतर रिसाव होने पर उसे रंग में तब्दील कर देते हैं।

बंद कार में बच्चों को अकेले न छोड़ें 

यदि आपके साथ कार में छोटे बच्चे भी सफर कर रहे हैं तो उन्हें खासकर धूप में कार के भीतर अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि थोड़ी ही देर में कार के भीतर का तापमान बाहर की अपेक्षा 20 डिग्री तक बढ़ जाता है। कई दफा यह तापमान मौसम के अनुसार 70 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच जाता है। ऐसे में शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस पार करते ही दिमाग, दिल, किडनी व लिवर को नुकसान पहुंचना शुरू हो जाता है। 

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