यातायात अभियान: सुधार को हुई साझा पहल, अब प्रशासन को निकालना है हल Dehradun News
दूनवासी रोज-रोज के ट्रैफिक जाम से तंग आ चुके हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि मुख्य सड़कों पर किसी भी तरह के जुलूस-प्रदर्शन और किसी भी संगठन के धार्मिक आयोजन नहीं किए जाने चाहिए।
देहरादून, जेएनएन। दैनिक जागरण की मुहिम से इतना तो साफ हो गया कि दूनवासी रोज-रोज के ट्रैफिक जाम से तंग आ चुके हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि मुख्य सड़कों पर किसी भी तरह के जुलूस-प्रदर्शन और किसी भी संगठन के धार्मिक आयोजन नहीं किए जाने चाहिए।
दून के सभी वर्गों के लोगों ने यह विचार जागरण फोरम में रखे। इसके बाद जागरण ने सड़कों पर जुलूस-प्रदर्शन करने वाले लोगों को चार वर्गों में बांटकर उन्हें भी जागरण फोरम से जोड़ा और पूछा कि वह अपने शहर और यहां के लोगों की बेहतरी को क्या कर सकते हैं। इसमें कार्मिक, धार्मिक, राजनीतिक व छात्र संगठनों के अध्यक्ष, महामंत्री और अन्य वरिष्ठतम पदाधिकारियों को शामिल किया गया। सभी संगठनों से पूछा गया कि दून के नागरिक सड़कों पर यातायात के अधिकार को वापस मांग कर रहे हैं। लोगों का दो टूक कहना है कि मुख्य सड़कों पर किसी भी तरह के आयोजनों को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
बेहद अच्छी बात यह रही कि सभी संगठनों ने कहा कि वह भी शहर के लोगों की सुविधा सर्वोपरि मानते हैं। यदि सरकार, शासन या पुलिस-प्रशासन मुख्य सड़कों पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों को लेकर कोई नियम बनाते हैं तो उसका पालन किया जाएगा। हालांकि, संगठनों के पदाधिकारियों ने यह भी सुनिश्चित कराने की मांग की है कि जो भी नियम बनाए जाएं, वह सभी पर समान रूप से लागू होने चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि एक संगठन पर प्रतिबंध लागू कर दूसरे को उसमें ढील दे दी जाए।
अब पुलिस-प्रशासन की इच्छाशक्ति की परीक्षा
मुख्य सड़कों पर किसी भी तरह के आयोजनों को लेकर दून की जनता क्या चाहती है, यह स्पष्ट हो चुका है। स्वयं संबंधित संगठनों के प्रतिनिधि शहर की बेहतरी के लिए सहयोग करने को तैयार हैं, यह भी साफ कर दिया गया है। अब जरूरत इस बात की है कि पुलिस-प्रशासन शहर के हित में अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाकर नए नियम बनाए। अक्सर देखा जाता है कि धार्मिक आयोजनों के मामलों में पुलिस या प्रशासन बैकफुट पर नजर आते हैं। अधिकारी यह साहस नहीं कर पाते कि लाखों लोगों की सुविधा के लिए भी उन पर किसी तरह के प्रतिबंध या अंकुश लगा पाएं। हालांकि, पुलिस-प्रशासन की इस असमंजस की स्थिति को स्वयं धार्मिक संगठनों ने दूर कर दिया है।
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वह सर्वहित में बनाए जाने वाले नियमों का पालन करने को तैयार खड़े दिख रहे हैं। सिख संगठनों ने पहले ही अपनी तरफ से बेहतरी की पहल कर दी है। सिर्फ अन्य संगठनों को भी इस दिशा में प्रेरित करने की जरूरत है। शहर के लिए यही बेहतर होगा कि पुलिस-प्रशासन एक बार सभी संगठनों के पदाधिकारियों को आमंत्रित करे और एक राय होकर नियम बनाए जाएं कि किस तरह मुख्य संगठनों को जुलूस-प्रदर्शन आदि से दूर रखा जा सकता है।
नई पहल का यह सबसे बेहतर समय
जागरण की मुहिम पर यह पहली दफा हो पाया है कि सभी संगठन नागरिकों की बेहतरी के लिए सहयोग करने को तैयार हैं। लिहाजा, अधिकारियों को आगे आकर अपनी जिम्मेदारी का सही अर्थों में निर्वहन करने की जरूरत है।
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