उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति पर संकट, जानिए वजह

प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति पर संकट के बादल छाने लगे हैं। केंद्र सरकार की दवा क्रय नीति के प्रभाव की अवधि निकलने से यह संकट पैदा हुआ।

By BhanuEdited By: Publish:Wed, 12 Dec 2018 10:13 AM (IST) Updated:Wed, 12 Dec 2018 10:13 AM (IST)
उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति पर संकट, जानिए वजह
उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति पर संकट, जानिए वजह

देहरादून, जेएनएन। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति पर संकट के बादल छाने लगे हैं। केंद्र सरकार की दवा क्रय नीति के तहत 103 दवाएं सार्वजनिक उपक्रम से खरीदी जाती हैं। पर यह नीति दस दिसंबर तक ही प्रभावी थी। अब खरीद कैसे होगी, इसे लेकर कोई दिशा-निर्देश भी अभी नहीं आए हैं। ऐसे में दवा की आपूर्ति कभी भी लड़खड़ा सकती है।

दरअसल, 103 दवाएं ऐसी हैं, जिनकी खरीद टेंडर के बिना भी की जा सकती है। केंद्र सरकार की चिह्नित पांच दवा निर्माता पीएसयू से इन्हें कभी भी खरीदा जा सकता है। इनकी खरीद की दरें तय हैं। नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी यह दर तय करती है। इसके तहत बाजार मूल्य से तकरीबन 16 फीसद तक सस्ती दवाएं पीएसयू उपलब्ध कराती रही हैं। 

केंद्र की यह नीति सभी राज्यों में लागू थी। अब इसकी अवधि खत्म हो गई है। दस दिसम्बर 2013 को इसे लेकर जारी शासनादेश में स्पष्ट उल्लेख था कि नीति पांच वर्ष तक ही प्रभावी रहेगी। ऐसे में अब यह निष्प्रभावी है। इस कारण विभाग आगे खरीद नहीं कर सकता है। 

स्वास्थ्य निदेशक डॉ. अमिता  उप्रेती ने बताया कि केंद्र के दिशा निर्देशों से इतर खरीद करना मुमकिन नहीं है। उनका दावा है कि विभाग के पास दवा का करीब तीन से चार माह का स्टॉक है। इस बीच केंद्र की तरफ से कोई गाइडलाइन जारी कर दी जाएगी। डॉ. उप्रेती ने कहा कि दवा की आपूर्ति प्रभावित नहीं होने दी जाएगी। 

दवा आपूर्ति में देरी 

सरकारी अस्पतालों में 103 दवाएं पीएसयू के माध्यम से आती हैं। इसका एक पहलू और भी है। यह उपक्रम समय पर दवा की आपूर्ति नहीं कर पा रहे थे। जिस कारण बार-बार दिक्कत आ रही है। कई स्तर पर अधिकारी इन पर कार्रवाई की बात तक रख चुके थे। यहां तक की ओपन टेंडर में जाने का सुझाव भी दिया गया था। 

आयुष्मान योजना के नहीं बन पा रहे कार्ड

आयुष्मान स्वा स्वास्थ्य योजना के तहत गरीबों को मुफ्त इलाज देने के दावे चाहे जितने किए जाएं, पर योजना के कार्ड बनाने में लाभार्थियों को काफी परेशानी हो रही है। एकाध नहीं ऐसे कई उदाहरण हैं जहां लंबी दौड़ के बाद भी लोगों के कार्ड नहीं बने हैं। 

सेवलां कला (माजरा) निवासी रोमा का कहना है कि वह गुर्दा रोग से पीडि़त हैं। हर माह करीब आठ बार उन्हें डायलिसिस करना पड़ता है। उनके पति मजदूरी करते हैं। लिहाजा डाइलिसिस के लिए समुचित धनराशि एकत्र नहीं हो पा रही है। उन्होंने बताया कि पटेलनगर स्थित श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में जब आयुष्मान स्वास्थ्य योजना के तहत उपचार कराने की गुहार लगाई तो अस्पताल प्रशासन ने मना कर दिया। 

उन्होंने कहा कि बिना कार्ड इस योजना का लाभ नहीं मिल सकता है। कार्ड बनाने के लिए वह अपने सभी दस्तावेज नजदीक में आशा कार्यकर्ता को पूर्व में ही सौंप चुकी हैं। अब आशा कार्यकर्ता द्वारा कहा जा रहा है कि आयुष्मान योजना के लिए कोई भी कार्ड अब नहीं बन रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि धनराशि के अभाव में वह उपचार (डायलिसिस) कराने में अक्षम हैं। उसके दो छोटे बच्चे हैं। कहा कि उन्हें आयुष्मान योजना के तहत उपचार का लाभ दिया जाए। 

डेंगू-स्वाइन फ्लू के मरीज घटे, चुनौती नहीं

प्रदेश में डेंगू, मलेरिया, स्वाइन फ्लू व चिकनगुनिया के कारण आम जनता को होने वाले खतरों और सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की समीक्षा स्वास्थ्य सचिव नितेश कुमार झा ने की। इस दौरान अधिकारियों ने बताया कि राज्य में वर्ष 2016 से 2018 के दौरान डेंगू पीड़ित की संख्या में 71 प्रतिशत गिरावट दर्ज हुई है। 

वर्ष 2016 में जहां डेंगू पीड़ित मरीजों की संख्या 2046 थी, वहीं 2018 में घटकर 591 रह गई है। सरकार द्वारा डेंगू को फैलने से रोकने के लिए एक प्रभावी रणनीति पर अमल किया जा रहा है। डेंगू संभावित क्षेत्रों में दो लाख से अधिक घरों में आशा कार्यकर्ता व स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा निरोधात्मक कार्रवाई की गई। 

डेंगू रोगी के घर व आसपास के क्षेत्र में मच्छरों को समाप्त करने के लिए स्प्रे और फॉगिंग का कार्य किया गया। समीक्षा में मलेरिया के रोगियों की संख्या में 80 प्रतिशत गिरावट होने की जानकारी दी गई। 

बताया गया कि वर्ष 2017 में मलेरिया के मरीजों की संख्या जहां 1948 थी, वहीं वर्ष 2018 में मलेरिया पीड़ित मरीजों की संख्या घटकर 388 हो गई है। राज्य नोडल अधिकारी द्वारा बताया गया कि मलेरिया व डेंगू को अधिसूचित की जाने वाली बीमारी की श्रेणी में रखा गया है। 

इस कारण निजी अस्पतालों ने भी मलेरिया के मरीजों की सूचना स्वास्थ्य विभाग को प्राप्त हो रही है। बताया गया कि उत्तराखंड में चिकनगुनिया व जापानी इन्सेफेलाइटिस से पीड़ित मरीजों की संख्या नगण्य है। इस रोग के लक्षण सिर्फ ऊधमसिंहनगर के कुछ क्षेत्रों में देखने को मिला है। 

स्वाइन फ्लू जैसी जानलेवा बीमारी के बारे में सचिव स्वास्थ्य ने बताया कि वर्ष 2018 में स्वाइन फ्लू से पीड़ित केवल आठ रोगी ही उपचार के लिए अस्पतालों में गए जबकि वर्ष 2017 में 157 मरीज इस बीमारी की चपेट में आए थे। स्वाइन फ्लू पीड़ित मरीजों के त्वरित उपचार एवं प्रभावित रोगी का पता चलने पर आवश्यक कार्रवाई के लिए जनपद स्तर पर रेपिड रिस्पांस टीम का गठन किया गया है।

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