उत्तराखंड के जंगलों में पारिस्थितिकीय तंत्र पर मंडराया संकट, जानिए वजह

जंगलों में पारिस्थितिकीय तंत्र पर मंडराया संकट थमने की बजाए और गहराने लगा है। यह भी घुसपैठिये अनुपयोगी पौधों के कारण उपजा है जो दूसरी वनस्पतियों को पनपने नहीं दे रहे।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sat, 11 Jul 2020 01:39 PM (IST) Updated:Sat, 11 Jul 2020 09:14 PM (IST)
उत्तराखंड के जंगलों में पारिस्थितिकीय तंत्र पर मंडराया संकट, जानिए वजह
उत्तराखंड के जंगलों में पारिस्थितिकीय तंत्र पर मंडराया संकट, जानिए वजह

देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड के जंगलों में पारिस्थितिकीय तंत्र पर मंडराया संकट थमने की बजाए और गहराने लगा है। यह भी घुसपैठिये अनुपयोगी पौधों के कारण उपजा है, जो दूसरी वनस्पतियों को पनपने नहीं दे रहे। ये भी एकाध नहीं बल्कि पूरे सात हैं। अपने इर्द-गिर्द अन्य वनस्पतियों को न उगने देने वाली लैंटाना, गाजरघास, कालाबांस जैसी झाड़ीनुमा अनुपयोगी प्रजातियों के फैलाव ने पहले ही मुश्किल में डाला हुआ था। अब इन्हीं के समान गुणों वाली बला, वासिंगा, वासुकि और अमेला जैसी वनस्पतियों ने भी बड़े पैमाने पर जंगलों में घुसपैठ की है। मैदान से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्र तक के जंगल इन सातों के कहर से आहत हैं। हालांकि, जंगलों को इनसे निजात दिलाने को पहल हो रही, मगर उस हिसाब से नहीं जिसकी दरकार है। अब जबकि पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा है तो ऐसे में अनुपयोगी प्रजातियों का उन्मूलन कर उनकी जगह घास का रोपण समय की मांग है।

बदली परिस्थितियों में बदलना पड़ा ट्रेंड

मौजूदा दौर भले ही दुश्वारियों भरा हो, लेकिन इसने हर किसी के सोचने, समझने और सीखने का दृष्टिकोण भी बदला है। कोरोना को मात देने के मद्देनजर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रति आमजन सजग हुआ है। ऐसे में वर्षाकाल में होने वाला पौधारोपण इससे अछूता कैसे रह सकता है। फिर चाहे वह जंगलों में होने वाला पौधारोपण हो अथवा गांव, शहर या सार्वजनिक स्थलों का। सभी जगह पौधारोपण का ट्रेंड बदला है। उत्तराखंड में वन महकमे ने भी वर्षाकालीन पौधारोपण के तहत रोपित किए जाने वाले पौधों में इस बार औषधीय प्रजाति के पौधों को अधिक महत्व दिया है। इनमें त्रिफला (हरड़, बहेड़ा और आंवला) के साथ ही अब इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक गिलोय, तुलसी, तेजपात, बेल, अश्वगंधा समेत अन्य प्रजातियों को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। जाहिर है इस मर्तबा पौधारोपण में औषधीय पौधों का वर्चस्व रहेगा। इसे भविष्य के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है।

पौधारोपण की ठीक से होगी मॉनीटरिंग

विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में अब पौधारोपण की ठीक से मॉनीटरिंग हो सकेगी। असल में विभिन्न योजनाओं, परियोजनाओं के लिए हर साल ही बड़े पैमाने पर वन भूमि का हस्तांतरण किया जाता है। नियमानुसार हस्तांतरित की जाने वाली वन भूमि पर खड़े एक पेड़ की एवज में 10 पौधे लगाए जाने अनिवार्य हैं, लेकिन इस क्षतिपूरक पौधारोपण को लेकर उंगलियां उठती रही हैं। प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंध और योजना प्राधिकरण (कैंपा) से स्वीकृत मद से होने वाले पौधरोपण और अन्य कार्य भी सवालों के घेरे में रहे हैं। असल में कैंपा में इसकी मॉनीटरिंग की पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। कैंपा बिना ढांचे के संचालित हो रहा था। लंबे इंतजार के बाद अब कैंपा के ढांचे को 29 पदों सहित मंजूरी दे दी गई है। ऐसे में कैंपा के तहत होने वाले कार्य न सिर्फ तेजी पकड़ंगे, बल्कि इनकी बेहतर ढंग से मॉनीटरिंग भी हो सकेगी।

अब जलीय जीव प्रबंधन की चुनौती

उत्तराखंड में पहली बार हुई तीन जलीय जीवों मगरमच्छ, घडिय़ाल और ऊदबिलाव की गणना के नतीजे उत्साहजनक हैं। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ ही केदारनाथ, चंपावत, हल्द्वानी, तराई पूर्वी, रामनगर और हरिद्वार वन प्रभागों की नदियों में इन तीनों की संख्या ठीकठाक है। इनमें 451 मगरमच्छ, 77 घड़ियाल और 194 ऊदबिलाव पाए गए हैं।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में पांच हजार फीट से ऊपर बांज के जंगलों तक चीड़ की घुसपैठ

इन तीनों जलीय जीवों की संख्या दर्शाती है कि राज्य के वन क्षेत्रों से गुजरने वाली नदियों का पारिस्थितिकीय तंत्र जलीय जीवन को बेहद मुफीद है। निश्चित रूप से यह सुकून देने वाला है, लेकिन चुनौती भी कम नहीं है। इन जलीय जीवों के आंकड़े सामने आने के बाद अब इनकी संख्या में भी बढ़ोतरी हो, इसके लिए और बेहतर प्रबंधन की दरकार है। न सिर्फ इन तीनों बल्कि अन्य जलीय जीवों के लिए भी प्रबंधन पर फोकस होना जरूरी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वन महकमा इस कड़ी में कदम उठाएगा।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में इन 'घुसपैठियों' के खतरे से सहमे जंगल, जैवविविधता के लिए है खतरनाक

chat bot
आपका साथी