देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड के जंगलों में चीड़ के निरंतर हो रहे फैलाव ने चिंता बढ़ा दी है। राज्य के कुल वन क्षेत्र (37999.60 वर्ग किमी) के करीब 16 फीसद हिस्से में चीड़ (चिर पाइन) का कब्जा हो चुका है। अब तो इसने पांच हजार फीट से ऊपर जैवविविधता के साथ ही जल संरक्षण में सहायक बांज के जंगलों तक घुसपैठ कर ली है। ऐसे में चीड़ से उत्पन्न पर्यावरणीय खतरों को देखते हुए मिश्रित वनों को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाने लगा है।
अंग्रेजों के शासनकाल में सजावटी पौधे के तौर पर चीड़ को यहां लाया गया था, जिसने अब बड़े हिस्से में पैर पसार लिए हैं। हालांकि, चीड़ के कारण उत्पन्न खतरों के मद्देनजर वन महकमे ने इसका रोपण पहले ही बंद कर दिया है, मगर प्राकृतिक रूप से यह निरंतर फैल रहा है।
सदाबहार बांज (ओक) के जंगलों तक चीड़ की घुसपैठ ने पेशानी पर बल डाले हैं। चिंता ये सता रही कि कहीं यह बांज के अस्तित्व के लिए खतरा न बन जाए। चीड़ के खिलाफ लंबे अर्से से मुहिम छेड़े सामाजिक कार्यकर्ता रमेश बौड़ाईं कहते हैं कि जल संरक्षण में सहायक बांज के जंगलों में निरंतर नमी बनी रहती है। यह भूक्षरण रोकने में सहायक है तो इसकी पत्तियां पशुओं के लिए उत्तम चारा।
बांज के जंगलों में चीड़ की दस्तक से न सिर्फ सदाबहार बांज बल्कि अन्य प्रजातियों पर भी संकट से इनकार नहीं किया जा सकता। वह कहते हैं कि चीड़ को हटाकर इसकी जगह मिश्रित वनों को बढ़ावा दिया जाना समय की मांग है। इस दिशा में सरकार को प्रभावी पहल करनी चाहिए।
चीड़ से चिंता की वजह
-अग्निकाल में चीड़ की पत्तियां (पिरुल) व फल बनते हैं आग के फैलाव का कारण।
-पिरुल जमा होने से नहीं उग पातीं दूसरी वनस्पतियां, धरती में नहीं समाता वर्षाजल।
-अम्लीय गुण होने के कारण पिरुल को भूमि के लिए नहीं माना जाता ठीक
विकल्पों के परवान चढ़ने का इंतजार
राज्य में चीड़ के जंगलों से प्रतिवर्ष निकलने वाले करीब 24 लाख मीटिक टन पिरुल से बिजली बनाने के साथ ही इसके अन्य व्यवसायिक उपयोग के मद्देनजर सरकार ने नीति जारी की है। इसके पीछे भी मकसद चीड़ से उत्पन्न संकट को अवसर में बदलने का है, मगर इन उपायों को तेजी मिलने का इंतजार है।
बरसात का उठाना होगा भरपूर फायदा
धाद संस्था से जुड़े पर्यावरण प्रहरी तन्मय ममगाईं के अनुसार, बरसात के सीजन को और महत्वपूर्ण बनाने के लिए हमें इसका भरपूर फायदा उठाना चाहिए। पौधे रोपकर हम अपने साथ ही औरों का भविष्य भी सुरक्षित बना सकते हैं। इस बार हमारा उद्देश्य लोगों को पौधारोपण के लिए प्रेरित करने के साथ ही पौधों के चयन का महत्व समझाना भी है।
कहा कि कोरोना महामारी के कारण परिस्थितियां बदली हैं। साथ ही पौधारोपण का महत्व बढ़ा है। औषधीय पौधों को रोपने का चलन भी बढ़ गया है। तुलसी, गिलोय, अश्वगंधा समेत तमाम औषधीय महत्व के पौधों को अधिकाधिक रोपा जाएगा। इनकी देखरेख की जिम्मेदारी लेने को भी लोगों को प्रेरित किया जाएगा। इस प्रकार के पौधों से व्यक्ति को सीधा लाभ मिलता है। साथ ही इन्हें विकसित करने में भी कोई ज्यादा मेहनत नहीं है। जुलाई के अंत से अगस्त अंत तक पौधारोपण अभियान चलाए जाएंगे।
ऑनलाइन अवेयरनेस से धरा को हरा बनाने का प्रयास
मैड संस्था से जुड़े पर्यावरण प्रहरी करन कपूर के मुताबिक, इन दिनों ऑनलाइन माध्यम से लोगों में जागरूक किया जा रहा है। विभिन्न प्रकार के क्विज और जागरूकता संदेश के साथ ही लोगों की शंकाओं का भी समाधान किया जा रहा है। इसके लिए मैड संस्था की वेबसाइट पर पूरी जानकारी दी जा रही है। इस बार कोरोना महामारी के कारण पौधारोपण अभियान वृहद स्तर पर नहीं किए जा सके हैं। फिलहाल लोगों को जागरूक किया जा रहा है। जबकि, 15 जुलाई के बाद धरातल पर पौधारोपण अभियान भी शुरू कर दिए जाएंगे।
बताया कि इस बार उनका फोकस जल संचय करने वाले पौधों को रोपने पर रहेगा। नदी किनारे इस प्रकार के पौधे रोपने से मरणासन्न हो चुकी नदियों को जीवन देने का प्रयास किया जाएगा। लोगों को बड़ी संख्या में अभियान में शामिल नहीं किया जा सकता, लेकिन सभी अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण में भागीदारी निभा सकते हैं।
हरेला के तहत बूथ स्तर तक पौधरोपण करेगी भाजपा
प्रकृति पर्व हरेला के उपलक्ष्य में प्रदेशभर में भाजपा भी बड़े पैमाने पर पौधरोपण करेगी। इस पूरे माह बूथ स्तर तक की पार्टी इकाइयां विभिन्न प्रजातियों के पौधे रोपित कर पर्यावरण संरक्षण में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाएंगी।
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं मीडिया प्रभारी डॉ.देवेंद्र भसीन के अनुसार पार्टी संगठन भी हरेला पर्व 16 जुलाई को पूरे उत्साह के साथ मनाएगा। हरेला के उपलक्ष्य में राज्यभर में पौधरोपण शुरू किया जा रहा है। जिसमें बूथ स्तर तक के पार्टीजन सुरक्षित शारीरिक दूरी समेत अन्य मानकों का अनुपालन करते हुए सक्रिय भागीदारी निभाएंगे।
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डॉ.भसीन ने बताया कि भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जन्म दिवस पर भी छह जुलाई को पौधरोपण समेत विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। हरेला पर्व के तहत इस पूरे माह पौधरोपण का सिलसिला चलेगा।
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