उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू से अब तक 24 मौत, नहीं मिल रही वैक्सीन

स्वाइन फ्लू पीड़ित कालसी ब्लॉक के टिपाऊ गांव निवासी 54 वर्षीय महिला की मौत हो गई। इसके बाद स्वाइन फ्लू से मरने वाले मरीजों की संख्या 24 पहुंच गई है।

By BhanuEdited By: Publish:Wed, 13 Feb 2019 09:38 AM (IST) Updated:Wed, 13 Feb 2019 09:38 AM (IST)
उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू से अब तक 24 मौत, नहीं मिल रही वैक्सीन
उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू से अब तक 24 मौत, नहीं मिल रही वैक्सीन

देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू का कहर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। यह घातक वायरस हर दिन नए लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है। रात स्वाइन फ्लू पीड़ित कालसी ब्लॉक के टिपाऊ गांव निवासी 54 वर्षीय महिला की मौत हो गई। इसके बाद स्वाइन फ्लू से मरने वाले मरीजों की संख्या 24 पहुंच गई है। 

वहीं पांच और मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। इस तरह प्रदेश में स्वाइन फ्लू पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़कर 155 पहुंच गई है। मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार महिला को दस फरवरी को श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इससे पहले उनका विकासनगर व दून के एक अन्य अस्पताल में भी इलाज चला। गत रात महिला ने दम तोड़ दिया। 

इधर, जिन पांच मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है उनका उपचार भी श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में चल रहा है। अब तक जिन मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है उनमें देहरादून, हरिद्वार व सहारनपुर के ज्यादा मरीज शामिल हैं। 34 मरीजों का उपचार श्री महंत इंदिरेश अस्पताल, मैक्स अस्पताल, सिनर्जी अस्पताल और दून अस्पताल में चल रहा है। 

बता दें, स्वाइन फ्लू से सर्वाधिक 21 मरीजों की मौत श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में हुई है। वर्तमान में भी इस अस्पताल में स्वाइन फ्लू के सर्वाधिक मरीज भर्ती हैं। बहरहाल, स्वाइन फ्लू की बीमारी फैलाने वाले वायरस का कहर दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। 

वहीं प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा इलाज के दावे करते नहीं थक रहा। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि वायरस की रोकथाम व नियंत्रण के लिए हर स्तर पर प्रभावी कदम उठाए गए हैं। हर अंतराल बाद एडवाइजरी जारी की जा रही है। ताकि लोग भी जागरूक रहे। सरकारी व निजी अस्पतालों में मरीजों के उपचार के लिए पर्याप्त मात्रा में एंटीवायरल औषधि उपलब्ध होने का दावा भी महकमे द्वारा किया जा रहा है। पर इस सबके बावजूद एच1एन1 का कहर थम नहीं रहा है। 

डॉक्टर व स्टाफ को भी मयस्सर नहीं वैक्सीन 

प्रदेश में पिछले डेढ़ माह से स्वाइन फ्लू का वायरस कहर बरपा रहा है। जिस कारण मरीजों के संपर्क में आने वाले चिकित्सकों व अन्य स्टाफ में भी दहशत बनी हुई है। हद ये कि इन्हें अब तक वैक्सीन तक नहीं लगाई गई है। राहत की बात यह कि अब तक इनमें कोई वायरस की चपेट में नहीं आया। 

स्वास्थ्य विभाग द्वारा जनपद के मुख्य चिकित्साधिकारी के स्तर से राजकीय कोरोनेशन अस्पताल, गांधी अस्पताल समेत सभी सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से वैक्सीन की डिमांड मांगी गई थी, जिसकी खरीद अब की जा रही है। दू

न मेडिकल कॉलेज अस्पताल भी स्वास्थ्य विभाग के भरोसे बैठा हुआ था। पर सीएमओ कार्यालय ने मेडिकल कॉलेज को वैक्सीन देने से मना कर दिया है। ऐसे में अब अस्पताल प्रशासन ने अब अपने स्तर से स्वाइन फ्लू वार्ड, इमरजेंसी, आइसीयू, ट्रॉमा व पैथोलॉजी लैब से वैक्सीन की डिमांड मांगी है। 

दरअसल, स्वाइन फ्लू के संदिग्ध मरीजों को परामर्श देना हो या फिर रक्त का नमूना लेना और स्वाइन पॉजिटिव मरीजों का उपचार, चिकित्सक व अन्य स्टाफ मरीजों के संपर्क में रहता है। सरकारी अस्पतालों में तैनात चिकित्सकों व अन्य स्टाफ द्वारा स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए वैक्सीन की मांग पिछले कई दिनों से की जा रही है। 

उनकी बात न ही स्वास्थ्य महकमा सुन रहा है और न अस्पताल प्रबंधन। ऐसे में कोई दो राय नहीं कि स्वाइन फ्लू का वायरस भी मरीजों के संपर्क में रहने वाले इन चिकित्सकों या स्टाफ को भी कभी न कभी अपनी चपेट में ले सकता है। 

उधर, जनपद के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता का कहना है कि सभी अस्पतालों, सीएचसी व पीएचसी से वैक्सीन की डिमांड मिल गई है। वैक्सीन खरीद की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। एकाध दिन में वैक्सीन की खरीद कर अस्पतालों को भिजवा दी जाएगी। 

स्वाइन फ्लू में कारगर नहीं सामान्य मास्क 

स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए सामान्य मास्क कारगर नहीं है। केवल ट्रिपल लेयर और एन-95 मास्क ही वायरस से बचाव में उपयोगी है। गाधी शताब्दी के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. प्रवीण पंवार के अनुसार आमतौर पर धूल-मिट्टी से बचाव के लिए मास्क बेहतर उपाय होता है। 

डॉक्टर खुद भी कीटाणुओं से बचने के लिए मास्क का प्रयोग करते हैं। यदि किसी संक्रमित महामारी से बचना हो तो भी मास्क का उपयोग किया जाता है। ट्रिपल लेयर सर्जिकल मास्क इस्तेमाल करने पर वायरस से 70 से 80 प्रतिशत तक बचाव हो सकता है, वहीं एन-95 मास्क से 90 प्रतिशत तक बचाव हो सकता है। 

उनका कहना है कि मास्क तभी कारगर होगा जब उसे सही तरह से पहना जाए। जब भी मास्क पहनें, तो उसे ऐसे बाधें कि मुंह और नाक पूरी तरह से ढक जाएं।

आयुष्मान के तहत नहीं मिला उपचार, मरीज किया डिस्चार्ज

अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना को लेकर सरकार खूब ढोल पीट रही है, पर धरातल पर स्थिति कुछ और है। हद ये कि मरीजों से जांच व ऑपरेशन का शुल्क वसूला जा रहा है। ऐसा ही एक मामला दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी सामने आया है। आरोप है कि मरीज को बिना इलाज डिस्चार्ज कर दिया गया। 

जानकारी के अनुसार मसूरी के क्यारकुली निवासी 64 वर्षीय भोपाल सिंह की रीढ़ की हड्डी में तकलीफ थी। उन्होंने पहले निजी अस्पताल में दिखाया जहां से उन्हें दून अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। 

दून अस्पताल में सात फरवरी को भर्ती होने पर अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. डीपी तिवारी ने उनकी एमआरआइ व अन्य जांच कराई। बताया गया कि एमआरआई जांच में उनकी रीढ़ की हड्डी से दो नसें दबी हुई मिली। इसके लिए उनका ऑपरेशन होना था, लेकिन चिकित्सक ने ऑपरेशन के लिए जरूरी सामान व दवाईयां बाहर से लाने को कहा। 

मरीज ने बताया कि उनके पास गोल्डन कार्ड है तब भी चिकित्सक नहीं माने। मरीज के अनुसार  एमआरआइ व अन्य जांच के लिए भी उन्होंने निर्धारित शुल्क जमा किया है। उन्होंने जब जिद की कि अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के अंर्तगत उन्हें बिना शुल्क जमा किए ऑपरेशन की सुविधा मिलनी चाहिए तो चिकित्सकों ने दो-तीन दिन की दवाईयां लिखकर डिस्चार्ज कर दिया। 

उन्हें सप्ताहभर बाद ओपीडी में फिर दिखाने के लिए कहा गया है। मरीज का कहना है कि इस मामले की शिकायत स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारियों से की जाएगी। 

इधर, दून अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा का कहना है कि उनके संज्ञान में यह मामला नहीं है। यदि ऐसा हुआ है तो इसकी जांच कर संबंधित चिकित्सक से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा।

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