नौ साल पहले स्वरोजगार का रोपा पौधा बन गया वटवृक्ष

चमोली जिले के कर्णप्रयाग में नौ साल पहले पांच महिलाओं ने स्वरोजगार का पौधा रोपकर जो मुहीम शुरू की, वह अब वटवृक्ष बन गया। इससे डेढ़ सौ महिलाओं को रोजगार मिला है।

By BhanuEdited By: Publish:Thu, 02 Mar 2017 01:08 PM (IST) Updated:Fri, 03 Mar 2017 05:02 AM (IST)
नौ साल पहले स्वरोजगार का रोपा पौधा बन गया वटवृक्ष
नौ साल पहले स्वरोजगार का रोपा पौधा बन गया वटवृक्ष

गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: जिले के कर्णप्रयाग विकासखंड में नौ वर्ष पूर्व पांच महिलाओं ने दुग्ध उत्पादन कर स्वरोजगार का जो पौधा रोपा था, वह अब न सिर्फ विशाल वृक्ष का आकार लेकर फल भी देने लगा है। आज विकासखंड के 25 गांवों की 150 महिलाएं दुग्ध उत्पादन से जुड़कर स्वरोजगार प्राप्त करने के साथ अपनी आर्थिकी भी संवार रही हैं। 

एक दशक पूर्व तक कर्णप्रयाग विकासखंड के अधिकतर गांवों में रोजगार की कमी थी। युवा व पुरुष तो बेरोजगार थे ही, महिलाएं भी खेतीबाड़ी से परिवार के गुजर लायक अनाज ही पैदा कर पाती थीं। 

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वर्ष 2008 में टाटा ट्रस्ट ने इन महिलाओं के जीवन की दिशा ही मोड़ दी। टाटा ट्रस्ट ने अपनी सहयोगी संस्था हिमोत्थान व हिमाद समिति को ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को रोजगार से जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी। इन संस्थाओं ने सबसे पहले कर्णप्रयाग विकासखंड के खडगोली गांव में भैरवनाथ स्वयं सहायता समूह का गठन किया, जिसमें गांव की पांच महिलाएं शामिल की गईं।

समूह ने महिलाओं के बीच स्वरोजगार स्थापित करने के लिए दुग्ध उत्पादन का विकल्प पेश किया। इसके लिए टाटा ट्रस्ट से तकनीकी सहयोग मिला और रंग लाने लगी दुग्ध उत्पादन की मुहिम। आज कर्णप्रयाग विकासखंड के 25 गांवों की महिलाएं दुग्ध उत्पादन के साथ खुद की डेरी भी संचालित कर रही हैं। नंदप्रयाग व कर्णप्रयाग बाजार को रोजाना 300 लीटर दूर यही डेरी उपलब्ध कराती हैं।

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हिमाद समिति चमोली के सचिव उमाशंकर बिष्ट के मुताबिक हमने गांवों में स्वयं सहायता समूहों का गठन कर महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का काम किया है। आज कर्णप्रयाग विकासखंड में तकरीबन 150 महिलाएं समूहों से जुड़कर घर पर ही रोजगार प्राप्त कर रही हैं।

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एकता बनी मिसाल

डेरी व्यवसाय में महिलाओं की एकता भी मिसाल बनी है। 2008 में टाटा ट्रस्ट की मदद से महिलाओं ने दुग्ध उत्पादन का कार्य शुरू किया था। धीरे-धीरे महिलाओं की संख्या बढऩे लगी। 2010 में इन समूहों से जुड़ी महिलाओं को लगा कि वह खुद का डेरी व्यवसाय शुरू कर आर्थिकी संवार सकती हैं। और...आज तस्वीर सबके सामने है।

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बचत में भी वृद्धि

डेरी व्यवसाय से जुड़कर न केवल महिलाओं ने अपने परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी संभाली, बल्कि अल्प बचत के जरिये अपने खातों की धनराशि को भी बढ़ाया। प्रत्येक माह महिलाएं अपने-अपने समूह में 50-50 रुपये एकत्रित करती हैं। जब भी समूह से जुड़ी किसी महिला को पशु खरीदने या अन्य कार्यों के लिए धन की आवश्यकता होती है तो वह बैंक से ऋण लेने के बजाय समूह के खाते में जमा राशि से ऋण लेती हैं। 

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