सड़क सुरक्षा सप्ताह : जिंदगी की फिक्र खुद भी करिए, सख्त कानून के बाद भी नहीं बदली सोच

सड़क हादसे रोकने के लिए शासन ने सख्त कानून बनाने के साथ जुर्माना राशि दोगुना से तीन गुना कर दिया फिर भी वाहन चालक नियमों को तोडऩे से बाज नहीं आए।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 23 Jun 2020 02:52 PM (IST) Updated:Tue, 23 Jun 2020 11:18 PM (IST)
सड़क सुरक्षा सप्ताह : जिंदगी की फिक्र खुद भी करिए, सख्त कानून के बाद भी नहीं बदली सोच
सड़क सुरक्षा सप्ताह : जिंदगी की फिक्र खुद भी करिए, सख्त कानून के बाद भी नहीं बदली सोच

वाराणसी [जेपी पांडेय]। जब तक खुद में किसी काम को करने की इच्छा नहीं होगी, तब तक उसे कोई जबर्दस्ती नहीं करा सकता। सड़क हादसे रोकने के लिए शासन ने सख्त कानून बनाने के साथ जुर्माना राशि दोगुना से तीन गुना कर दिया, फिर भी वाहन चालक नियमों को तोडऩे से बाज नहीं आए। नए कानून के साथ पुलिस, यातायात और परिवहन विभाग की चालान व जुर्माना राशि बढ़ गई लेकिन आदत में बदलाव नहीं आया है। यह जरूर है कि जुर्माना राशि बढऩे के बाद नियमों का पालन करने वालों की कुछ संख्या बढ़ गई। सिर्फ पांच माह में यातायात विभाग ने एक लाख 72 हजार 646 और परिवहन विभाग ने 2529 वाहनों का चालान करने के साथ 132 बंद किए। जबकि लॉकडाउन में सड़कों पर सन्नाटा था। इस दौरान वाहन नहीं चले। यू कहां जाता सकता है कि डर ने थामे हादसे, जिंदगी की फिक्र खुद भी करिए।

बढ़ते सड़क हादसे और उसे कड़ाई से पालन कराने के लिए परिवहन मंत्रालय ने कानून में बदलाव करने के साथ जुर्माना राशि बढ़ा दी। संबंधित विभागों को सख्ती से पालन कराने को कहा। सख्ती का असर सड़कों पर दिखा और दो पहिया वाहन चालक हेलमेट लगाने के साथ प्रपत्रों को सही कराने लगे। चार पहिया समेत बड़े वाहनों ने भी प्रपत्रों को सही कराने के साथ नियमों का पालन काफी हद तक करने लगे। लेकिन जिसकी उम्मीद शासन ने रखी थी वह नहीं दिखी। 

पलक झपकते आंखों से हो जाते हैं ओझल

वाहन स्वामी सड़क पर यातायात नियमों का पालन नहीं करते हैं। उन्हें जिधर से जगह मिलती है उधर से निकल जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सख्त कानून बनने के बाद भी लोगों की रफ्तार कम नहीं हुई। सड़कों पर वाहनों की रफ्तार इतनी तेज होती है कि पलक झपकते ही वे आंखों से ओझल हो जाते हैं।

भूल जाते हैं हादसे की वजह

हादसे रोकने के लिए पुलिस, यातायात और परिवहन विभाग की ओर से जनजागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। इस दौरान सभी चालकों और मालिकों को यातायात नियमों के बारे में बताया जाता है जिससे हादसे कम हो। उन्हें हादसे की वजह भी बताई जाती है लेकिन वहां से जाते हैं वे सभी बातें भूल जाते हैं। कई ऐसे लोग हैं जो सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। ठीक होने के बाद भी उनकी रफ्तार वही रहती है।

अफसर भी करते हैं रस्म अदायगी

यातायात नियमों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए संबंधित विभागों को अलग से बजट आता है। विभागीय अधिकारी कार्यशाला, रैली, लाउड स्पीकर से प्रचार-प्रसार और नुक्कड़ नाटक के जरिए जागरूक कार्यक्रम करते हैं। लेकिन इन अभियानों में अफसरों की रुचि नहीं होती है। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की ड्यूटी लगाकर चले जाते हैं।

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