मुस्लिम भाइयों की लिखी किताब से होती है रामलीला, मोहम्मद शब्बीर बनते हैं रावण के मंत्री तो राम की सेना में भुल्लर मियां

एक ओर जहां समाज में धार्मिक विद्वेष बढ़ रहा है तो वहीं राम-रहीम के रंग में रंगी गुलजारगंज की ऐतिहासिक रामलीला सबके लिए मिसाल पेश करती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sat, 12 Oct 2019 07:36 PM (IST) Updated:Sun, 13 Oct 2019 08:45 AM (IST)
मुस्लिम भाइयों की लिखी किताब से होती है रामलीला, मोहम्मद शब्बीर बनते हैं रावण के मंत्री तो राम की सेना में भुल्लर मियां
मुस्लिम भाइयों की लिखी किताब से होती है रामलीला, मोहम्मद शब्बीर बनते हैं रावण के मंत्री तो राम की सेना में भुल्लर मियां

जौनपुर [शरद कुमार सिंह]। ईश्वर अल्ला तेरो नाम...। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इन पंक्तियों को पूरी तरह से चरितार्थ कर रहे हैं गुलजारगंजवासी। एक ओर जहां समाज में धार्मिक विद्वेष बढ़ रहा है तो वहीं राम-रहीम के रंग में रंगी गुलजारगंज की ऐतिहासिक रामलीला सबके लिए मिसाल पेश करती है। लगभग दो दर्जन सदस्यों वाली समिति में आधा दर्जन मुसलमान रामलीला में किरदार निभाते हैं। मोहम्मद शमीम जहां रावणी दल में रावण के मंत्री का किरदार निभाकर लोगों को आकर्षित करते हैं वहीं भुल्लर मियां बानरी सेना के साथ ही सुमित्रा के रोल में रामलीला का मुख्य आकर्षण होते हैं। रामलीला देखने वाले दर्शकों में भी मुसलमान महिलाओं व बच्चों की भीड़ अंत तक जुटी रहती है। यहां की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मोहम्मद शब्बीर व उनके भाई मोहम्मद शरीफ द्वारा लिखित किताब से रामलीला का मंचन होता है।

सात दिनों तक चलने वाले हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बनी इस रामलीला को कई बार राज्य स्तरीय पुुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। रामलीला का मंचन कब से शुरू हुआ इसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं है। बाजार निवासी बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व यहां रामलीला का मंचन शुरू हुआ। जिसे नौ दशक पूर्व टेकारी गांव निवासी जमींदार गुलजार सिंह ने गुलजारगंज बाजार में रामलीला मैदान की जगह सुरक्षित कराकर नए ढंग से शुरू कराया। तत्पश्चात बाजारवासी बालादीन गुप्ता व उनके पुत्र महादेव के साथ टेकारी गांव निवासी शिव शंकर सिंह, फेकू सिंह व जगदम्बा सिंह ने मंचन कार्य का नेतृत्व किया। 

 प्रारंभ में रामलीला का संवाद रामचरित मानस, राधेश्याम तर्ज पर होता था। वर्ष 1974 ई. में कस्बे के सगे भाई मो.शब्बीर व मो.शरीफ ने स्वयं पुस्तक लिखी थी। जिसके सहारे रामलीला का मंचन आज तक अनवरत जारी है। समिति के प्रबंधक रईया गांव के प्रधान अच्छेलाल सेठ व अध्यक्ष सत्य नारायण मिश्र ने बताया कि इस रामलीला का मंचन विजय दशमी के बाद दीपावली के पहले किया जाता है।

जिसमें अच्छेलाल हलवाई व छोटेलाल जैसे बुजुर्ग कलाकार अभी भी मंचन का कार्य करने के साथ ही सराहनीय योगदान करते हैं। यहां मंचन के लिए देश-विदेश में नौकरी करने वाले अवकाश लेकर आते हैं। इस ऐतिहासिक रामलीला की एक अलग ही पहचान है। इस रामलीला को देखने के लिए देश-परदेश में रहने वाले लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। लोग अवकाश लेकर मंचन करने आते हैं। यहां पर केवल हिंदी ही नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज के लोग भी इस रामलीला में अपना पूरा सहयोग देते हैं।  

वर्षों से निभा रहे हैं किरदार 

रामलीला में कुछ ऐसे भी कलाकार हैं जो एक ही पात्र वर्षों से करते चले आ रहे हैं। बाजारवासी छोटेलाल हलवाई दशरथ का किरदार लगभग दो दशक से निभा रहे हैं जबकि राम का किरदार रतन अग्रहरि, सूपर्णखा का राधेश्याम, लक्ष्मण का ओमकार व नारद का किरदार सूरज गत दस साल से कर रहे हैं। वही हनुमान का किरदार का दायित्व गत तीन दशक से एक ही परिवार बखूबी निभा रहा है।

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