इस्‍लामी कैलेंडर नहीं बल्कि हिंदी का महीना तय करता है इस दिन काशी के 'मुसलमानों की नमाज'

अगहन महीने में पडऩे वाले दूसरे शुक्रवार को यहां के मुसलमान अपना कारोबार बंद कर इस परंपरा का निर्वहन करते हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 22 Nov 2019 01:37 PM (IST) Updated:Fri, 22 Nov 2019 01:50 PM (IST)
इस्‍लामी कैलेंडर नहीं बल्कि हिंदी का महीना तय करता है इस दिन काशी के 'मुसलमानों की नमाज'
इस्‍लामी कैलेंडर नहीं बल्कि हिंदी का महीना तय करता है इस दिन काशी के 'मुसलमानों की नमाज'

वाराणसी [मुहम्मद रईस]। कई मायने में भगवान शिव की नगरी काशी ने अपनी आगोश में परंपराओं के अनगिन नगीने सदियों से सहेज रखे हैं। इन्हीं में से एक है अगहनी जुमे की अनोखी नमाज की परंपरा। अनोखा इसलिए भी क्योंकि इसका निर्धारण हिंदी महीना 'अगहन' करता है। प्रतिवर्ष अगहन महीने में पडऩे वाले दूसरे शुक्रवार को यहां के मुसलमान अपना कारोबार बंद कर इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। 

बनारसी साड़ी तैयार कर देश-दुनिया तक पहुंचाने वाले बनारस के बुनकरों ने करीब चार सौ वर्ष पूर्व अगहनी जुमे के नमाज की परंपरा शुरू की थी, जो आज भी समरसता की मिठास घोलते हुए बदस्तूर जारी है। बुजुर्गों की उंगलिया थामे नई पीढ़ी भी आज उस रवायत को शिद्दत से निभाने पुराना पुल पुलकोहना ईदगाह में पहुंच रही है। सिर्फ बनारस में ही अदा होनी वाली इस नमाज के बाद के हजारों बुनकर अपने शहर व मुल्क की तरक्की, खुशहाली, समृद्धि व अमनो-आमान की दुआ मांगते हैं। देश में परंपराओं के नाम पर धार्मिक सहिष्‍णुता की यह नजीर बेनजीर ही नहीं बल्कि कई मायनों में दुनिया भर में इकलौती है।

ऐसे शुरू हुई थी परंपरा 

हाजी मुख्तार के मुताबिक करीब चार सदी पहले ये परंपरा उस वक्त शुरू की गई, जब किसान बारिश न होने से परेशान थे और कारोबारी मंदी भी छाई थी। उस दौरान बुनकरों ने मुर्री (कारोबार) बंद कर किसान भाइयों व अपने कारोबार के लिए पुरानापुल पुलकोहना स्थित ईदगाह में नमाज अदा कर दुआख्वानी की थी। मुसलमानों का इतना बड़ा हुजूम देख वहां हिंदू भाई गन्ने बेचने के लिए पहुंचे थे, तभी से नमाज और दुआख्वानी संग गन्ना बिकने की परंपरा अबतक बदस्तूर जारी है। नजीर बनारसी ने काशी में गंगा की महत्ता भी कभी इन हर्फों में रची थी - हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू करके।

बोले बुनकर सरदार :  हिंदी महीना अगहन के दूसरे शुक्रवार को अगहनी जुमे की नमाज अदा की जाती है। नमाज के बाद हजारों बुनकर मुल्क की तरक्की, खुशहाली व अमनो-आमान की दुआ मांगते हैं। - हाजी मुख्तार महतो, सरदार-बुनकर बिरादराना तंजीम बावनी। 


बोले बुनकर सरदार : होश संभाला है तब से इसमें शामिल होता आया हूं। इस दिन मुर्री बंद कर शहर भर के बुनकर नमाज अदा करने पुरानापुल ईदगाह पहुंचते हैं। - हाजी कलाम अंसारी, सरदार-बुनकर बिरादराना तंजीम बाईसी।

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