वाराणसी में संस्कृति संसद : मंदिरों में बसती है भारत की आत्मा, बोले- अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी

ज्ञान विज्ञान प्राकृतिक संरक्षण कलाओं व संवैधानिक विशेषताओं से परिपूर्ण हुआ करते थे मंदिर। कभी मंदिर व्यक्ति के चरित्र निर्माण का सशक्त माध्यम थे। यही कारण है कि भारतीयों पर राज करने के लिए विदेश से शासकों ने मंदिरों को निशाना बनाया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 14 Nov 2021 05:45 PM (IST) Updated:Sun, 14 Nov 2021 05:45 PM (IST)
वाराणसी में संस्कृति संसद : मंदिरों में बसती है भारत की आत्मा, बोले- अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी
वाराणसी में आयोजित संस्कृति संसद में उपस्थित लोग

जागरण संवाददाता, वाराणसी। ज्ञान, विज्ञान, प्राकृतिक संरक्षण, कलाओं व संवैधानिक विशेषताओं से परिपूर्ण हुआ करते थे मंदिर। कभी मंदिर व्यक्ति के चरित्र निर्माण का सशक्त माध्यम थे। यही कारण है कि भारतीयों पर राज करने के लिए विदेश से शासकों ने मंदिरों को निशाना बनाया। उसे तोड़ा और व्यवस्था बदला। इससे काफी परंपराएं खत्म हो गई हैं, उसे जीवंत करने का समय आ गया है। मंदिरों को सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनाने के लिए सरकार नियम में बदलाव करे। मंदिरों व संस्कृत विद्यालयों के संचालन पर लगे प्रतिबंध हटाए। संत मंदिरों में पुरातन व्यवस्था लागू करेंगे।

ये अमृत स्वरूप विचार 'संस्कृति संसद में 'मंदिर सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र कैसे बनें विषय पर मंथन करते हुए संतों व विद्वानों ने प्रकट किए। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने कहा कि भारत की आत्मा मंदिरों में बसती है। त्रेता, द्वापर युग में भी मंदिर थे। प्रभु श्रीराम ने स्वयं शिवलिंग स्थापित करके पूजन किया था। सामाजिक व्यवस्था बिगडऩे लगी तक आदिशंकराचार्य के आह्वान पर संतों व ब्राह्मणों ने मंदिरों की व्यवस्था अपने हाथ में लिया। जहां से पूजा के अलावा ज्ञान प्राप्ति, पूर्वजों की संस्कृति का संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, चरित्र निर्माण की शिक्षा मिलती है। मंदिर देशभर में 10 से 15 करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम हैं। दुर्भाग्यवश उसी मंदिर को सदियों से निशाना बनाया जा रहा है। इधर, षडयंत्र के तहत कोरोना का भय दिखाकर मंदिरों में ताला लगवाया गया। खुद को हिंदूवादी पार्टी कहने वाली शिवसेना के शासन वाले राज्य महाराष्ट्र में भी मंदिर काफी समय तक बंद रहे। मंदिरों को खुलवाने के लिए आंदोलन करना पड़ा। यह दिखाता है कि सनातन धर्मावलंबियों के खिलाफ बड़ा कुचक्र रचा जा रहा है।

गंगा महासभा व अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने मंदिर मनुष्य के चरित्र निर्माण का सशक्त माध्यम हैं। मंदिर आने वाले व्यक्ति का तन व मन पवित्र होता है। उसे खत्म करने के लिए कुचक्र रचे गए थे, जिसे मिलकर खत्म करना होगा। प्रो. आरके पांडेय ने बताया कि सनातन संस्कृति उपयोग पर केंद्रित है, उपभोग पर नहीं। त्याग, तपस्या की पहली पाठशाला मंदिर हैं। मंदिरों की गतिविधि बढ़ाकर समाज में आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकृतियों को दूर किया जा सकता है। राजा आदित्य वर्मा (त्रावणकोर) ने पद्मनाभ मंदिर की विशेषता पर विस्तार से प्रकाश डाला। बताया कि मंदिर के जरिए विद्यालय, अस्पताल आदि का संचालन करके सामाजिक व्यवस्था को सुदृण किया जा रहा है। एक सेवक के नाते वो भी उसमें हर संभव योगदान देते हैं। संचालन प्रमोद यादव ने किया।

निष्कर्ष

-संतों व ब्राह्मणों के प्रति पैदा किए गए गलत भाव को खत्म करने को अभियान चलाएं।

-सनातन संस्कृति के प्रति समर्पित हो हिंदू समाज।

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