काशी विद्यापीठ के 100 वर्ष : डा. मंगलदेव ने समाज सुधारक संघ बनाकर दी नई दिशा, आचार्य नरेंद्र देव के रहे करीब

डा. मंगलदेव ने अपने अध्यापन के दौरान काशी विद्यापीठ में एक समाज सुधारक संघ बनाया था। संघ के माध्यम से समाज को एक नई सोच व दिशा दी। इस संघ में आचार्य नरेंद्र देव के अलावा विद्यापीठ के तमाम प्राध्यापक व उनके मित्र ठाकुर प्रसाद शर्मा शामिल थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 08 Feb 2021 07:10 AM (IST) Updated:Mon, 08 Feb 2021 07:10 AM (IST)
काशी विद्यापीठ के 100 वर्ष : डा. मंगलदेव ने समाज सुधारक संघ बनाकर दी नई दिशा, आचार्य नरेंद्र देव के रहे करीब
शिक्षण परंपरा के साथ-साथ महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ स्वतंत्रता आंदोलन व समाजसेवा का भी एक अनुपम इतिहास है।

वाराणसी, जेएनएन। शिक्षण परंपरा के साथ-साथ महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ स्वतंत्रता आंदोलन व समाजसेवा का भी एक अनुपम इतिहास है। विद्यापीठ से डा. भगवान दास, आचार्य नरेंद्र देव, श्रीप्रकाश, आचार्य बीरबल सिंह, डा. मंगलदेव शास्त्री, प्रो. राजाराम शास्त्री, त्रिभुवन नारायण सिंह, मुंशी प्रेमचंद्र सहित तमाम आचार्यों की गौरवशाली परंपरा जुड़ी हुई है। डा. मंगलदेव ने अपने अध्यापन के दौरान विद्यापीठ में एक समाज सुधारक संघ बनाया था। संघ के माध्यम से समाज को एक नई सोच व दिशा दी। इस संघ में आचार्य नरेंद्र देव के अलावा विद्यापीठ के तमाम प्राध्यापक व उनके मित्र ठाकुर प्रसाद शर्मा शामिल थे। वर्ष 1924 में संघ के गठन पर उन्होंने एक अंतरजातीय भोज किया गया था। इसमें पं. जवाहरलाल नेहरू जैसे तमाम दिग्गज नेता शामिल हुए थे। हालांकि इस भोज में एक कमी यह थी कि इसमें कोई स्त्री नहीं थी। इस पर पंडित नेहरू ने प्रबंधकों का ध्यान भी आकृष्ट कराया था।

बदायूं में हुआ था जन्म

आचार्य मंगलदेव का जन्म वर्ष 1890 में बदायूं के प्रतिष्ठित आर्य समाज परिवार में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा उर्दू-पारसी से हुई। हालांकि संस्कृत के प्रति उनका रुझान शुरू से था। ऐसे में वर्ष 1903 में अंग्रेजी स्कूल छोड़कर गुरुकुल पद्धति के विद्यालय में पढऩे चले आए। यहीं से उन्होंने 1909 में शास्त्री की उपाधि हासिल की। भारतीय संस्कृति, दर्शन तथा संस्कृत साहित्य के अध्येता तथा प्रगतिशील विचारक डा. मंगलदेव, आचार्य नरेंद्र देव के खास सहयोगी थे। वर्ष 1922 में आक्सफोर्ड से डीफिल की उपाधि हासिल की। आचार्य नरेंद्र देव के के आग्रह पर वर्ष 1923 में वह काशी विद्यापीठ से जुड़ गए और अध्यापन का कार्य करने लगे। विद्यापीठ में अध्यापक के दौरान उनका आचार्य नरेंद्र देव स्नेह और गहरा हो गया। जो अंत तक बना रहा।

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