सरकारी भूमि के बैनाम पर उठे सवाल

सरकारी भूमि के बैनामा में शोहतरगढ़ तहसील प्रशासन पर सवाल उठने लगे हैं। एक व्यक्ति को लाभ दिलाने के लिए लेखपाल कानूनगो से लेकर तहसीलदार की भूमिका भी संदिग्ध है। एसडीएम ने भी रिपोर्ट को कैसे आगे बढ़ा दिया? जांच का अहम बिन्दु यह भी है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 25 Feb 2020 11:17 PM (IST) Updated:Tue, 25 Feb 2020 11:17 PM (IST)
सरकारी भूमि के बैनाम पर उठे सवाल
सरकारी भूमि के बैनाम पर उठे सवाल

सिद्धार्थनगर: सरकारी भूमि के बैनामा में शोहतरगढ़ तहसील प्रशासन पर सवाल उठने लगे हैं। एक व्यक्ति को लाभ दिलाने के लिए लेखपाल, कानूनगो से लेकर तहसीलदार की भूमिका भी संदिग्ध है। एसडीएम ने भी रिपोर्ट को कैसे आगे बढ़ा दिया? जांच का अहम बिन्दु यह भी है।

सुन्नी वक्फ बोर्ड की सरकारी जमीन का बैनामा कैसे हो गया और एक व्यक्ति ने कैसे भूमि अधिग्रहण कराकर 46 लाख का भुगतान ले लिया। इसकी जांच डीएम दीपक मीणा के निर्देश पर शुरू हो गई है। अपर जिलाधिकारी सीता राम गुप्ता, उप जिलाधिकारी न्यायिक सुदामा वर्मा और परिवीक्षाधीन डिप्टी कलेक्टर उत्कर्ष श्रीवास्तव की संयुक्त टीम मामले की जांच कर रही है। सूत्रों के अनुसार तहसील प्रशासन ने और भी कुछ भूमि पर इस तरह का कारनामा कर दिखाया है। यदि ऐसा है तो अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। जमीन किसी और का और भुगतान किसी और को करने का मामला भी चर्चा में है। इस पर भी जांच हो रही है। पूरे सिस्टम पर भू-माफिया कैसे हाबी रहे इसकी भी पड़ताल हो रही है। बता दें कि

तहसील के ग्राम धनौरा, मुस्तहकम निवासी गुलाम हुसेन ने डीएम को पत्र देकर अवगत कराया था कि सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड की सरकारी संपत्तियों को बेचा गया है। गाटा संख्या 146/315में इंडो नेपाल सड़क जा रही है। जिसको कूट रचित दस्तावेज के आधार पर गुलाम अब्दुल कादिर ने अपने नाम करा लिया। जिस भूमि पर लहलहाती फसल को एसडीएम शोहरतगढ़ ने वर्ष 2015 में फसल कुर्क करने का भी आदेश दिया था।

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तहसील प्रशासन है दोषी: सहायक अभियंता इंडो-नेपाल बार्डर सड़क के सहायक अभियंता दयाशंकर सिंह ने जागरण में छपी खबर का संज्ञान लेते हुए बताया कि सड़क के दायरे में जो भूमि आई है, उसका नियमानुसार ही मुआवजा दिया गया है। यदि एक व्यक्ति के फर्जी बैनामा के आधार पर 46 लाख रुपये दिए गए हैं तो तहसील प्रशासन का ही यह काम है कि वह धनराशि विभाग को वापस कराए। क्योंकि भूमि अधिग्रहण से लेकर मुआवजा बनाने की पूरी पत्रावली तहसील प्रशासन ने बनाई है। तहसीलदार और एसडीएम ने जो रिपोर्ट दी थी, उसी के अनुसार भुगतान किया गया है।

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