सहारनपुर में अभिनय के रंग तो हैं, पर मंच गायब है

सहारनपुर में रंग मंच का सुनहरा इतिहास रहा है। यहां के रंगकर्मियों ने देश में अपने लिए एक अलग जगह बनाई है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 17 Apr 2020 09:34 PM (IST) Updated:Fri, 17 Apr 2020 09:34 PM (IST)
सहारनपुर में अभिनय के रंग तो हैं, पर मंच गायब है
सहारनपुर में अभिनय के रंग तो हैं, पर मंच गायब है

अश्वनी त्रिपाठी, सहारनपुर।

वह भी क्या दिन थे, जब सहारनपुर में फिजा रंगमंच से गुलजार रहती थी। फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने यहां रंगमंच कर खुद को धन्य समझा। फिलवक्त हालात एकदम जुदा हैं। यहां अभिनय के रंग तो हैं, लेकिन मंच गायब है। जाहिर सी बात है, हौसलाअफजाई भी नदारद है। रंगकर्मी रंगमंच की विरासत को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

यह कहानी उस जिंदादिल सहारनपुर शहर की है, जिसने रंगमंच को जीया है। यहां पैदा हुईं अभिनेत्री जोहरा सहगल ने मोहल्ला ढोली खाल से 1950 में सर्वप्रथम थियेटर शुरू किया। यहीं से उन्होंने फिल्मों का रुख किया, लेकिन रंगमंच को कभी नगीनों की कमी नहीं हुई। यहां के नानौता निवासी जूनिसर महमूद ने रंगमंच में पहचान बनाई तो फिल्मों का प्रस्ताव मिला। 56 साल से वह मुंबई में हैं। 50 से अधिक हिदी व 85 मराठी फिल्मों में कार्य कर चुके हैं। सहारनपुर निवासी रंगकर्मी इनामुल हक फिल्मी दुनिया का बड़ा नाम हैं। शहर विधायक संजय गर्ग ने यहां इप्टा की स्थापना कर कई नाटकों में अहम रोल किया। दस के करीब थियेटर वर्कशॉप आयोजित कीं। रंगकर्मी ब्रिजेश जोशी ने 200 से अधिक नाटकों का मंचन किया। 80 नाटकों का निर्देशन किया। नाटक लड़ाई का 50 बार मंचन किया गया। उन्होंने बाल रंगमंच का शुभारंभ किया। रंगकर्मी सरदार अनवर ने अपना पूरा जीवन रंगमंच को समर्पित कर दिया। उन्होंने अनेक नाटकों का आयोजन किया।

रंगकर्मी विश्व विजय बहल ने 32 वर्ष रंगकर्म में लगाकर 100 से अधिक नाटकों का मंचन किया। ग्लिपिग, मॉक डाक्टर, चंद्रमुखी, संयोग, महारथी कर्ण, बिन बाती दीप, फंदी, लड़ाई नाटकों में अहम किरदार निभाया। कई नाटकों का निर्देशन कर पंजाबी फिल्मों में अभिनय किया। रंगकर्मी जावेद सरोहा ने अदाकार ग्रुप के माध्यम से सैकड़ों नाटकों का मंचन प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर किया। उन्होंने 50 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया। रंगकर्मी अरविद नैब ने तो करीब सौ नाटक किये, इसमें 24 का उन्होंने निर्देशन किया, चंद्रमुखी, जुलूस, फंदी, लड़ाई, घरवाली नखरों वाली का निर्देशन कर इसमें उन्होंने मंचन भी किया। इसके अलावा यहां के रंगकर्मियों की लंबी सूची है। स्वर्गीय वसीउर्रहमान, स्व. शम्श ताहिर खान, मसरूर अली खां ने रंगकर्म को बढ़ाने में अपनी पूरी जिदगी लगा दी। अभी बीके डोभाल, चांद दुर्रानी, विक्रांत शर्मा, राजीव सिघल रंगमंच को निरंतर बढ़ावा दे रहे हैं।

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