Lok Sabha Election 2024: इस लोकसभा सीट पर चुनाव में नहीं होगा राजघरानों का दखल! अलग सी बनती दिख रही राजनीतिक तस्वीर

सियासत बेल्हा की हो और उसमें राजघरानों की धमक न हो ऐसा होता नहीं था लेकिन इस बार की तस्वीर ऐसी ही बनती दिख रही है। किसी राजघराने से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि वह चुनाव में सीधे तौर पर यानी मैदान में आएंगे। रियासतें भी अभी कुछ नहीं बोली हैं। जिले में कालाकांकर व प्रतापगढ़ दो राजघराने ऐसे हैं जो चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं।

By Jagran NewsEdited By: Shivam Yadav Publish:Wed, 17 Apr 2024 11:55 PM (IST) Updated:Wed, 17 Apr 2024 11:55 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024: इस लोकसभा सीट पर चुनाव में नहीं होगा राजघरानों का दखल! अलग सी बनती दिख रही राजनीतिक तस्वीर
Lok Sabha Election 2024: इस लोकसभा सीट पर चुनाव में नहीं होगा राजघरानों का दखल!

जागरण संवाददाता, प्रतापगढ़। सियासत बेल्हा की हो और उसमें राजघरानों की धमक न हो, ऐसा होता नहीं था, लेकिन इस बार की तस्वीर ऐसी ही बनती दिख रही है। अब तक किसी राजघराने से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि वह चुनाव में सीधे तौर पर यानी मैदान में आएंगे। रियासतें भी अभी कुछ नहीं बोली हैं। 

जिले में कालाकांकर व प्रतापगढ़ दो राजघराने ऐसे हैं, जो चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। वह कई बार देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे। विधानसभाओं में भी गए। भदरी रियासत का भी राजनीति से गहरा जुड़ाव रहा है और अब भी है।

यहां के रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया मौजूदा समय में कुंडा के विधायक हैं। वह जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कालाकांकर राजघराने की राजकुमारी रत्ना सिंह कांग्रेस से मैदान में उतरी थीं, लेकिन सफलता नहीं मिली थी। 

हालांकि, तीन बार जनता उनको सांसद बना चुकी है। इस बार ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है। जानने वाली बात यह है कि यह एक ऐसी संसदीय सीट रही है, जहां सियासत राजघरानों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 

यही वजह रही कि अब तक हुए 17 चुनावों में 10 बार यहां के सांसद राजपरिवार से ही सदस्य बनते रहे। कालाकांकर राजपरिवार के पूर्व विदेश मंत्री दिनेश सिंह चार बार प्रतापगढ़ के सांसद बने। वह पहली बार 1967, फिर 1971 का चुनाव जीते। 

1977 की हार की वजह से वह हैट्रिक लगाने से चूक गए थे। इसके बाद वह 1984 और 1989 में जीते। प्रतापगढ़ सिटी के अजित प्रताप सिंह दो बार सांसद रहे और एक बार उनके बेटे अभय प्रताप सिंह जीते थे।

अजित पहली बार जनसंघ के टिकट पर संसद पहुंचे थे। अभय प्रताप सिंह 1991 में जनता दल का दामन थामकर जीते थे। राजकुमारी रत्ना सिंह 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा में चली गईं। तब से कांग्रेस कोई सशक्त उम्मीदवार तैयार नहीं कर सकी।

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