शिक्षा का दायरा बढ़ा लेकिन संस्कारों का क्षरण
पीलीभीत : बदलाव संसार का नियम है। दुनिया के अवतरण से और वर्तमान तक..। नित्य नए बदलाव ने हमें यहा
पीलीभीत : बदलाव संसार का नियम है। दुनिया के अवतरण से और वर्तमान तक..। नित्य नए बदलाव ने हमें यहां तक पहुंचाया। इस बीच गुजरी सदियों में हमने बहुत कुछ खोया, बहुत पाया। यह बदलाव ही है, जो जिसने हमें 'कलयुग' यानी मशीनी युग तक पहुंचा दिया। कुछ कर गुजरने की ललक ही है, हम आज से सौ साल या उससे आगे की सोचकर जीते हैं। इसी बदलाव और भविष्य को भांपने की कोशिश के साथ सफलता के 75 बरस पूरे कर चुका 'दैनिक जागरण' आपके बीच फिर हाजिर है। खुद में अथाह संस्मरण समेटे वरिष्ठ नागरिकों और तरक्की की परवाज भरने के लिए आतुर नौजवानों के संग। यह जानने की कोशिश के साथ..आखिर इस दौरान हमने क्या खोया, क्या पाया..? तो आइये हमारे साथ, अगले दस दिन। एक से बढ़कर एक अनुभवी हाथों से पिरोये गए शब्दों के जरिये जानें समाज, देश और दुनिया आखिर जा कहां रहे हैं..।
पिछले 75 वर्षों के दौरान बहुत कुछ बदलाव हुए हैं। बात अगर शिक्षा क्षेत्र की करें तो संसाधनों में आशातीत बढ़ोतरी हुई। शिक्षा का दायरा भी पहले की तुलना में बहुत बढ़ चुका है, लेकिन विद्यार्थियों में संस्कारों का क्षरण हुआ है। गुरु-शिष्य के रिश्ते पहले के समान अब नहीं रहे। यह सब शिक्षा का व्यवसायीकरण होने के चलते हुआ है। अच्छी बात यह है कि दैनिक जागरण एक विश्वसनीय समाचार पत्र की भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन करने के साथ ही संस्कारशाला के माध्यम से विद्यार्थियों में नैतिक गुणों का विकास कराने की जो मुहिम शुरू की है, वह प्रशंसनीय है।
पाने के साथ खोया भी बहुत
एक जमाना था, जब बच्चों को रात में पढ़ाई के लिए समुचित रोशनी का इंतजाम कर पाना तक मुश्किल हो जाता था। केरोसिन की ढिबरी जलाकर पढ़ाई करते थे। फिर बिजली का युग आ गया और अब तो बिजली न हो तो सोलर लाइट की सुविधा रहती है। गांवों से शहर तक पहुंचने के रास्ते बड़े ही ऊबड़खाबड़ हुआ करते थे। यात्राएं कष्टसाध्य थीं लेकिन यातायात के आधुनिक साधनों ने सफर को आसान बना दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में भारी बदलाव हुआ है। पहले गुरु-शिष्य के बीच जिस तरह के रिश्ते होते थे, आज स्थिति वैसी नहीं रही। शिक्षक सिर्फ स्कूल में ही अपने विद्यार्थियों के प्रति जिम्मेदार नहीं रहते थे बल्कि गली- मुहल्ले या गांव में कोई स्कूली बच्चा अगर कोई गलत काम करते शिक्षक को दिख जाता तो तुरंत उसके पास पहुंचकर फटकार लगाते। कभी-कभार पिटाई भी कर देते थे लेकिन आज के दौर में शिक्षक सिर्फ स्कूल से मतलब रखते हैं। अपने विद्यार्थियों के साथ उनका व्यवहार दोस्ताना होता है। अगर किसी बच्चे की गलती पर उसकी पिटाई कर दी, तब तो अभिभावक लड़ने पहुंच जाते हैं। पहले ऐसा नहीं था। अभिभावक शिक्षक की बच्चे के प्रति सख्ती देखकर खुश हो जाते थे। उन्हें पता रहता था कि अगर शिक्षक ने बच्चे की पिटाई लगा दी है तो वह बच्चे के हित में है।
ढीली पड़ी रिश्तों की डोर
पुराने जमाने में भी जातिवाद था लेकिन समाज में एक-दूसरे के साथ लोग रिश्तों में बंधे थे। गैर बिरादरी के लोगों के उम्रदराज लोगों के प्रति भी सम्मान का भाव रहता था। आदर से लोग उन्हें चाचा, ताऊ, चाची, ताई जैसे संबोधन से पुकारते थे। विज्ञान के बड़े-बड़े आविष्कार इस अवधि में हुए। पिछले करीब दो दशक से तो तकनीकी ने ऊंची छलांग लगाई है। वर्चुअल दुनिया में खोई रहने वाली आज की नई पीढ़ी अपने आसपास के माहौल से जैसे कटती जा रही है। संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। मुझे अपना बचपन याद आता है, जब दादा-दादी से लेकर माता-पिता, चाचा-चाची और हम सब भाई-बहन एक ही परिवार का हिस्सा होते थे। आपस में इतनी आत्मीयता कि सभी एक-दूसरे की जरूरतों का पूरा ध्यान रखते थे लेकिन अब हालात ऐसे नहीं रहे।
उम्मीद पर दुनिया कायम
आगे की संभावनाओं के बारे में लगता है कि समाज में ऐसी संस्थाओं और लोगों की मौजूदगी है, जो कुछ बेहतर करने में लगे हुए हैं। इससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाला भविष्य अच्छा ही होगा। किसान अब फिर जैविक खेती की ओर लौट रहे हैं। लोगों में देश के प्रति प्रेम का भाव बढ़ रहा है। बीच में जरूर ऐसा दौर आया, जब इस तरह की भावना का ह्रास होने लगा था परंतु अब स्थिति बदली है। लोगों में राष्ट्रीयता की भावना बढ़ रही है। राष्ट्रगान और वंदेमातरम के प्रति आम लोगों में जागरूकता फिर से बढ़ रही है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की काफी गुंजाइश है। इसमें सुधार हो तो नई पीढ़ी का भला होगा, उनमें संस्कारों का विकास होगा, जो समाज की प्रगति के लिए बहुत ही आवश्यक है।
-रामप्रकाश मिश्र, सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक गौरीशंकर मंदिर (पीलीभीत)