शहर में स्वच्छता की जिम्मेदारी उठाने वाले विभाग के अफसर अपने कर्मचारियों से परेशान Moradabad News

मुरादाबाद में स्वच्छता की जिम्मेदारी उठाने वाले विभाग में इन दिनों बहुत कुछ नहीं चल रहा है। कार्यालय के अंदर ही अधिकारी अपने ही कर्मचारियों से परेशान हैं।

By Narendra KumarEdited By: Publish:Sun, 23 Feb 2020 08:10 AM (IST) Updated:Sun, 23 Feb 2020 08:10 AM (IST)
शहर में स्वच्छता की जिम्मेदारी उठाने वाले विभाग के अफसर अपने कर्मचारियों से परेशान  Moradabad News
शहर में स्वच्छता की जिम्मेदारी उठाने वाले विभाग के अफसर अपने कर्मचारियों से परेशान Moradabad News

मुरादाबाद(मोहन राव)। स्वच्छता की अलख जगाने वाले विभाग के कार्यों की प्रगति को लेकर साहब अपने ही कर्मचारियों से खासे परेशान रहने लगे हैं। कारण, कुछ कर्मचारी साहब को इधर-उधर की बताने लगते है तो साहब का पारा भी हाई हो जाता है। सुबह से शाम तक शिकायतों का निपटारा कराएं कि जवाब बनाएं, इसी उधेड़बुन में साहब का पारा कभी अचानक से हाई हो जाता है। कर्मचारी से कहते हैं कि देखिए आप कानून हमें मत सिखाइए, काम कीजिए। इसके बाद भी कर्मचारी चुप होने की बजाए साहब को सुनाते रहते हैं। सुनने की हद पार होने पर साहब दो टूक कहते हैं, फंसोगे तो... हो जाओगे। इसके बाद तो कर्मचारी जी-सर, जी-सर, कहता हुआ कर्मचारी फाइल की बात कहकर बाहर निकल जाता है। कुछ देर बाद ही दूसरे कर्मचारी की इंट्री होने के बाद साहब उससे भी कहने लगते हैं कि देखिए ऐसे काम नहीं चलेगा, जवाब तुरंत तैयार कराएं।

आधी आबादी की मनमानी 

विकास कार्यों को रफ्तार देने वाले भवन में आधी आबादी की मनमानी चल रही है। किसी दफ्तर में मैडम का मोबाइल प्रेम तो किसी कार्यालय में काम नहीं करने वाली महिला कर्मचारियों से साहब परेशान होने की चर्चा आम होने लगी है। कभी विकास भवन आएं तो देखने को मिलेगा कि काम करने की बजाय मैडम आपस में गुफ्तगू करती मिलेंगी। वैसे जिन विभागों में इनकी तैनाती है वहां पर कुछ विशेष कार्य इनकों लिए नहीं मिला है। समय पास करने के लिए मोबाइल पर चैटिंग, फेसबुक देखना इनका शगल बन गया है। अफसर भी कुछ नहीं बोलते, लिहाजा विकास भवन के दफ्तरों में उनसे कोई कुछ कहने की हिम्मत तक नहीं जुटता है। एक साहब ने आवाज उठाई तो उन्हें ही चुप करा दिया गया। अफसर भी कहते हैं कि क्या करें, किससे कहें, कोई सुनता ही नहीं। स्थिति ऐसी है कि किसी कार्यालय में मैडम बैठी मिलेंगी भी तो कोई काम की कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।

 दामन पर बदनामी के दाग 

टीवी पर कपड़े धोने के लिए एक कंपनी के सर्फ का प्रचार तो देखा ही होगा, जिसमें दाग अच्छे है की बात कही जाती है।  कुछ ऐसी ही तस्वीर इस समय सत्ताधारी नेताओं की हो रहीं है। चुनाव में जीत दिलाने के लिए पैसे के लेन-देन का आडियो वायरल हुआ है। इसके बाद कार्यकर्ताओं में बहस छिड़ गई है। दबी जुबान कार्यकर्ता कह रहे है कि यह सब सार्वजनिक नहीं होना चाहिए। अगर कुछ दाग है तो उसे साफ किया जाना चाहिए। अब दाग कौन लगा रहा, कैसे साफ होगा, इसे लेकर कार्यकर्ता भी हतोत्साहित हैं। दामन पर लगे दाग पर पार्टी की कार्यकारिणी में घमासान छिड़ा है। एक वर्ग ऐसा है जो खुश नहीं है। तरजीह मिलने की उम्मीद थी लेकिन, उपेक्षा की गई। इसके बाद तो पंचायत और एलान को लेकर नेताओं के होश उड़ गए हैं।

हम कुछ बोल नहीं सकते

गन्ना विभाग के कर्मचारी कुछ महीनों से परेशान हैं, कारण साहब की चुप्पी है। कहते हैं कि हम लोग अभी कुछ भी बोल नहीं सकते। साहब जब कुछ कहेंगे तभी बता पाएंगे। साहब की खामोशी की चर्चा मंत्री के सामने भी हुई। मंत्री ने दो टूक कहा, बताने में क्या परेशानी है। इसके बाद साहब ने हामी तो भरी, लेकिन क्या करें। साहब की कम बोलने की है लिहाजा कर्मचारी अब भी परेशान हैं। कुछ पूछिए तो कहते है कि हम अपने मन से कुछ नहीं बता सकते। पहले का माहौल दूसरा था, अब दूसरी स्थिति है। साहब की चुप्पी से कर्मचारी ही नहीं, अन्य लोग भी परेशान रहते हैं। एक दिन कुछ किसान गन्ना दफ्तर में पहुंचे तो कोई नहीं मिला, लिहाजा कर्मचारी से मिलने लगे। किसी बात को लेकर किसानों और कर्मचारियों के बीच बहस हो गई। साथी कर्मचारी और किसान दोनों को शांत कराने में ही लग गए।

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