रेफरी विदेशी तो सेलेक्टर्स क्यों नहीं
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद वर्ष 1980 के बाद से ओलंपिक की हॉकी स्पर्धा में भारत को स्वर्ण पदक नहीं
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद
वर्ष 1980 के बाद से ओलंपिक की हॉकी स्पर्धा में भारत को स्वर्ण पदक नहीं मिला है। खेल दिवस पर मंथन करके इस पर विचार किया जाना चाहिए। इसके कारणों को तलाश कर कमी को दूर करने के प्रयास होने चाहिए। बदलते माहौल में हम प्रतिद्वंद्वी देशों के सामने कहां टिकते हैं, इस पर विचार होना चाहिए। यह विचार जागरण से विशेष बातचीत में फैजगंज निवासी एसएम फिरदौसी ने कही। वह अब बुजुर्ग हो चुके हैं। 80 के दशक में हॉकी खेला करते थे। उन्होंने बताया कि मौजूदा दौर में हॉकी के मैदान पर रेफरी विदेशी रहते हैं। इसका कारण निष्पक्ष खेल कराना होता है। उनका कहना है कि इसी तरह यदि टीम चयन की प्रक्रिया भी विदेशी लोगों के हाथ में दे दी जाए, तो भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद और भ्रष्टाचार जैसे चीजें जड़ से खत्म हो जाएंगी। सिफारिशी के बजाय युवा और तेज तर्रार खिलाड़ियों को तवज्जो दी जाए।
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अभी तक खेल रहे पुराने ढर्रे पर
हम आज भी पुराने ढर्रे पर खेल रहे हैं। विदेश में नई-नई खेल की तकनीक इजाद की जा रही हैं। उनको खेल में शामिल किया जा रहा है। जिसके चलते भारतीय खिलाड़ी पिछड़ रहे हैं। उदाहरण स्वरूप विदेश में एस्ट्रो टर्फ लाया गया। फिर सुपर टर्फ आ गया। ऐसे मैदान अपने देश में काफी कम पाए जाते हैं। जिसका असर खेल के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिलता है। इसके अलावा यह टर्फ भारतीय जलवायु के हिसाब से भी फिट नहीं हैं। जिससे खिलाड़ी अपना सौ फीसद देने में असमर्थ होते हैं।