भारतीय परंपरा के ज्ञान, विज्ञान की जननी संस्कृत

उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ एवं राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चुनार के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को राजकीय महाविद्यालय चुनार के सभागार में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का शुभारंभ हुआ। वर्तमान परिपेक्ष्य में संस्कृत वांगमय की प्रासंगिकता विषयक सेमीनार का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. यदुनाथ प्रसाद दुबे ने कहा कि भारतीय परंपरा में जितने ज्ञान विज्ञान निकले हैं और वैश्विक संदर्भ में भी ज्ञान की जितनी शाखाएं हैं सभी संस्कृत वांगमय वेदों की ही देन हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 16 Feb 2019 08:39 PM (IST) Updated:Sat, 16 Feb 2019 11:51 PM (IST)
भारतीय परंपरा के ज्ञान,  विज्ञान की जननी संस्कृत
भारतीय परंपरा के ज्ञान, विज्ञान की जननी संस्कृत

जागरण संवाददाता, चुनार (मीरजापुर) : उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ एवं राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चुनार के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को राजकीय महाविद्यालय चुनार के सभागार में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का शुभारंभ हुआ। वर्तमान परिपेक्ष्य में संस्कृत वांगमय की प्रासंगिकता विषयक सेमीनार का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. यदुनाथ प्रसाद दुबे ने कहा कि भारतीय परंपरा में जितने ज्ञान विज्ञान निकले हैं और वैश्विक संदर्भ में भी ज्ञान की जितनी शाखाएं हैं सभी संस्कृत वांगमय वेदों की ही देन हैं। उन्होंने संस्कृत को ज्ञान का भंडार बताते हुए कहा कि आज भी संस्कृत उतनी ही प्रासंगिक है जितनी प्राचीनकाल में थी। पूर्व कुलपति ने संस्कृत के प्रसार प्रचार पर बल दिया।

विशिष्ट अतिथि के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पधारे प्रो. उमाकांत यादव ने आष्टांग योग की महत्ता पर चर्चा करते हुए कहा कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि से मिल कर आष्टांग योग बना है लेकिन आज के परिवेश में सिर्फ आसन व प्राणायाम को योग की संज्ञा दी जा रही है जो गलत है। जब तक धारणा, ध्यान व समाधि का समावेश नहीं होगा तब तक चित्त व वृत्ति की शुद्धता प्राप्त नहीं होगी। लखनऊ विश्विविद्यालय के प्रो. रामसुमेर यादव ने बच्चों में संस्कार की भावना जागृत करने के लिए संस्कृत के सुभाषित को व्यवहार में लाने की बात कही। कहा कि संस्कृत द्वारा जीवन दर्शन के तमाम बातें सीखने को मिलती हैं। संपूर्णानंद विवि वाराणसी के प्रो. हरि प्रसाद अधिकारी ने कहा कि संस्कृत भाषा हमें विनम्र होना सिखाती है और धन पिपासु होन और लोभ से विरक्ति की ओर ले जाती है। अध्यक्षता कर रही प्राचार्या डा. मंजू शर्मा ने कहा कि संस्कृत विशिष्ट भाषा है। इस सेमीनार का उद्देश्य है कि प्रचार प्रसार के माध्यम से संस्कृत को और समृद्ध बनाने का प्रयास किया जाए। उद्घाटन सत्र को पांडीचेरी विश्वविद्यालय के डा. अनिल प्रताप गिरी व सागर विश्विविद्यालय के डा. संजय कुमार ने भी संबोधित किया। इसके पूर्व महाविद्यालय की छात्र-छात्राओं ने सरस्वती वंदना, स्वागत गीत, कुलगीत तथा वैदिक ऋचाओं का वाचन कर सबका मन मोह लिया। संचालन संयोजक डा. प्रभात कुमार ¨सह व धन्यवाद ज्ञापन डा. शेफालिका राय ने किया। इस दौरान संस्कृत महाविद्यालय चुनार के प्राचार्य डा. ब्रह्मनंद शुक्ल, डा. अशर्फी लाल, डा. रामनिहोर शर्मा, डा. माधवी शुक्ला, डा. सूबेदार प्रसाद, डा. भाष्कर प्रसाद द्विवेदी, डा. आलोक आदि थे। -पहले दिन दो सत्रों में प्रस्तुत हुए 40 शोध पत्र

सेमीनार के पहले दिन दो समानान्तर सत्रों में देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए प्राध्यापकों व शोधार्थियों द्वारा मानवाधिकार संरक्षण में संस्कृत वांगमय की प्रासंगिकता तथा बौद्ध दर्शन की वर्तमान प्रासंगिता विषयक 40 शोध पत्र प्रस्तुत किए। इस दौरान शोधार्थियों ने दोनों विषयों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। पहले सत्र के विशिष्ट वक्ता डा. सुनील विश्वकर्मा राजकीय डिग्री कालेज प्रयागराज तथा दूसरे सत्र के डा. राजनाथ यादव राजकीय पीजी कालेज चंदौली रहे।

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