स्कूलों में क्लासरूम कम, लैब होंगी अधिक

नई शिक्षा नीति में पठन-पाठन को क्लास से निकाल कर प्रयोगशाला यानी प्रैक्टिकल बेस्ड एजुकेशन पर जोर दिया गया है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 04 Aug 2020 08:00 AM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 08:00 AM (IST)
स्कूलों में क्लासरूम कम, लैब होंगी अधिक
स्कूलों में क्लासरूम कम, लैब होंगी अधिक

जेएनएन, मेरठ। नई शिक्षा नीति में पठन-पाठन को क्लास से निकाल कर प्रयोगशाला यानी प्रैक्टिकल बेस्ड एजुकेशन पर जोर दिया गया है। स्कूलों को कक्षा नर्सरी से 12वीं तक 15 साल बच्चों को पढ़ाना है। जो भी स्कूल वर्तमान में संचालित हैं उनमें व्याप्त कक्षा कक्ष या अन्य जगहों का अधिकतम उपयोग पहले से ही हो रहा है। हर कक्षा में 40-45 की बजाय 60-65 बच्चे पढ़ रहे हैं। ऐसे में कक्षा छह से ही स्किल बेस्ड एजुकेशन देने के लिए जितने विषय उतने लैब भी होने चाहिए। इसके लिए अतिरिक्त कक्षा, लैब, शिक्षक व अन्य संसाधनों को बढ़ाना होगा जो, कोरोना की चपेट से निकलने के तुरंत बाद करना बहुत आसान भी नहीं होगा।

चरणबद्ध तरीके से करना होगा लागू

नई शिक्षा नीति को बच्चों के हित के लिए बनाया गया है इसलिए उनका हित कितना हो रहा है इसे भी परखना जरूरी होगा। इसे चरणबद्ध तरीके से लागू करते हुए आगे बढ़ने से ही हर वर्ग जागरूक होगा। विशेष तौर पर वोकेशनल एजुकेशन देने के लिए सबसे पहले स्कूलों में संसाधन के साथ ही बच्चों और उनके माता-पिता का स्किल एजुकेशन के प्रति जागरूक होना जरूरी है। स्कूलों के सामने शुरुआती चुनौती संसाधन तैयार करने की ही होगी। नीति को सफलता से लागू करने के लिए अभी बहुत विचार-विमर्श करना शेष है तभी इसकी रूपरेखा तैयार होगी।

-सिस्टर गेल, प्रिसिपल, सोफिया ग‌र्ल्स स्कूल स्कूलों को लैब बढ़ाने होंगे

कक्षा छह से ही स्किल विषयों को पढ़ाने के लिए हर कक्षा के बच्चों के विषय के अनुरूप उनकी लैब तैयार करनी होगी। वर्तमान में हमारे पास विज्ञान लैब ही हुआ करते हैं लेकिन सीबीएसई ने अब हर विषय में प्रैक्टिकल डाला है। अब शिक्षण को प्रैक्टिकल बेस्ड बनाने के लिए कक्षा कम और लैब अधिक बनाने होंगे। अतिरिक्त कक्षा व लैब के लिए अतिरिक्त कक्ष बनाने होंगे जिसके लिए अतिरिक्त जमीन भी होनी चाहिए। जो शहरी स्कूलों के पास नहीं हैं। कक्षा नौवीं में छात्र जो विषय लेगा वहीं विषय 12वीं तक चलेगा। उस विषय में अच्छे शिक्षण के लिए भी अतिरिक्त लैब बनाने होंगे। नए स्कूल कर सकेंगे, पुराने में मुश्किल होगी। संभव है कि कुछ सेक्शन कम कर नए बढ़ाने पड़ें।

-सुधांशु शेखर, प्रिसिपल, केएल इंटरनेशनल स्कूल

इंडस्ट्री बेस्ड स्किल ट्रेनिग दिलानी होगी

स्कूलों की रूपरेखा पठन-पाठन और आधारभूत संरचना दोनों लिहाज से बदलनी होगी। नर्सरी से 12वीं तक बच्चों को एक तरह की शिक्षण पद्धति में ढालना होगा। लेकिन मिडिल व सीनियर वर्ग में स्किल विषयों को पढ़ाने के लिए जितने लैबों की जरूरत होगी उतने स्कूलों में नहीं हैं। इसलिए ऐसे स्किल विषय चुनने होंगे जिनकी प्रैक्टिकल ट्रेनिग बच्चों को इंडस्ट्री से जोड़कर कराई जा सके। इंडस्ट्री बेस्ड एजुकेशन और ट्रेनिग देने से ही सही मायने में स्किल कोर्स पढ़ाने का फायदा होगा और छात्रों का कौशल विकसित होगा।

-चंद्रलेखा जैन, प्रिसिपल, सेंट जोंस सीनियर सेकेंड्री स्कूल

च्वाइस को लेकर बढ़ेगी प्रतिस्पर्धा

कक्षा पांचवीं तक मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा की च्वाइस को लेकर स्कूलों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। जिसके पास जितनी च्वाइस होगी, वह आगे रहेगा। लेकिन बच्चों को अधिक से अधिक च्वाइस देने के लिए स्कूलों को अपना इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत ज्यादा बढ़ाना होगा। भाषा के साथ ही स्किल विषयों के लिए भी शिक्षक, क्लास, लैब आदि बढ़ाने होंगे। कक्षा पांच व आठवीं में बोर्ड परीक्षा होंगे। शिक्षकों की ट्रेनिग अनिवार्य रूप से करानी होगी। पुराने स्कूलों में कक्ष बढ़ा पाना हर किसी के लिए संभव नहीं होगा।

-असीम कुमार दुबे, प्रिसिपल, दीवान पब्लिक स्कूल

chat bot
आपका साथी