..आसमां की ऊंचाई ही जिनकी 'सीमा'

मेरठ : सीमा जब ट्रैक पर उतरती हैं तो देश पदक के लिए तकरीबन आश्वस्त होता है। कॉमनवेल्थ से लेकर एशियॉड

By Edited By: Publish:Wed, 01 Oct 2014 01:38 AM (IST) Updated:Wed, 01 Oct 2014 01:38 AM (IST)
..आसमां की ऊंचाई ही जिनकी 'सीमा'

मेरठ : सीमा जब ट्रैक पर उतरती हैं तो देश पदक के लिए तकरीबन आश्वस्त होता है। कॉमनवेल्थ से लेकर एशियॉड तक पदकों का स्वर्णिम सफर अब ओलंपिक की जानिब कदम बढ़ा चुका है। अरसा पहले डोपिंग में नाम आने के बाद वह टूट गई। क्लीन चिट मिलने के बाद फिटनेस से परेशान होकर ट्रैक छोड़ने का मन बना, किंतु देश के लिए पदक जीतने की तमन्ना ने मेरठी बहू की बाजुओं में असीम ताकत भर दी। राष्ट्रीय रिकार्डधारी एवं दर्जनों अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुकी सीमा अब नारी की सशक्त छवि की उम्दा प्रतिमान बन गई हैं।

हरियाणा में सोनीपत स्थित खेवड़ा गांव में पैदा हुई सीमा के घर पर बचपन से खेल का माहौल रहा। दोनों भाई एथलीट थे, ऐसे में सीमा के कदम भी ट्रैक पर पड़े। स्कूल स्तर से लेकर नेशनल तक सिलसिलेवार जीत मिलती रही। सीमा ने डिस्कस थ्रो में कई नए मीट रिकार्ड बनाए। हालांकि काफी दिनों तक कोई स्पांसर नहीं मिला। व‌र्ल्ड जूनियर एथलेटिक्स 2003 में सीमा ने स्वर्ण पदक जीतकर तहलका मचा दिया। राष्ट्रीय कैंप में रहते हुए सीमा डोप जांच में विवादित हुई। खांसी का सिरप पीने की वजह से सैंपल पाजिटिव मिला और प्रतिबंध की तलवार लटकने लगी। हौसला खोया, तो घर वालों ने उन्हें ओलंपिक की कसम देकर मनोबल भरा। क्लीन चिट तो मिल गई, किंतु अब सीमा को इंजरी ने घेर लिया। एक खिलाड़ी के लिए फिटनेस जाने का मतलब मैदान से अलविदा होने का होता है। तमाम दुश्वारियों से संघर्ष करते हुए सीमा ने वर्ष 2006 में मेलबोर्न कामनवेल्थ खेलों में रजत पदक जीतकर सनसनी फैला दी। इसके बाद लंबे समय तक इंजरी की वजह से मैदान से दूर रहना पड़ा। ट्रैक पर वापसी की, तो 64.87 मीटर दूरी नापकर नया नेशनल रिकार्ड बना दिया। वर्ष 2010 में नई दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों में कांस्य पदक जीता। फरवरी 2011 में मेरठ के अंकुश पूनिया से शादी करने के बाद कइयों को लगा कि सीमा अब खेलों को अलविदा कह देंगी। किंतु सीमा ने लंदन ओलंपिक 2012 का लक्ष्य बनाकर जबरदस्त मेहनत की। उन्होंने ओलंपिक खेला, किंतु अपनी प्रतिद्वंदी कृष्णा पूनिया से पिछड़ने का गम सालता रहा। सीमा विदेश में प्रशिक्षण लेने पहुंची, तो वहां की सर्दी और अंतरराष्ट्रीय एथलीटों की 65 मीटर से ज्यादा की रेग्यूलर थ्रो ने उन्हें विचलित किया। उन्होंने अपनी नारी शक्ति में नए सिरे से ऊर्जा भरी। ग्लास्गो कामनवेल्थ में रजत और अगले ही माह एशियाड में गोल्ड मेडल नापकर मेरठी बहू ने नारी का सम्मान ऊंचा किया। आज वह हजारों लड़कियों की प्रेरणास्रोत बनकर मैदान में उतरती हैं।

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