CoronaVirus: मिट्टी के घड़े से पानी पीने से ये चमत्‍कारी फायदे यकीनन आप नहीं जानते होंगे

CoronaVirus कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए गर्म या नॉर्मल पीने की भी दी गई है सलाह मिट्टी की सुराही और मटकी का शीतल जल है बेहतर विकल्प।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Fri, 12 Jun 2020 02:09 PM (IST) Updated:Fri, 12 Jun 2020 03:58 PM (IST)
CoronaVirus: मिट्टी के घड़े से पानी पीने से ये चमत्‍कारी फायदे यकीनन आप नहीं जानते होंगे
CoronaVirus: मिट्टी के घड़े से पानी पीने से ये चमत्‍कारी फायदे यकीनन आप नहीं जानते होंगे

लखनऊ, जेएनएन। CoronaVirus: गर्मी के दिनों में मिट्टी की सौंधी खुशबू वाला घड़े का शीतल पानी किसी रसीले फल का स्वाद लेने जैसा ही लगता है। मिट्टी की वो सुराही, वो मटकी जिसे हम देसी या प्राकृतिक फ्रिज भी कहते हैं, उसमें सेहत का खजाना छिपा है। ये हमारे साथ-साथ प्रकृति के स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। समय के साथ कई चीजें हमारे घर से बाहर हो गईं। आज बंद एसी कमरे में जब हम सोकर जागते हैं तो शरीर अकड़ जाता है। फ्रिज और वॉटर कूलर का पानी गले के साथ ही दांत भी खराब कर रहा। सुराही और मटकी जैसे प्राकृतिक फ्रिज गला खराब नहीं करते, बिजली भी बचाते हैं। 

ग्लोबल वॉर्मिंग की चिंता को भी कम करते हैं। सबसे बड़ी बात ये ठंडे पानी से हमारा सेहत भरा रिश्ता बनाते हैं। जो लोग घड़े के पानी की अहमियत को समझते हैं, वो आज भी उसी का पानी पीते हैं। मिट्टी में कुछ ऐसे गुण होते हैं, जिनके कारण पानी में मौजूद विषैले पदाथों को अवशोषित कर पानी को शुद्ध कर देती है। अब जब संक्रमण से बचाव के लिए गर्म या नॉर्मल पानी पीने की सलाह दी गई है, तो लोग इस भीषण गर्मी में भी फ्रिज का ठंडा पानी पीने से परहेज कर रहे। इसी के चलते अब मिट्टी के मटके , सुराही आदि की दुकानों प र भी ग्राहक दिखने लगे हैं । कुम्हार भी उम्मीद लगाए हैं कि लॉकडाउन के कारण शुरुआत में काम बिल्कुल ठप हो गया था, लेकिन धीरे-धीरे सब पटरी पर आ ही जाएगा।

आधुनिकता के नाम पर हमने प्रकृति और स्वयं के साथ क्या कुछ गलत नहीं किया। कुछ समय के लिए ही सही, कोरोना महामारी के कारण इस अंधी दौड़ में हमें ठहरकर सोचने का मौका मिला। भौतिक चकाचौंध की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ रही, वो हर किसी के सामने है। पश्चिम देशों ने प्रकृति और प्राकृतिक नियमों के साथ जो खिलवाड़ किया, उसका खामियाजा हमें भी भुगतना पड़ रहा। ऐसा भी नहीं है कि हमारे दामन पर कोई दाग नहीं। हमने भी प्रकृति को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनमें और हम में अंतर सिर्फ इतना है कि हमारी परंपराएं प्रकृति संरक्षण का पाठ पढ़ाती हैं। प्रत्येक परंपरा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण छिपा हुआ है। हमें उसे समझना चाहिए। वायरस के खौफ के कारण ही सही लोगों के रहन सहन और खान-पीन के तरीकों में खासा बदलाव देखने को मिल रहा है। लोग पुरातन परंपराओं की ओर लौटने लगे हैं। ऐसी ही पुरातन परंपरा मिट्टी के घड़ों से भी जुड़ी हुई है। 

पहले हर घर में मिट्टी के घड़े मिल जाते थे, फिर बाद में मिट्टी के घड़ों की जगह फ्रिज ने ले ली। अब प्यास लगने पर हर कोई फ्रिज से बोतल निकालकर पानी पी लेता है। बिना ये सोचे की फ्रिज का ये ठंडा पानी हमारी सेहत को कितना नुकसान पहुंचा सकता है। महामारी के डर ने हमें सेहत के प्रति सतर्क भी किया है। लोगों ने सेहतमंद रहने के लिए फिर से प्राकृतिक चीजों से जुड़ना शुरू किया है। कम से कम मिट्टी की सुराही और मटकी को लेने पहुंचे लोगों की बात सुनकर तो ये कहा जा सकता है । कुछ लोग सहायतार्थ भी मिट्टी की सुराही और मटकी खरीद रहे हैं, ताकि प्यासे को शीतल जल पिलाया जा सके। कुछ लोग पशु-पक्षियों के लिए शीतल जल का प्रबंध करने के लिए खरीदारी कर रहे। जल सेवा करने वालों के कारण भी देसी फ्रिज की बिक्री हो रही। ये प्रयास भले ही छोटा हो सकता है, पर अगर हम इसे अपनी आदत बना लें तो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ये अमूल्य योगदान होगा। साथ ही ये कुम्हारों की तपती जिंदगी में भी शीतलता का संचार करेगा।

पर्यावरण के लिए भी कूल हैं घड़ा व सुराही

सीडीआरआइ पूर्व उपनिदेशक डॉ.पीके श्रीवास्तव के मुताबिक, घड़ा या सुराही पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी बेहद हितैषी हैं। यदि आप फ्रिज का ठंडा पानी पीते हैं तो गला खराब होने की पूरी संभावना रहती है जबकि घड़े का पानी पीकर कभी भी आपका गला नहीं खराब होता। कारण यह है कि घड़ा टेंपरेचर को कंट्रोल रखता है जबकि फ्रिज पानी को चिल्ड कर देता है। हालांकि, वर्ष 2005 के बाद से फ्रिज में कूलिंग के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन का इस्तेमाल बंद कर दिया गया है लेकिन फिर भी आप देखेंगे कि फ्रिज के आसपास का वातावरण गर्म रहता है। बिल्कुल उसी तरीके से जैसे एसी अंदर तो ठंडा करता है लेकिन बाहर इसके आसपास बेहद गर्मी होती है । इसलिए यह पर्यावरण में गर्मी पैदा करते हैं। जबकि सुराही में ऐसा नहीं होता। घड़े अथवा सुराही में छिद्र होते हैं जिससे अंदर रखे पानी का वाष्पन होता रहता है और पानी ठंडा रहता है।अब घड़े वा सुराही में तो टोटी लगाई जाने लगी है। इससे घड़े को बार-बार खोलना नहीं पड़ता जिससे उसके अंदर पानी का तापमान प्रभावित नहीं होता। साथ ही पानी निकालने में गिर कर बर्बाद नहीं होता और ना ही घड़ा टूटने का डर रहता है।

इन्हें है आपका इंतजार

 रोजाना आठ से 10 सुराही और घड़े बिक जाते हैं। इस बार लाॅकडाउन के कारण दुकानदारी कुछ कम रही। चौक तहसीनगंज निवासी घड़ा दुकानदार चन्द्रिका प्रसाद प्रजापति ने बताया कि वह हर सीजन में दो डाला माल मंगाते थे। इस बार अभी पहला डाला ही चल रहा है। काकोरी और उन्नाव से घड़े मंगाते हैं, उसके बाद खुद उसमे टोटी लगाते हैं। फिनिसिंग भी खुद से ही करते हैं। यह उनका खानदानी काम है। टोटी वाला घड़ा 150 से 160 में बिकता है। वहीं, सुराही 100, 90 और 80 रुपये तक।

गोमती नगर के मिठाई वाले चौराहे पर सुराही विक्रेता मुन्‍नी व मुस्‍ताक कहते हैं कि बिक्री ना के बराबर हुई है, कुछ दिन तो ऐसे भी रहे जब एक भी सुराही नहीं बिकी। छोटी सुराही 100 रुपये की है, टोटी लगी सुराही को वो 90 से 80 रुपये तक भी बेचने को तैयार हैं। बड़ी सुराही जो 120 रुपये की है उसे 100 रुपये में भी बेच रहे हैं। इसके बाद भी ग्राहक नहीं मिल रहे।

अलीगंज और आसपास के इलाकों में कुम्हारों का मुख्य बाजार पीएसी महानगर के पास है । जहां करीब आठ से 10 दुकानें हैं। दुकानदारों का कहना है कि श्रमिकों और छात्रों के शहर में ना होने की वजह से बिक्री ना के बराबर है। पिछले सीजन में जहां एक दिन में सौ नग घड़े और सुराही बिक जाया करते थे इन दिनों केवल 10 से 15 ही बिक रहे हैं।दुकानदार भारत बताते हैं कि हम लोग परेशान हैं । टोटी वाला घड़ा भी तैयार किया है ।उसकी बिक्री भी नहीं हो रही। सबसे सस्ता घड़ा 40 रुपये का है और सबसे महंगा 200 रुपये का। रायबरेली के हरचंदपुर से घड़े मंगाते हैं। उन्हें चिंता सता रही कि अब तक आमदनी नहीं हुई और बारिश का सीजन शुरू होते ही सालाना कारोबार बंद हो जाएगा।

इस बार सबसे अच्छी बिक्री

मवैया पर घड़े और सुराही की दुकान वाले विपिन कुमार प्रजापति कहते हैं, बाप-दादा के जमाने से हम ये काम कर रहे हैं। खुद मुझे ये काम संभाले करीब 20 साल हो गए। इस बार सबसे अच्छी बिक्री हो रही है।हम काकोरी, बिजनौर आदि जगहों से घड़े आदि मंगवाते हैं। नल लगे घड़े सबसे ज्यादा बिक रहे। एक दिन में 25 से 30 घड़े बिक जा रहे हैं।

प्याऊ लगाने के लिए घड़ों की खरीदारी

इंदिरानगर में सेक्‍टर 14 पावर हाउस के पास घड़ा व सुराही बेचने वाले शरीक पिछले 30 साल से यहां दुकान लगा रहे हैं। समय के साथ लोगों ने घड़े से नाता तोड़ा तो अचानक गर्मियों में दोस्‍ती भी कर ली। हालांकि घड़े व सुराही के साथ शरीक का नाता बरकरार है। शरीक बताते हैं कि लॉकडाउन में सबकुछ बंद था। इस बीच कुछ ऐसे ग्राहक उन्‍हें ढूंढते हुए पहुंचे, जो प्रवासी श्रमिकों के लिए प्‍याऊ लगाने के लिए घड़े की तलाश कर रहे थे। लॉकडाउन हटने के बाद गर्मी में पक्षियों के लिए पानी रखने के लिए छोटे प्‍यालों की मांग बढ़ी। शरीक ने बताया कि इन दिनों कारोबार धीमा है। इन दिनों ग्राहक टोटी लगी सुराही पसंद करते हैं, जिसकी कीमत 80 से 120 रुपये के बीच है।

इनके घर में हर कोई पीता घड़े का पानी

असल में गर्मी के दिनों की प्यास घड़े के पानी से ही बुझती है। घड़े के पानी जैसा मीठा और सौंधापन हमें फ्रिज और बर्फ के पानी में नहीं मिलता है। यह कहना है न्यू तिलकनगर निवासी दवा व्यवसायी विशाल विक्रम सिंह का। उन्होंने बताया कि गर्मी में उनके यहां घड़े का पानी ही पिया जाता है क्योंकि पापा को यही पसंद है। विशाल विक्रम के पिता विजय नारायण सिंह सेवानिवृत्त डिप्टी एसपी हैं। वह हमेशा घड़े का ही पानी पीते हैं। उनकी जहां-पोस्टिंग रही वहां पर वह पानी के लिए घड़ा ही रखते हैं। बड़े भइया मृत्युंजय सिंह, भाभी और पत्नी सभी की अब धीरे-धीरे आदत पड़ गई।

स्वास्थ्य की चिंता

कानपुर रोड पर हिंदनगर में मिट्टी का घड़ा बेचने वाले आनंद कुमार प्रजापति वैसे तो हर साल ही घड़ा बेचते हैं, लेकिन इस बार पिछले तीन साल के मुकाबले ज्यादा घड़ा बिका है। दाम में जरूरी बढ़ोतरी हुई है। उनका कहना है छोटा घड़ा 20 से 30 रुपये में मिलता था जो इस बार 40 से 50 रुपये में बिक रहा है। हमें महंगा मिल रहा है तो उसी हिसाब से हम भी बेच रहे हैं। घड़ा खरीदने आईं आशियाना निवासी सुमन ने बताया कि घर में फ्रिज है इसकी वजह से घड़ा नहीं खरीदती थीं। इस बार कोरोना संक्रमण के चलते घड़ा खरीदा है। डॉक्टर ने भी फ्रिज का ठंडा पानी पीने के बजाय घड़े का पानी पीने की सलाह दी है।

राहगीरों की बुझा रहे प्यास

एलडीए कॉलोनी सेक्टर- ई निवासी अजय कुमार सिंह हिंद नगर में एक बैंक के एटीएम की सुरक्षा करते हैं। पिछले पांच साल से वह बरगद के पेड़ के नीचे गर्मी के मौसम में न केवल घड़ा रखते हैं बल्कि स्वयं पानी भी भरकर रखते हैं। उनका कहना है कि अपनी सामथ्र्य के हिसाब से आप लोगों क मदद कर सकते हैं। जल सेवा से बेहतर कुछ भी नहीं।

जल सेवा संग परंपरा का निर्वहन

मानसनगर आसाराम बापू रोड पर अनिल कुमार पिछले एक दशक से पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं। उनका कहना है कि पिता जी ने घर के सामने घड़े में पानी भरकर रखने की सीख दी थी तबसे यह परंपरा बन गई है। पानी भरने का काम सभी घर वाले करते हैं। जल सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है।

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