उम्रदराज कंधों पर जवा लोकगीत, भावी पीढ़ी तक पहुंचा रहे ये कला

कार्यशालाओं और किताबों के जरिए सहेज रहे कला की थाती, युवाओं और महिलाओं समेत हर वर्ग को लोकगीतों से जोड़ रहे लगन।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 02 Jul 2018 02:55 PM (IST) Updated:Mon, 02 Jul 2018 02:55 PM (IST)
उम्रदराज कंधों पर जवा लोकगीत, भावी पीढ़ी तक पहुंचा रहे ये कला
उम्रदराज कंधों पर जवा लोकगीत, भावी पीढ़ी तक पहुंचा रहे ये कला

लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। बचपन से संगीत से जुड़ा नाता ताउम्र बना रहा। शास्त्रीय संगीत से शुरू सफर लोकगीतों से जुड़ा। गायिकी संग वाद्य यंत्रों की जुगलबंदी भी सीखी। जिम्मेदारिया बढ़ीं पर समर्पण कम नहीं हुआ। यह समर्पण 77 साल की उम्र में आज भी बरकरार है। उम्रदराज कंधों पर लोकगीत जवा हैं। वरिष्ठ संगीतकार केवल कुमार कार्यशालाओं, किताबों और सोशल मीडिया के जरिए कला की थाती सहेज रहे हैं। हर वर्ग को लोकगीतों से जोड़ने में लगे हैं।

केवल कुमार बताते हैं, पिता परमेश्वरी दयाल श्रीवास्तव रेलवे में हेड क्लर्क होने के साथ ही अच्छे शास्त्रीय गायक भी थे। बड़े भाई कृष्ण कुमार श्रीवास्तव और भजन गायक अनूप जलोटा के पिता पुरुषोत्तम दास जलोटा एक ही गुरु के शिष्य रहे हैं। बड़े भाई ने गुरु की भूमिका निभाई। संगीत विषय से हाई स्कूल के बाद इंटर तक की पढ़ाई केकेवी, चारबाग से की। 1959 में केकेवी में म्यूजिक टीचर बने। यही के शिक्षक संतराम त्रिपाठी ने गुरु राधा वल्लभ चतुर्वेदी (तब रेडियो में सीनियर म्यूजिक कंपोजर) से मुलाकात कराई। उनसे पहली मुलाकात ने ऐसा असर छोड़ा कि उन्हें अपना गुरु बना लिया। फिर 1980 में आकाशवाणी, गोरखपुर ज्वाइन किया। 1982 में पहला ऑफर भोजपुरी फिल्म का आया। 1983-84 में पहली हंिदूी फिल्म 'करिश्मा किस्मत का' मिली। भोजपुरी और हंिदूी फिल्मों के बीच में लोक संगीत और गीतों का साथ भी बना रहा।

धरोहर हैं लोकगीत'

केवल कुमार की कृति लोक परंपरा भाग-1 का परिचय व परिचर्चा कार्यक्त्रम रविवार को प्रेस क्लब में हुआ। आयोजन लोक संस्कृति शोध संस्थान एवं प्रतिष्ठा फिल्म्स एंड मीडिया की ओर से किया गया। मुख्य अतिथि संगीत नाटक एकेडमी की अध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा पाण्डेय रहीं। सभी ने किताब को लोक गीत रूपी धरोहर को सहेजने की दिशा में सराहनीय पहल बताया। इतिहासविद डॉ. योगेश प्रवीन, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विद्याबिंदु सिंह, डॉ. रामबहादुर मिसिर व शीला पाडेय ने कृति की सराहना की। लोक गायिका प्रो. कमला श्रीवास्तव, पद्मा गिडवानी और कुसुम वर्मा आदि भी मौजूद रहे। लोक संस्कृति शोध संस्थान की ओर से सचिव सुधा द्विवेदी, विशेष कार्याधिकारी होमेंद्र मिश्र आदि उपस्थित थे।

कुछ बड़े सम्मान :

- यूपी संगीत एकेडमी अवार्ड, 2007

- यश भारती अवार्ड, 2016

- ऑल इंडिया क्रिटिक्स एसोसिएशन, दिल्ली की ओर से सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार।

- मदन मोहन सम्मान, 1995

- पश्चिम बंगाल पत्रकार संघ की ओर से बेस्ट सिंगर का नेशनल अवार्ड, 1996। कुछ अहम कार्यशालाएं:

- गजल और कविताएं।

- होली गीत (अवधी, भोजपुरी, बुंदेली और बृज)।

- बेगम अख्तर के गीतों पर आधारित।

- प्रसिद्ध ¨हदी कवियों पर केंद्रित।

- बारिश के अवधी गीत। फिल्मों में संगीत:

- जून 1990 में 'करिश्मा किस्मत का' फिल्म में अनुराधा पौडवाल समेत अन्य दिग्गजों के साथ काम।

- भोजपुरी फिल्म 'नेहिया सनेहिया' में आशा भोसले, अलका यागनिक, उदित नारायण, कुमार सानू, कविता कृष्ण मूर्ति, ऋचा शर्मा व साधना सरगम के साथ काम।

आकाशवाणी के सीरियल :

- अवधी लोक संगीत सीरियल घर-घर मंगलाचार में जन्म और विवाह संस्कार पर 100 गानें।

- गोमती तुम बहती रहना में संगीत।

- अवधी लोकगीतों पर आधारित सीरियल लोक धरोहर।

- वर्ष 2006 में कोलकाता में लोक संगीत पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम में अवधी होली गीतों की प्रस्तुति।

जिम्मेदारियों के कारण रहे लखनऊ में:

- केवल कुमार बताते हैं, मुंबई में काम करने का कई बार ऑफर मिला। फिल्म निर्देशक राजकुमार संतोषी ने भी कहा था। पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण लखनऊ में ही रहे। उस वक्त बच्चे छोटे थे और कॅरियर की अपेक्षा परवरिश प्राथमिकता थी। गाव-गाव जाकर रिकॉर्डिग:

केवल बताते हैं, गुरु राधा वल्लभ चतुर्वेदी गाव-गाव जाकर रेडियो के लिए लोक गीत रिकार्ड करते थे। लोगों के बीच जाकर काम करना उन्हीं की सीख का हिस्सा है। शायद इसी कारण संगीत में वह जमीनी जुड़ाव नजर आता है।

भावी पीढ़ी तक पहुंचे कला:

'लोक परंपरा' किताब लिखी है। इसमें जन्म संस्कार के 52 अवधी लोक गीतों को स्वरलिपि सहित प्रस्तुत किया गया है। यू ट्यूब के माध्यम से भी कला को भावी पीढ़ी तक पहुंचाने के प्रयास में लगे हैं।

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