सावधानी से टाला जा सकता हेपेटाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा

हेपेटाइटिस एक जानलेवा बीमारी है। इसका संक्रमण लिवर को नुकसान पहुंचता है। कम खतरनाक हेपेटाइटिस ई भी गर्भावस्था में जानलेवा हो सकता है।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Fri, 27 Jul 2018 06:29 PM (IST) Updated:Sun, 29 Jul 2018 09:06 PM (IST)
सावधानी से टाला जा सकता हेपेटाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा
सावधानी से टाला जा सकता हेपेटाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा

लखनऊ (राफिया नाज)। हेपेटाइटिस एक जानलेवा बीमारी है, इसका प्रमुख कारण वायरस का संक्रमण होता है जिससे लिवर को नुकसान पहुंचता है। कम खतरनाक माने जाने वाला हेपेटाइटिस ई भी गर्भावस्था में जानलेवा हो जाती है। यह न केवल गर्भस्थ के लिए बल्कि मां के लिए भी घातक साबित हो सकता है। वहीं गर्भावस्था में प्रेग्नेंसी इंड्यूस जॉन्डिस यानि कोलीस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी हो जाता है। अगर समय ठीक तरह से सावधानी नहीं बरती गई तो इससे बच्चे की जान जा सकती है। चिकित्सीय सलाह के अनुसार चलने पर जच्चा-बच्चा दोनों की जान बचाई जा सकती है। जानते हैं विशेषज्ञों की राय। 

हेपेटाइटिस वायरस संक्रमण से होता है, इसके प्रमुख चार वायरस होते हैं, हेपेटाइटिस ए, बी, सी और ई। यह दूषित खाने की वजह से होता है इसके अलावा एल्कोहल और हेपेटाइटिस से ग्रसित व्यक्ति के संपर्क में आने से होता है। हेपेटाइटिस अगर किसी गर्भवती को होता है तो वो और ज्यादा घातक साबित हो सकता है। 

साल भर में 1000 से ज्यादा इंट्रा हेपेटिक ऑफ कोलीस्टेसिस से संक्रमित गर्भवती

राजधानी के टर्शरी केयर सेंटर में हर माह लगभग 350 से 400 गर्भवती आती हैं जो कि हेपेटाइटिस विद सीवियर जॉन्डिस से संक्रमित होती हैं। वहीं साल भर में 1000 से ऊपर गर्भवती कोलीस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी से पीडि़त होती हैं। वहीं अगर इस दौरान गर्भवती किसी भी तरह की लापरवाही करती है तो यह जच्चा-बच्चा दोनों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। 

साधारण से दिखने वाली हेपेटाइटिस ई प्रेग्नेंसी में हो जाती है जानलेवा

क्वीनमेरी अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेष डॉ.रेखा सचान ने बताया कि हेपेटाइटिस संक्रमण और गंदे पानी की वजह से होती है। अक्सर हेपेटाइटिस ई तीन से चार माह में ठीक हो जाती है, लेकिन अगर गर्भवती को हेपेटाइटिस ई हो जाता है तो यह गंभीर रूप ले लेता है। इसमें ब्ल्यूरुबिन तेजी से बढ़ता है, अगर अर्ली स्टेज में डिलीवरी नहीं करवाई गई तो बच्चे की जान की मूमेंट रूक सकती है। जिससे इंट्रा यूटेराइन डेथ यानि गर्भ में शिशु की मौत हो सकती है। वहीं गर्भवती भी कोमा में जा सकती है। 

हेपेटिक कोमा में जा सकती गर्भवती

गर्भस्थ की मौत होने पर गर्भवती हेपेटिक कोमा में चली जाती है। इसमें अधिकतर महिलाओं की मौत हो जाती है। इसलिए मां और बच्चे को बचाने के लिए जल्द से जल्द डिलीवरी करवाई जाती है। इसमें 35 सप्ताह के बाद डिलीवरी करवाई जाती है। 

पहचान 

आंखों की सफेदी का पीला होना , नाखून और हथेली का पीला होना, पीले रंग का यूरीन पास होना, उल्टी होना जी मिचलाना, आदि लक्षण है। 

जरूरी है जांच

हेपेटाइटिस बी और सी की जांच के अलावा हेपेटाइटिस ए और ई की जांच भी करवा लेनी चाहिए। वहीं हेपेटाइटिस बी का वैक्सीनेशन भी करवाते रहना चाहिए। 

कोलिस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी

कोलिस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी में एस्ट्रोजन हार्मोन बढऩे की वजह से बाइल डक्ट का डायलेशन हो जाता है। जिससे बाइल शरीर के अंदर ही जमा होने लगता है और ब्ल्यूरुबिन का लेवल बढ़ जाता है। जिससे पीलिया हो जाता है, यह माइल्ड होता है लेकिन बच्चे के लिए जानलेवा होता है। 

कोलिस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी की पहचान 

डॉ.सचान ने बताया कि कोलिस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी की सबसे बड़ी पहचान खुजली होना होता है। गर्भवती के पूरे शरीर में खुजली हेाती है। इसमें गर्भवती की एसजीपीटी, एसजीओटी, एल्केलाइन फास्टफेटेज दोनों की जांच करवाई जाती है। 

कठिन होने के बाद भी हुई सफल डिलीवरी 

क्वीनमेरी अस्पताल में डॉ.रेखा सचान ने हेपेटाइटिस और कोलिस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी में सफल डिलीवरी करवाई।

केस.1- बाराबंकी निवासी गर्भवती को हेपेटाइटिस ई था और ब्ल्यूरुबिन 11 मिली/डीएल था, और एसजीपीटी भी हाई रेंज था। महिला का 35 सप्ताह पर सिजेरियन किया गया, उसे सामान्य से ज्यादा ब्लीडिंग भी हुई। एक यूनिट ब्लड और चार यूनिट एफएफपी चढ़ाया गया। जच्चा-बच्चा दोनों की जान बचाई गई।

केस.2- दुबग्गा निवासी गर्भवती को कोलिस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी हुआ था। उसका एल्केलाइन फास्फेटेज भी बढ़ रहा था। महिला को दवा पर मैनेज किया गया वहीं उसका एसजीपीटी भी 350 तक हो गया था। जिसके बाद 35 सप्ताह पर उसकी डिलीवरी प्लान की गई। बच्चे के फेफड़े को मजबूत बनाने के लिए उसे इंजेक्शन लगाए गए।

हेपेटाइटिस बी ग्रस्त होने पर क्या करें

महिला को हेपेटाइटिस बी है और वो गर्भवती हो गई है तो उसे बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि हेपेटाइटिस बी मां से बच्चे को ट्रांसमिट होता है। गर्भवती को वायरल लोड पीसीआर की जांच करवा लेनी चाहिए अगर वायरल लोड ज्यादा है तो बच्चे को संक्रमण ज्यादा खतरा रहता है। वहीं डिलीवरी के बाद बच्चे का टेस्ट करवा लेना चाहिए और इसी बेस पर उसका इलाज किया जाना चाहिए। अगर मां हेपेटाइटिस पॉजिटिव है तो पति को भी जांच करवा लेनी चाहिए।  मां को हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव है तो डिलीवरी के 72 घंटे के अंदर इम्यूनाइजेशन हेपेटाइटिस बी वैक्सीनेशन और इम्यूनोग्लोब्यूलिन लगवा लेना चाहिए।  टर्शरी केयर सेंटर में डिलीवरी करवाएं जहां वेंटीलेटर और आइसीयू की व्यवस्था हो।

हेपेटाइटिस वैक्सीनेशन के बाद टाइटर टेस्ट आवश्यक

केजीएमयू के मेडिसिन विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ.डी हिमांशू ने बताया कि कई बार लोग हेपेटाइटिस बी का वैक्सीनेशन करने के बाद भी शरीर में एंटीबॉडी नहीं बनती है और वो फिर से हेपेटाइटिस से संक्रमित हो सकते हैं। इसलिए वैक्सीनेशन के बाद टाइटर टेस्ट करवाना जरूरी होता है। इसमें पता चल जाता है कि मरीज के शरीर में एंटीबॉडी बनी है या नहीं। 100 में से 40 फीसद लोग ऐसे होते हैं जिनके शरीर में वैक्सीनेशन के बाद भी एंटीबॉडी नहीं बनती है। अगर एंटीबॉडी नहीं बनती है तो उन्हें फिर से वैक्सीनेशन करवाना होता है।

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