UP: प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए सीधे हाईकोर्ट नहीं आ सकता पीड़ि‍त, जान‍िए फैसले की मुख्‍य बातेें

कोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा संज्ञेय अपराध की शिकायत न दर्ज करने पर भी पीडि़त व्यक्ति के पास न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष जाने का विकल्प है। यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस चन्द्रधारी सिंह की बेंच ने वसीम हैदर की याचिका पर पारित किया।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Wed, 06 Jan 2021 10:06 AM (IST) Updated:Wed, 06 Jan 2021 10:06 AM (IST)
UP: प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए सीधे हाईकोर्ट नहीं आ सकता पीड़ि‍त, जान‍िए फैसले की मुख्‍य बातेें
न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास अर्जी दाखिल करने का विकल्प होने के कारण हाईकोर्ट ने दिया फैसला।

लखनऊ, [जेएनएन]। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि एफआइआर दर्ज कराने की मांग को लेकर पीडि़त या कोई सूचनाकर्ता सीधा हाईकोर्ट में याचिका नहीं दाखिल कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा संज्ञेय अपराध की शिकायत न दर्ज करने पर भी पीडि़त व्यक्ति के पास न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष जाने का विकल्प है। यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस चन्द्रधारी सिंह की बेंच ने वसीम हैदर की याचिका पर पारित किया। याचिका में फर्जी बैनामा के एक मामले में एफआइआर दर्ज करने का निर्देश पुलिस अधिकारियों को देने की मांग की गई थी।

कोर्ट ने पाया कि इन दिनों सीधे हाईकोर्ट में एफआइआर दर्ज कराने की मांग वाले याचिकाओं की संख्या बहुत बढ़ गई है। कोर्ट ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 154(3), 156(3), 190 व 200 में इस बात का प्रावधान करती है कि पुलिस अधिकारी द्वारा संज्ञेय अपराध में एफआइआर न दर्ज करने से इंकार पर किन उपायों को अपनाया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि उक्त प्रविधानों में दिये गए उपायों को न अपना कर सीधा हाई कोर्ट में रिट याचिकाएं दाखिल कर दी जा रही हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि एफआइआर दर्ज करने से इंकार होने पर शिकायतकर्ता को स्वत: रिट याचिका इस बात के लिए दाखिल करने का अधिकार नहीं प्राप्त हो जाता है कि कोर्ट परमादेश जारी करते हुए पुलिस अधिकारी को उसके वैधानिक दायित्व का निर्वहन करने के लिए बाध्य करे। कोर्ट ने कहा कि एक संज्ञेय अपराध में एफआइआर न दर्ज होने की स्थिति में शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रार्थनापत्र दाखिल कर सकता है। 

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