गांधी जयंती पर 36 घंटे से अधिक चले यूपी विधानमंडल के विशेष सत्र में विपक्ष को उलटा पड़ा बहिष्कार दांव

संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्धारित सतत विकास के लक्ष्यों को लेकर महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर 36 घंटे से अधिक चले विधानमंडल के विशेष सत्र से अलग रहने का दांव विपक्ष को उलटा पड़ा।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Fri, 04 Oct 2019 08:37 PM (IST) Updated:Fri, 04 Oct 2019 08:37 PM (IST)
गांधी जयंती पर 36 घंटे से अधिक चले यूपी विधानमंडल के विशेष सत्र में विपक्ष को उलटा पड़ा बहिष्कार दांव
गांधी जयंती पर 36 घंटे से अधिक चले यूपी विधानमंडल के विशेष सत्र में विपक्ष को उलटा पड़ा बहिष्कार दांव

लखनऊ, जेएनएन। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्धारित सतत विकास के लक्ष्यों को लेकर महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर 36 घंटे से अधिक चले विधानमंडल के विशेष सत्र से अलग रहने का दांव विपक्ष को उलटा पड़ा। योगी सरकार हर पहलू से विपक्ष पर 21 साबित हुई। विपक्ष के लिए अपने ही लोगों को संभाले रखना मुश्किल हुआ।

दलीय नेताओं की शुरुआती बैठक में विशेष सत्र आहूत करने के लिए सहमति जताना विपक्ष की पहली चूक रही।

संयुक्त राष्ट्र संघ और महात्मा गांधी की 150वीं जयंती से जुड़े होने के कारण इस सत्र की महत्ता और बढ़ गई थी। ऐसे में सत्र आहूत करने की सहमति जताकर मुकर जाने से सरकार को विपक्ष पर हमलावर होने का मौका मिला। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एसके चतुर्वेदी मानते हैं कि यह एक रणनीतिक चूक थी। सत्र से अलग रहने का विपक्ष कोई ठोस तर्क नहीं दे सका। बेहतर होता कि वे सरकार को वाक ओवर नहीं देकर सदन में जनहित के मुद्दों पर लड़ते।

समाजवादी पार्टी ने सत्र से अलग रहने के लिए गांधी जयंती पर पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में शामिल होने की आड़ ली थी, लेकिन सत्र के दूसरे ही दिन विधान भवन परिसर में प्रदर्शन भी किया। एक पूर्व मंत्री कहते हैं कि सदन में विरोध करते तो प्रचार का अच्छा मौका मिलता। उधर, बसपा ने उपचुनाव तैयारी और बाढ़ संकट के बहाने किनारा किया था। सपा-बसपा ने खुद को सत्र से अलग जरूर रखा, परंतु बहिष्कार जैसा शब्द प्रयोग करने से बचे, जबकि गांधीवादी बताने वाली कांग्रेस ने 150 वीं जयंती पर आयोजित इस सत्र के सीधे बहिष्कार की घोषणा की और विरोधियों को आलोचना करने का हथियार थमा दिया।

बिखराव से हुई किरकिरी

विपक्ष के बिखराव और आंतरिक असंतोष ने भी किरकिरी कराई। सत्र में बसपा के दो, सपा के एक व कांग्रेस के दो विधायकों के शामिल होने ने सरकार का मनोबल और बढ़ाया। दूसरी ओर शिवपाल यादव ने भी कार्यवाही में भाग ले कर इस मुद्दे पर सरकार को मनोवैज्ञानिक मजबूती दी। सबसे विषम हालात कांग्रेस के लिए बने। रायबरेली से ताल्लुक रखने वाले दो विधायकों (राकेश सिंह व अदिति सिंह) ने बगावती तेवर दिखा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सीधी चुनौती दी। इससे कांग्रेस के अभेद्य किले में दरारें दिखने लगीं। वहीं बसपा के लिए अनिल सिंह के अलावा असलम राइनी द्वारा तेवर दिखाना खतरे की घंटी है।

27 मंत्रियों को ही मिला बोलने का मौका

मुख्यमंत्री सहित कुल 56 मंत्रियों में से 27 को ही विधानसभा के विशेष सत्र में बोलने का अवसर मिल सका। सत्र के सफल आयोजन पर आभार जताते हुए विधायकों को लिखे पत्र में विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने सदन में सभी को बोलने का अवसर न मिलने पर खेद भी जताया है। दीक्षित ने बताया कि 36 घंटा 45 मिनट चले विशेष सत्र में 150 विधायकों को ही अपनी बात कहने का मौका मिला, जिसमें विपक्ष दलों के सात सदस्य भी शामिल हैं। इसमें कांग्रेस के राकेश सिंह, अदिति सिंह, सपा के नितिन अग्रवाल व शिवपाल सिंह यादव, बसपा के मोहम्मद असलम राइनी के अलावा अनिल सिंह भी शामिल रहे। व्यक्तिगत पत्र में उन्होंने क्षमा याचना करते हुए लिखा कि समयाभाव में सभी सदस्यों को बोलने का मौका नहीं दिया जा सका। उन्होंने बताया कि सदन की कार्यवाही को अब पुस्तक का रूप देने की तैयारियां शुरू कर दी गई है। इसमें सदन में बोलने से वंचित रह गए विधायकों के लिखित वक्तव्य भी शामिल किए जाएंगे।

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