जानें, कितना गहरा है प्रो. कटियार और छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय का 'रिश्ता'

प्रो. सर्वज्ञ सिंह कटियार ने अतुलनीय योगदान से विश्वविद्यालय का कायाकल्प कर देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में पहचान दिलाई। चार बार सीएसजेएमयू के कुलपति रहे।

By AbhishekEdited By: Publish:Wed, 10 Oct 2018 06:43 PM (IST) Updated:Wed, 10 Oct 2018 06:48 PM (IST)
जानें, कितना गहरा है प्रो. कटियार और छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय का 'रिश्ता'
जानें, कितना गहरा है प्रो. कटियार और छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय का 'रिश्ता'

कानपुर (जागरण संवाददाता)। एक समय ऐसा भी था, जब छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में उगी झाडिय़ां देख लोग इसे जंगल की संज्ञा देते थे। मगर, अपने अतुलनीय योगदान से विश्वविद्यालय का कायाकल्प कर प्रो. सर्वज्ञ सिंह कटियार ने इसे देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में पहचान दिलाई। भले ही अब वह दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अविस्मरणीय कार्यों के लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे।
विवि में बढ़े कदम तो फिर न डिगे
17 सितंबर 1994 को जब प्रो. एसएस कटियार पहली बार सीएसजेएमयू के कुलपति बने तो यहां अधिकतर कक्षों की स्थिति खराब थी। यह देखकर भी उनके कदम नहीं डिगे, सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते गए। यहां मल्टी परपज हॉल की स्थापना हो या कुलपति कार्यालय का निर्माण, प्रयोगशालाएं बनवाने की बात रही हो या फिर गल्र्स हॉस्टल की। उन्होंने तत्काल निर्णय लेकर साबित कर दिया कि वह शांत बैठने वालों में नहीं हैं।
एंजाइम के क्षेत्र में शोध कार्यों के लिए ख्यातिप्राप्त पूर्व कुलपति ने सीएसजेएमयू में 30 से अधिक पाठ्यक्रमों का संचालन शुरू कराया। छात्र-छात्राओं व शिक्षकों से संवाद कर समस्याएं सुनना और फिर समाधान करा देना, यह उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी। शिक्षाविदों का कहना है कि उनके जैसा कार्यकाल शायद ही किसी कुलपति का दोबारा हो।
चार बार रहे सीएसजेएमयू के कुलपति, आआइटी से भी रहा जुड़ाव
प्रो. सर्वज्ञ सिंह कटियार सीएसजेएमयू में पहली बार 17 सितंबर 1994 से 16 सितंबर 1997 तक कुलपति रहे। इसके बाद दूसरी बार 14 अप्रैल 2000 से 25 जुलाई 2003 तक, तीसरी बार 25 जुलाई 2003 से 25 जुलाई 2006 तक और चौथी बार 26 जुलाई 2006 से 30 अगस्त 2007 तक कुलपति के पद पर रहे। उनका आइआइटी कानपुर से भी लंबा जुड़ाव रहा। आइआइटी के बायोकेमेस्ट्री-बायोटेक्नोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष रहते हुए उन्होंने यहां पहली बायोकेमेस्ट्री-बायोटेक्नोलॉजी लैबोरेट्री की स्थापना कराई।
समय से पहले पहुंचते, देर तक करते थे काम
सीएसजेएम विवि के कुलपति रहते हुए प्रो. एसएस कटियार समय से 10-15 मिनट पहले ही कार्यालय आ जाते थे। वह कैंप कार्यालय में देर रात तक काम करते थे। फैकल्टी और कर्मियों को भी समय पर आने के लिए प्रेरित करते थे। जो देरी से आते थे, उन्हें टोकते भी थे। अगर वह विवि से कहीं बाहर जाते तो इसकी जानकारी सिर्फ कुलसचिव को रहती थी।
उच्च शिक्षा में सुधार के लिए निभाई अग्रणी भूमिका
प्रो. एसएस कटियार को कानपुर में उच्च शिक्षा के सुधार का जनक कहा जाता है। उन्होंने ऐसे समय में सीएसजेएम विश्वविद्यालय की कमान अपने हाथों में ली, जिस वक्त विवि की डिग्री को पूरे देश में शंका भरी निगाहों से देखा जाता था। अपने सख्त फैसलों से उन्होंने न केवल विवि की बदनाम छवि को बदला बल्कि नए कोर्स शुरू कर उच्च शिक्षा के नए मानदंड भी गढ़े। 
वर्ष 1994 से पहले कानपुर विश्व विद्यालय का नाम बेहद बदनाम विश्व विद्यालयों में शुमार था। तब विवि केवल परीक्षा संचालित करने वाला केंद्र था। विवि में अध्ययन की समुचित व्यवस्था नहीं थी। सितंबर 1994 में पहली बार कुलपति की कुर्सी संभालने के बाद प्रो. कटियार ने सबसे पहले कॉलेजों में अनुशासन और परीक्षा प्रणाली में सुधार का बीड़ा उठाया। विशेषकर उस वक्त डीएवी कॉलेज में छात्र नेताओं की तूती बोलती थी। उन्होंने सख्ती के साथ विवि के कॉलेजों में अनुशासन को लागू किया।
शैक्षिक सत्र को किया नियमित
जिस समय प्रो. एसएस कटियार कुलपति बने तब कानपुर विवि का सत्र छह-छह महीने तक पीछे चलता था। सत्र नियमित कराने का श्रेय उन्हें ही जाता था। उसके बाद विवि से पासआउट छात्रों के लिए रोजगार व उच्चतर शिक्षा के दरवाजे खुल गए। इसके पहले सत्र देरी से समाप्त होने के चलते छात्रों का साल बरबाद हो जाया करता था।सेल्फ फाइनेंस पाठ्यक्रमों की कराई थी शुरुआत
प्रो. कटियार ने सेल्फ फाइनेंस पाठ्यक्रमों की शुरुआत कराई थी। इसका फायदा यहां के छात्र-छात्राओं को मिला। उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित महाविद्यालय एसोसिएशन के अध्यक्ष विनय त्रिवेदी ने बताया कि उनके कार्यकाल में विवि में हुए सुधार की जितनी सराहना की जाए, कम है।
नकल माफिया पर लगाम
नकल के मामले में प्रदेश के अंदर विवि की छवि बेहद खराब थी। प्रो. कटियार ने नकल माफिया की कमर तोड़ दी। वहीं छात्रों के लिए दोबारा मूल्यांकन प्रणाली लेकर आए ताकि छात्रों का भविष्य गलत मूल्यांकन की वजह से खराब न हो।
सस्ता मिले इलाज, यह भी थी चाहत
प्रो. एसएस कटियार खुद शिक्षक होते हुए भी सस्ती दरों में इलाज के हिमायती रहे। वर्ष 2004 में सीएसजेएम विश्वविद्यालय परिसर में संचालित इंस्टीट्यूट ऑफ बायोसाइंस एंड बायोटेक्नोलॉजी विभाग में ही पैरामेडिकल विभाग था। यहां डेंटल कॉलेज की स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसे में जब डेंटल कॉलेज बंद हुआ तो तत्कालीन कुलपति प्रो. कटियार ने दो फ्लोर में पैरामेडिकल से संबंधित पाठ्यक्रमों का संचालन शुरू करा दिया। यहां सस्ती दरों पर होने वाली ïिवभिन्न जांचें थीं। वर्तमान में पांच पाठ्यक्रम संचालित हैं, जिसमें 200 से अधिक छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं।
पर्यावरण को भी दिया संरक्षण
प्रो. कटियार पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी बेहद सजग थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में पौधरोपण को बढ़ावा दिया। वर्ष 2004 में विवि में एक साथ 15 हजार पौधे लगवाए थे।
...और जब सीएम का प्रस्ताव ठुकरा दिया
दृढ़ इच्छाशक्ति और बुलंद हौसला प्रो. एसएस कटियार की रगों में रचा-बसा था। वर्ष 2005-06 की बात है। विवि में पूर्व छात्र सम्मान समारोह में तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने संबोधन के दौरान विवि के विकास के लिए पांच करोड़ रुपये देने की घोषणा कर दी। अपने काम को प्राथमिकता देने वाले तत्कालीन कुलपति प्रो. एसएस कटियार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
उन्होंने कहा कि आपका आशीर्वाद व स्नेह चाहिए। विश्वविद्यालय का विकास वह स्वयं करके दिखाएंगे। इसी तरह वर्ष 2006 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव माल रोड स्थित ब्रह्मïानंद कॉलेज में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए, तब वहां प्रो. कटियार मौजूद थे। तत्कालीन सीएम ने कहा कि महाविद्यालयों में एलएलएम की पढ़ाई जल्द शुरू होगी। इस पर प्रो. कटियार ने कहा कि एलएलएम की पढ़ाई महाविद्यालयों में नहीं विवि में शुरू होनी चाहिए।
पुरस्कार व सम्मान से भरी रही झोली
पद्मभूषण व पद्मश्री से सम्मानित प्रो. एसएस कटियार की झोली पुरस्कार व सम्मान से भरी रही। उन्हें द थर्ड वल्र्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज (टीडब्ल्युएएस) ने सर्वोच्च सम्मान 'फैलोशिपÓ से अलंकृत किया था। प्रो. कटियार को यह सम्मान विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान व तीसरी दुनिया के देशों में विज्ञान के प्रसार के लिए प्रदान किया गया था। उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विज्ञान व शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए स्वर्ण पदक दिया था। उन्हें ग्लोबल ऑनर बाई थर्ड वल्र्ड एकेडमी आफ साइंसेज, इटली-04, न्यू मिलेनियम प्लेक ऑफ ऑनर-2003, जनरल प्रेसीडेन्ट्स अवार्ड फार साइंस एंड टेक्नोलॉजी, उत्तर प्रदेश विज्ञान गौरव व भारत एक्सीलेंस अवार्ड जैसे महत्वपूर्ण सम्मान भी प्राप्त हुए।
वर्ष 2003 में पद्मश्री तो 2009 में पद्मभूषण से सम्मानित
प्रो. एसएस कटियार को शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्यों के चलते वर्ष 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने पद्मश्री से सम्मानित किया। वर्ष 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें पद्मभूषण सम्मान से नवाजा।
ये अवार्ड भी मिले
-आचार्य पीसी रे मेमोरियल मेडल।
-प्रोफेसर बीएन घोष मेमोरियल अवार्ड।
-सोका यूनिवर्सिटी अवार्ड।
-विज्ञान गौरव अवार्ड।
-एक्सीलेंस इन साइंस गोल्ड मेडल।
-आशुतोष मुखर्जी मेमोरियल अवार्ड।
-आरसी मेहरोत्रा मेमोरियल लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड।
अखिलेश सरकार में उच्च शिक्षा परिषद के बने चेयरमैन
दयानंद शिक्षण संस्थान के सचिव नागेंद्र स्वरूप ने बताया कि प्रो. एसएस कटियार अखिलेश सरकार में उच्च शिक्षा परिषद के चेयरमैन बने। उनके लिए विवि में बाकायदा कार्यालय तक बनाया गया था।
ये जिम्मेदारियां भी संभालीं
प्रो. एसएस कटियार ने कई अहम जिम्मेदारियां भी संभालीं। वह डॉ. राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के संस्थापक निदेशक रहे, वहीं एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज व इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। इसके साथ ही इंडियन नेशनल साइंस अकादमी के सदस्य रहे। इसके अलावा वह चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति भी रहे। वह जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी के विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे।
रसायन विज्ञान था पसंदीदा विषय
100 से अधिक जर्नल्स में शोध पत्र प्रकाशित करने वाले प्रो. एसएस कटियार ने कई शोध छात्र-छात्राओं का मार्गदर्शन किया। रसायन विज्ञान उनका पसंदीदा विषय रहा। द वल्र्ड एकेडमी ऑफ साइंसेस के लिए बतौर फेलो उनका चयन भी हुआ था।
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