आकाश आनंद ही संभालेंगे मायावती की सियासी विरासत, भतीजे पर कार्रवाई के पीछे मानी जा रही ये बसपा की रणनीति
बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को भले ही अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटाने के साथ ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय वापस लेने की बात कही है लेकिन आकाश ही उनकी सियासी विरासत संभालेंगे। कहा जा रहा है कि चुनाव के दरमियान अचानक आकाश पर कार्रवाई के पीछे बसपा प्रमुख की खास रणनीति है।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को भले ही अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटाने के साथ ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय वापस लेने की बात कही है, लेकिन आकाश ही उनकी सियासी विरासत संभालेंगे।
कहा जा रहा है कि चुनाव के दरमियान अचानक आकाश पर कार्रवाई के पीछे बसपा प्रमुख की खास रणनीति है। आकाश पर कार्रवाई कर मायावती ने जहां यह संदेश दिया है कि पार्टी के हित में वह ‘परिवार वालों’ को भी बख्शने वाली नहीं हैं।
वहीं अब चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन रहने पर भी आकाश की छवि पर आंच नहीं आएगी। यही कहा जाएगा कि आकाश की रैलियां न रोकी जाती तो पार्टी और बेहतर करती। अंततः आकाश को वापस लाने की मांग के बाद मायावती फिर से आकाश को अहम दायित्व सौंप देंगी।
एकदम से दिखाई देने लगी सक्रियता
दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव के बाद आकाश को पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर (राष्ट्रीय समन्वयक) के पद का दायित्व सौंपने वाली मायावती ने इस लोकसभा चुनाव के पहले 10 दिसंबर को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था।
इसके साथ ही आकाश की एकदम से सक्रियता दिखाई देने लगी और यही संदेश देने की कोशिश हुई कि अब युवा आकाश बसपा के अच्छे दिन लौटाएंगे, लेकिन अकेले ही लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने वाली बसपा राज्य की ज्यादातर सीटों पर मुख्य लड़ाई से ही बाहर दिखाई दे रही है।
स्थिति यह है कि मायावती ने भले ही राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से एक-चौथाई यानी 20 पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन मुस्लिम समाज यही मान रहा है कि भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए बसपा प्रमुख विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए में नहीं शामिल हुई हैं।
ऐसे में बिरादरी का प्रत्याशी होने के बावजूद मुस्लिम अबकी भाजपा को हराने के लिए बसपा के बजाय विपक्षी गठबंधन में शामिल सपा-कांग्रेस के साथ ही खड़ा दिखाई दे रहा है।
भाजपा लगा चुकी है गहरी सेंध
मुफ्त अनाज से लेकर आवास तक की मोदी-योगी सरकार की तमाम योजनाओं के जरिए भाजपा, वंचित समाज के वोट बैंक में पहले ही गहरी सेंध लगा चुकी है। यही कारण रहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ एक सीट पर सफलता मिली।
ऐसे में चर्चा है कि लोकसभा चुनाव में भी बसपा की एक दशक पहले जैसी स्थिति हो सकती है। विदित हो कि वर्ष 2014 के चुनाव में अकेले लड़ी बसपा शून्य पर सिमट गई थी। पिछले चुनाव में बसपा को 10 सीटें तब मिली थी, जब वह सपा से गठबंधन कर 38 सीटों पर लड़ी थी।
गौर करने की बात है कि मायावती ने आकाश पर कार्रवाई का आधार उसकी ‘अपरिपक्वता’ बताया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि कुछ वक्त गुजरने के बाद आकाश को परिपक्व मानते हुए फिर पार्टी की अहम जिम्मेदारियां दे दी जाएंगी।
परिवारवाद के आरोपों पर की थी कार्रवाई
मायावती ने आकाश की तरह पिछले चुनाव के दौरान परिवारवाद के आरोपों पर अपने भाई और आकाश के पिता आनंद कुमार को पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से हटाया था, लेकिन चुनाव बाद आनंद को फिर उपाध्यक्ष पद की ही जिम्मेदारी सौंपी थी।
उल्लेखनीय है कि बसपा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद नंबर दो की हैसियत वाला होता है इसलिए माना जा रहा है कि बिना किसी पद के भी आकाश के कद पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है।
उल्लेखनीय है कि बसपा के संस्थापक कांशीराम के हाथ में पार्टी की कमान रहने के दौरान मायावती राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ही थी। बाद में कांशीराम की राजनीतिक विरासत मायावती ने ही संभाली।