बेहतरीन तालमेल का नतीजा थी भारत की पाकिस्तान पर जीत

रिटायर्ड मेजर जनरल डॉ. जीडी बख्शी ने सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के अनुभव साझा किए, बोले, राजनैतिक, सैन्य और सूचनाओं के स्तर पर बेहतर था समन्वय, बताया कैसे मिली थी पाकिस्तान पर फतह और कैसे बना बांग्लादेश, युद्ध से पहले तत्कालीन प्रधानमंीत्र ने पूरी दुनिया से जुटाया था समर्थन

By JagranEdited By: Publish:Sun, 23 Sep 2018 01:51 AM (IST) Updated:Sun, 23 Sep 2018 01:51 AM (IST)
बेहतरीन तालमेल का नतीजा थी भारत की पाकिस्तान पर जीत
बेहतरीन तालमेल का नतीजा थी भारत की पाकिस्तान पर जीत

जागरण संवाददाता, कानपुर : भारत-पाकिस्तान के बीच सन् 1971 के हुए युद्ध में राजनैतिक, सैन्य और सूचनाओं के स्तर पर बेहतर रणनीति और तालमेल से भारत को जीत मिली थी। एंटरप्रेन्योर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा होटल लिटिल शेफ में आयोजित एक कार्यक्रम में रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी ने सन् 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के अनुभव साझा किए। उनका प्रेजेंटेशन देख लोगों ने यूं महसूस किया, मानों वह युद्ध मैदान में खड़े हों।

उन्होंने बताया कि युद्ध से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विश्व समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए कई देशों की यात्रा की। इसी का परिणाम रहा कि अमेरिका ने जब अपना जंगी बेड़ा भेजा तो रूस ने अपनी परमाणु पनडुब्बी भेजकर सहयोग दिया। यह राजनैतिक रणनीति थी। दूसरी ओर तत्कालीन सैन्य अधिकारियों ने ढाका पर ध्यान केंद्रित करते हुए मुक्तिवाहिनी के साथ रणनीति बनाई और तीसरे मोर्चे पर सूचनाओं के संकलन पर ध्यान दिया गया। उन्होंने वीडियो प्रजेंटेशन के माध्यम से उपस्थित लोगों को बताया कि फौजों ने किन परिस्थितियों में पाकिस्तानी सेना को को धूल चटाई और इसके बाद बांग्लादेश कैसे बना, इसकी कहानी बताई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करण रस्तोगी ने की। इस अवसर पर संगठन के अध्यक्ष अभिषेक सर्राफ, अमित घई, नीरज अग्रवाल, शशांक अग्रवाल, हर्ष अग्रवाल, अनुराग लोहिया आदि मौजूद थे।

युद्ध और व्यापार में जरूरी है नेतृत्व और निर्णय

उन्होंने कहा कि व्यापार के लक्ष्यों को प्राप्त करना हो या युद्ध के, दोनों में कामयाबी आपके नेतृत्व और निर्णय लेने की क्षमता पर निर्भर करती है। उन्होंने यह भी बताया कि युद्ध के माहौल में तनाव को कैसे दूर किया जाता है।

तोपों को चारे की जरूरत है..

उन्होंने बताया कि जब युद्ध शुरू हुआ, उस समय वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में ट्रेनिंग ले रहे थे। दिसंबर 1971 में ट्रेनिंग समाप्त होनी थी, लेकिन उनकी यूनिट को एक महीना पहले ही युद्ध के मोर्चे पर जाने के लिए कहा गया। उनसे कहा गया 'तोपों को चारे की जरूरत है'।

chat bot
आपका साथी