Kheri Seat: भाजपा बचा पाएगी गढ़ या सपा-बसपा का होगा कब्जा? पढ़ें खीरी लोकसभा क्षेत्र की ग्राउंड रिपोर्ट
Kheri Lok Sabha Seat लखीमपुर जिले की सभी आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा के ही विधायक हैं। इसके अलावा चार नगर पालिकाओं व आठ नगर पंचायत में भी भाजपा ज्यादातर जगह काबिज है और लगभग सभी ब्लाकों पर भी। 2019 के आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत 64 प्रतिशत से ज्यादा था जो 2014 के चुनाव से ज्यादा आगे नहीं निकल सका।
धर्मेश शुक्ल, लखीमपुर। खैर के घने जंगलों और प्राकृतिक वन संपदा से आच्छादित खीरी लोकसभा क्षेत्र में चुनावी तपिश बढ़ती जा रही है। दुधवा नेशनल पार्क से पर्यटकों को रोमांचित करने वाले इस लोकसभा क्षेत्र का चुनाव भी इस बार रोमांचक होने की संभावना है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र ‘टेनी” के सामने भाजपा का गढ़ बचाने तो सपा और बसपा के लिए इस पर कब्जा करने की चुनौती है। तीनों को अपने समीकरणों पर भरोसा है। राजनीतिक परिदृश्य पर धर्मेश शुक्ल की रिपोर्ट...
लगातार दो बार से जीतकर केंद्र में मंत्री का पद प्राप्त करने वाले अजय कुमार मिश्र ‘टेनी” चौथी बार मैदान में हैं। इस बार वह क्या तीसरी बार भी चुनाव जीतकर कीर्तिमान बनाएंगे? यह सवाल खीरी की राजनीति को मथ तो रहा है, लेकिन इससे बेफिक्र टेनी और उनके समर्थक केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों से चुनावी लाभ के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं। क्या वाकई में जमीन पर ऐसा है!
इसकी परख उदयपुर गांव के युवा दीपक कुमार से राह चलते बातचीत में होती है। वह चुनावी माहौल के सवाल पर बोले- ‘सब ठीक है... भगवान का दर्शन करो और घर बैठे राशन लो।’ फूलबेहड़ के ककरपिट्टा गांव के सुभाष कनौजिया इशारे में बहुत कुछ कहते हैं- ‘वोट खराब करने से फायदा क्या? बाकी आप जनतय हौ बाबूजी...।’ यहां के किसानों के बीच उज्ज्वला, सम्मान निधि योजना से मिले लाभ की भी खूब चर्चा है।
दूसरी ओर, विपक्षी दल जातीय धुव्रीकरण कर अपने पक्ष में समीकरण साधने की कोशिश कर रहे हैं, विशेषकर सपा-कांग्रेस गठबंधन। सपा प्रत्याशी के उत्कर्ष वर्मा ‘मधुर’ को सबसे बड़ा भरोसा अपनी बिरादरी (कुर्मी) के 18 प्रतिशत वोट पर है। यहां जातीय गणित में 4.75 लाख ओबीसी, 3.25 लाख मुस्लिम, 4.25 लाख दलित मतदाता हैं। 16 प्रतिशत ब्राह्मण हैं और सिख मतदाता भी ठीकठाक हैं।
ओबीसी में कुर्मी बिरादरी के मतदाता ही इस सीट पर निर्णायक भूमिका अदा करेंगे। हालांकि, लखीमपुर गोला रोड पर रूकंदीपुर गांव के कुलदीप राज कहते हैं- ‘न कोई मुद्दा है न कोई दिक्कत है किसी को... अभी तो बिरादरीवाद दिखता है, मगर यह तब खो जाएगा, जब लोग मतदान केंद्र तक पहुंचेंगे।’
उधर, बसपा 1989 से इस सीट से दिल्ली पहुंचने की राह देख रही है। बसपा ने अमरोहा के रहने वाले अंशय सिंह कालरा को मौका दिया है। वह पार्टी के कैडर वोट, युवाओं और हर उस शोषित वंचित मतदाताओं के बल पर मैदान में होने का दावा कर रहे हैं जिनको सरकार ने अब तक हाशिए पर रखा।
खीरी लोस क्षेत्र का इतिहास
पहले आम चुनाव से अब तक सबसे ज्यादा नौ बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, तीन बार सपा, एक-एक बार जनता पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (प्रसोपा) ने जीत दर्ज कराई है। 1952 में पहले आम चुनाव में कांग्रेस के रामेश्वर प्रसाद नेवरिया सांसद निर्वाचित हुए। 1957 में प्रसोपा से कुंवर खुशवंत राय सांसद चुने गए। 1962, 1967 व 1972 तक लगातार कांग्रेस के बाल गोविंद वर्मा जीते। 1977 में जनता पार्टी के सुरथ बहादुर शाह ने जीत दर्ज की।
1980 में फिर कांग्रेस के बाल गोविंद वर्मा जीते, मगर कुछ दिन बाद उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी ऊषा वर्मा कांग्रेस के टिकट पर तीन बार 1980, 1985 और 1989 में सांसद चुनी गईं। 1991 और 1996 में लगातार दो बार भाजपा के जीएल कनौजिया सांसद बने। बाल गोविंद वर्मा के पुत्र रवि प्रकाश वर्मा ने सपा से लगातार तीन बार 1998, 1999 व 2004 में जीत दर्ज कराई। 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी जफर अली नकवी ने अजय कुमार मिश्रा “टेनी” को हराया था। 2014 व 2019 में टेनी सांसद बने।
आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा काबिज
जिले की सभी आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा के ही विधायक हैं। इसके अलावा चार नगर पालिकाओं व आठ नगर पंचायत में भी भाजपा ज्यादातर जगह काबिज है और लगभग सभी ब्लाकों पर भी। 2019 के आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत 64 प्रतिशत से ज्यादा था जो 2014 के चुनाव से ज्यादा आगे नहीं निकल सका।
कानून व्यवस्था और गन्ने के बढ़े मूल्य पर संतोष, विपक्ष की मजबूती की भी चर्चा
शहर की आवास विकास कालोनी निवासी मेडिकल कारोबारी हरेंद्र सिंह का कहना है कि इस सरकार में गरीबों की ओर ध्यान दिया गया है। कानून व्यवस्था बेहतर है। गुंडे-बदमाशों का खौफ नहीं है। सेवानिवृत्ति गन्ना विभाग के सचिव हरिराम वर्मा कहते हैं, ‘वैसे तो माहौल सब राममय है लेकिन दो पार्टियां मिलकर एक साथ लड़ रही हैं तो इसका असर चुनाव में दिखाई पड़ेगा। विपक्ष पहले से मजबूत है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन जिस तरह से गन्ना का मूल्य बढ़ा है, किसानों के लिए फायदेमंद है। बाकी तो मतदाता खामोश है और निर्णय मतदान के दिन ही लेगा।’