हरियाली के नाम पर जेबें 'हरी-भरी'

पौधरोपण के अभियान, दावे और कागजी लिखा-पढ़ी अगर सच होती तो शहर वास्तव में जंगल में बदल जाना चाहिए था लेकिन हकीकत हमेशा कड़वी होती है और वास्तविकता भी यही है, लोगों ने नाम और नामा (धन) कमाने के लिए उन पौधों की आड़ ली जो हमें सांसें देते हैं। वे पर्यावरण आंदोलनों के बड़े अलंबरदार भी बने और बड़े मकानों के मालिक भी लेकिन सूरज की तपती धूप में पौधे कहां गुम हो गए, इसे किसी ने पलटकर नहीं देखा।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 09 May 2018 01:46 AM (IST) Updated:Wed, 09 May 2018 01:46 AM (IST)
हरियाली के नाम पर जेबें 'हरी-भरी'
हरियाली के नाम पर जेबें 'हरी-भरी'

जागरण संवाददाता, कानपुर : पौधरोपण के अभियान, दावे और कागजी लिखा-पढ़ी अगर सच होती तो शहर वास्तव में जंगल में बदल जाना चाहिए था लेकिन हकीकत हमेशा कड़वी होती है और वास्तविकता भी यही है, लोगों ने नाम और नामा (धन) कमाने के लिए उन पौधों की आड़ ली जो हमें सांसें देते हैं। वे पर्यावरण आंदोलनों के बड़े अलंबरदार भी बने और बड़े मकानों के मालिक भी लेकिन सूरज की तपती धूप में पौधे कहां गुम हो गए, इसे किसी ने पलटकर नहीं देखा।

एक-डेढ़ दशक पहले की बात करें तो इस शहर में पर्यावरण से जुड़ी संस्थाएं भी कुकरमुत्तों की तरह तेजी से उग आईं थीं। केंद्र से सीधे धन मिलने और स्थानीय स्तर पर उसकी कोई जांच न होने की वजह से इन संस्थाओं ने भारी संख्या में पौधरोपण के कार्यक्रम किए और उनकी फोटो खिंचवाकर केंद्र से सीधे धन भी हासिल कर लिया जिनके अपने घर नहीं थे, उनके सिर पर इन्हीं पौधों की बदौलत अपनी छत हो गई और जो साइकिल से चलते थे वे आज चार पहिया वाहनों पर चलने लगे।

ये संस्थाएं एक साथ कई-कई सौ पौधे लगाने का दावा करती थीं। अगर उस समय इन संस्थाओं के किए दावे सही होते और उनके द्वारा लगाए गए पौधों की ठीक से देखभाल हो जाती तो आज जीटी रोड, कालपी रोड, हमीरपुर रोड, हाईवे के आसपास का हिस्सा पूरी तरह पेड़ों से आच्छादित होता। आज हालत यह है कि इन सभी हाईवे पर चलने वाले छांव को तरसता है। जो शहर पेड़ों से घिरा होना चाहिए था, उस पर प्रदूषण का साया है। केंद्र से दिए गए अनुदान का क्या उपयोग हुआ जब इसकी जांच शुरू हो गई तो अपने लगाए पौधों की तरह ये संस्थाएं भी गायब हो गईं। काफी लंबा धन कमा चुके इन संस्थाओं के कर्ताधर्ता दूसरे कार्यो की ओर मुड़ गए इसीलिए अब सरकारी विभागों की तरफ से ही ज्यादातर पौधरोपण अभियान होते हैं, इन संस्थाओं की ओर से नहीं।

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20 रुपये के चक्कर में सांसों से धोखा

वर्ष 1996 से 1998 के बीच विश्वबैंक के सहयोग से शहरी पौधरोपण अभियान चलाया गया। इसमें पौधे लगाने वाले को हर पौधे के लिए 20 रुपये दिए जाते थे। इसमें 10 रुपये पौधा लगाते समय दिए जाते थे और 10 रुपये एक वर्ष बाद जितने पौधे जीवित बचते थे, उनकी संख्या के आधार पर मिलते थे। हर पौधे के हिसाब से 20 रुपये कमाने के फेर में सबसे ज्यादा पर्यावरण संस्थाएं उस समय फली फूलीं। चंद पौधे लगाकर कई-कई हजार पौधे लगाने का दावा किया गया। उस दावे को तत्कालीन अधिकारियों ने भी सत्यापित कर दिया और पूरे धन की बंदरबांट हो गई। भावी पीढ़ी को स्वच्छ माहौल देने के बजाय करोड़ों रुपये जेबों में कर लिए गए। ----------------

रसूख का इस्तेमाल कर सीधे लाए धन

कुछ संस्थाओं के संचालक इतने रसूखदार थे कि वे अपने संपर्को का इस्तेमाल कर सीधे केंद्र से धन आवंटित करा लाते थे। मामला सीधे दिल्ली से जुड़ा होने की वजह से यहां के लोग उस पर कभी अंगुली नहीं उठाते थे।

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अब पांच जून को याद आते पौधे

पौधों से कमाई बंद हुई तो उन्हें लगाने के झूठे दावे करने वाले भी गायब हो गए। ये संस्थाएं अब सिर्फ पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधे लगाने की औपचारिकता पूरी करती हैं।

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''25 वर्ष पहले पर्यावरण सुरक्षा संस्थान को शुरू किया। अब तक 25 हजार से ज्यादा पौधे लगाए। अब ज्यादातर संस्थाएं पर्यावरण का कार्य छोड़ दूसरे क्षेत्र में बढ़ गई हैं। पिछले वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधे लगाए थे।- श्रीकृष्ण दीक्षित, संयोजक पर्यावरण सुरक्षा संस्थान।

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''हमारी संस्था की स्थापना वर्ष 1989 में हुई थी। वर्ष 1992 में एक दिन में रिकार्ड 1.12 लाख पौधे कानपुर में लगाए थे। कानपुर में चार से पांच लाख पौधे लगाए हैं। तमाम संस्थाएं सरकार से सहायता मिले, इसलिए ही बनीं। बहुत से पौधे इसलिए नहीं बचे क्योंकि लोग दूसरे कामों में लग गए। - केए दुबे पद्मेश, संयोजक, इनवायरमेंट इंडिया।

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घर का आंगन मान पार्क को बनाया हरा-भरा

तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं ने पौधरोपण को अपनी जेब भरने का जरिया बनाया लेकिन किदवई नगर एच ब्लाक के लोगों ने सूअरबाड़ा बन चुके पार्क को घर का आंगन मान हरा-भरा बना दिया। एक वर्ष पूर्व यहां आसपास के लोग गंदगी फेंक जाते थे। आवारा जानवर भी गंदगी फैलाते थे। शाम होते ही अराजकतत्वों का डेरा लग जाता था लेकिन क्षेत्र के अवध नारायण तिवारी पार्क के एक कोने को पिछले कई वर्ष से साफ रखने का प्रयास कर रहे थे। पिछले वर्ष एक निजी कंपनी ने पार्क की बाउंड्रीवॉल अपनी तरफ से बनाई तो पार्क को साफ करने के अभियान में लोग जुड़ने लगे। अपनी तरफ से पैसे लगाए और पार्क को खूबसूरत बना दिया। आज यहां काफी मार्निग वॉकर आते हैं।

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''हमेशा से यह बात दिल में रही कि जहां बैठो वह जगह साफ-सुथरी होने चाहिए। इसलिए पार्क में अपनी तरफ का कोना साफ करता रहा। पिछले वर्ष दीवार बन गई तो कई और लोग जुड़ गए और आज सभी की मेहनत से पार्क साफ हो गया। - अवध नारायण तिवारी, एच ब्लाक किदवई नगर।

''आज करीब एक दर्जन लोग इस पार्क को खूबसूरत बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं। ये सभी आर्थिक सहयोग करते हैं। ज्यादातर लोग श्रमदान भी करते हैं। कुछ लोग प्रेरणा देने का काम भी करते हैं। - रज्जन मिश्रा, एच ब्लाक किदवई नगर।

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कानपुर का हर निवासी यही चाहता है कि कानपुर अच्छाई के मामले में टॉप पर हो न कि प्रदूषण में। हम प्रदूषण रोकने की जगह और फैला रहे हैं। सड़क बनाने से जुड़े सरकारी विभाग लकड़ी जलाकर तारकोल पिघलाते हैं। लकड़ी जलने से तो प्रदूषण होता ही है। इसके अलावा तारकोल से उठता काला धुआं भी प्रदूषण फैलाता है। इसलिए ऐसी तकनीक अपनानी चाहिए कि सड़क भी बन जाए और प्रदूषण भी न हो। - अवधेश सिंह यादव, ऑफिस एग्जीक्यूटिव, पीएसआइटी, कानपुर

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